Monday, March 20, 2023

जज्बा या ख़ुद पर नाज़

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“” जज्बा या ख़ुद पर नाज़ “”

हम तो उम्मीदों की शैय्या पर ,
दिले आरजू को भी लेटा देते हैं ;
सपनों की तो औकात ही क्या ,
दिली हकीकत को भी मिट्टी में दफना देते हैं ;

कभी खुशियों को काँटो की डगर दिखलाते हैं ,
तो कभी उसके पंखों को भी कटवा देते हैं ;
दर्द जब तक न हो खून ऐ ज़िगर ,
होंठों को अश्क़ नहीं खून के आंसू भी पिला देते हैं ;

जीत थी खूबसूरत हर बार की तरह ,
फिर भी तन्हा देख बेबस आखिरी उम्मीद को, हार को भी अपने गले में सजा लेते हैं ;
दुनिया तो कामयाबी पर ही होती है बहुत खुश ,
हम तो बहुत कुछ लुटाकर भी जश्न मना ही लेते हैं ;

पता है वह वो रास्ता नुकीले पत्थरों से भरा है ,
फिर भी फालों को छोड़ खून से सने पैरों से भी आगे कदम बढ़ा लेते हैं ;
गरूर है हमें हमारे जज़्बे व ईमान की राह पर ,
सब कुछ खोकर भी “‘ संघर्ष है जीवन का हिस्सा “” , यह बात कह फिर से जो मुस्कुरा लेते हैं ;

मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना में समानता के नियम को सामाजिक जीवन शैली में चिरतार्थ करवाने के लिए प्रयासरत रहना।

16 COMMENTS

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Umang
Umang
11 months ago

Very Inspiring

Amar Pal Singh Brar
Amar Pal Singh Brar
11 months ago

वाह। बहुत अच्छे

ONKAR MAL Pareek
Member
11 months ago

बहुत ही मर्म के साथ आपने जीवन में निराशा छोड़ कर आशा रूपी विश्वास को जगाने की बेहतरीन कोशिश की है । अगर जीवन में ऐसा किसी के साथ हुआ है तो उसे खुद पर नाज भी होना लाजमी है ।

Sarla Jangir
Sarla jangir
11 months ago

Nice write up

Sanjay Nimiwal
Sanjay
11 months ago

अगर जोश, जुनून और जज्बा हो मन में तो मंजिल मिल ही जाएगी।

जीवन है तभी तो संघर्ष है…..

Mohan Lal
Mohan
11 months ago

बहुत ही सुन्दर

Garima Singh
Garima Singh
11 months ago

Nice keep writing 👍

Mahesh Soni
Member
11 months ago

bahut acha likha

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