“” जज्बा या ख़ुद पर नाज़ “”
हम तो उम्मीदों की शैय्या पर ,
दिले आरजू को भी लेटा देते हैं ;
सपनों की तो औकात ही क्या ,
दिली हकीकत को भी मिट्टी में दफना देते हैं ;
कभी खुशियों को काँटो की डगर दिखलाते हैं ,
तो कभी उसके पंखों को भी कटवा देते हैं ;
दर्द जब तक न हो खून ऐ ज़िगर ,
होंठों को अश्क़ नहीं खून के आंसू भी पिला देते हैं ;
जीत थी खूबसूरत हर बार की तरह ,
फिर भी तन्हा देख बेबस आखिरी उम्मीद को, हार को भी अपने गले में सजा लेते हैं ;
दुनिया तो कामयाबी पर ही होती है बहुत खुश ,
हम तो बहुत कुछ लुटाकर भी जश्न मना ही लेते हैं ;
पता है वह वो रास्ता नुकीले पत्थरों से भरा है ,
फिर भी फालों को छोड़ खून से सने पैरों से भी आगे कदम बढ़ा लेते हैं ;
गरूर है हमें हमारे जज़्बे व ईमान की राह पर ,
सब कुछ खोकर भी “‘ संघर्ष है जीवन का हिस्सा “” , यह बात कह फिर से जो मुस्कुरा लेते हैं ;
मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना में समानता के नियम को सामाजिक जीवन शैली में चिरतार्थ करवाने के लिए प्रयासरत रहना।
Very Inspiring
Thanks
वाह। बहुत अच्छे
thanks
बहुत ही मर्म के साथ आपने जीवन में निराशा छोड़ कर आशा रूपी विश्वास को जगाने की बेहतरीन कोशिश की है । अगर जीवन में ऐसा किसी के साथ हुआ है तो उसे खुद पर नाज भी होना लाजमी है ।
Nice Motivation way
Nice write up
Thanks
अगर जोश, जुनून और जज्बा हो मन में तो मंजिल मिल ही जाएगी।
जीवन है तभी तो संघर्ष है…..
Really Appreciable
बहुत ही सुन्दर
thanks
Nice keep writing 👍
thanks
bahut acha likha
thanks