Tuesday, March 21, 2023

“” खुद से ज्यादा क़िस्मत पर यकीन “”

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“” खुद से ज्यादा क़िस्मत पर यकीन “”

जब किस्मत से हर रोज़ लड़ता चला गया,
वक़्त से अबूझ पहेली के रूप में कुछ न कुछ मिलता ही चला गया :
नाज़ था हमको अपने जो हुनर पर तुच्छ ही सही इनाम उसी का मिलता चला गया ,
मुश्किलों का सफर अभी शुरू ही कहाँ हुआ है जनाब वक़्त फिर यह कहकर चलता चला गया ;

अब आँधियों के साथ बवंडर भी हमने सामने खड़ा पाया ,
जज्बा जान हथेली पर रख हिम्मत को और बढ़ाता चला गया ;
सागर की खामोश लहरों ने भी प्रचण्ड स्वरूप धारण जब किया ,
जलजलों में भी बांध कफ़न और बन मांझी फिर पतवार लिये अकेले ही पार करने चलता चला गया ;

जब हमने और सम्भल कर लड़ने का फ़ैसला जो किया,
तब ईनाम में दृढ़ संकल्प व विश्वास धर्म खुश होकर आशीष में ही देता चला गया ;
फिर जो गरूर हुआ अपनी काबिलियत से ही सब हमने पाया,
मुद्दतों बाद लगता है मुझे कि खेल भी उसका और तरीका भी, मैं तो बस कठपुतली का किरदार निभाता चला गया |

मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना में स्वावलंबन के नियम को सामाजिक जीवन शैली में चिरतार्थ करवाने के लिए प्रयासरत रहना।

10 COMMENTS

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Shintu Mishra
शिंटू मिश्रा
10 months ago

Good thoughts

Mahesh Soni
Member
10 months ago

nice

Amar Pal Singh Brar
Amar Pal Singh Brar
10 months ago

यथार्थ चित्रण

Sanjay Nimiwal
Sanjay
10 months ago

मेरे लिखने से अगर बदल जाती किस्मत,

तो हिस्से में उसके सारा जहां लिख देता ।।।

Mahesh Soni
Member
10 months ago

जो मज़ा ख़ुद की कमियों को सुधारने में है,

वो मज़ा ओरो की गलियों निकालने में नही।

Devender
Devender
10 months ago

शानदार लेखन

अति सुन्दर लेख

दिल से लाइक

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