“” इश्क एक जनून भी है और इबादत भी “‘
अजीब दास्ताँ आजकल जो एक निकल पड़ी ,
जो खुद ही अधूरे हैं फिर भी उनके पीछे ही दुनिया पड़ी ;
उनके नाम के अहसास होते भर से ही सांसें भी रूकी हैं पड़ी,
इस खुमारी को लिये कई टोलियाँ लम्बी कतार में हैं खड़ी ;
वो कहता है डूब करके तो देखो मुझमें एक घड़ी,
इस कदर चढ़ा जनूँ कि अब उसे ही पार करने की सबको पड़ी ;
गोता लगाकर देखा तो लगा कि वास्तव में एक खूबसूरत जन्नत ही पड़ी ,
फिर क्यों लगा मुझको उसके लिये एक और मन्नत इंतजार में खड़ी ;
कहता है वो मेरा काटे को तो दरबदर होना पड़ा या फिर उसका नाम दूजा ही पड़ा,
फिर भी न क्यों हर कोई इस अमृत की चाह में आँखे गढ़ाये खड़ा ;
अधूरे अक्षर से बना “”इश्क़ “” मेरा नाम है पड़ा ,
मुझे पूरा करने वालों को कभी पागल बनना पड़ा ; नहीं तो कभी मरना भी पड़ा।
सन्देश –
“” इश्क तो इबादत है ज़नाब ,
प्राणित्व से हो तो दुनिया खूबसूरत ;
और वासना, तत्व या उपभोग से हो जंजीर नजर आती है। “”
मानस जिले सिंह
【 यथार्थवादी विचारक】
अनुयायी – मानस पँथ
उद्देश्य – समाज में शिक्षा, समानता व स्वावलंबन के प्रचार प्रसार में अपनी भूमिका निर्वहन करना।
इश्क एक ऐसा अहसास
जो पता नहीं
कब
किससे ( सभी संज्ञा शब्द) हो जाए।
कुछ पल के लिए भी और जीवन भर के लिए भी
such a nice view
Ishk hi Ishwar ka dusra name hai.
really nice line
बस ये ही तो हो नहीं रहा गुरु जी अगर लग जाएं लग्न तो दुनिया सारी अपनी ही लगने लगे
अपने कर्म से प्रेम करो और अपने हित के साथ दूसरे की भावनाओं को हृदय में स्थान दोगे, तो फर्क दिखने लगेगा मोहन लाल जी |
शानदार शायराना अंदाज़
अतिसुंदर व्याख्या