Friday, March 31, 2023

“” नादान या इंसान में प्रकृति की पहचान “”

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“” Identity of Nature in the Naive or Human “”
“” नादान या इंसान में प्रकृति की पहचान “”

नादान बन जो हर चीज से अनजान सा जब रह गया ,
रहबरों से अब वो इंसान कहलवा गया ;
दूसरे का घर जलने का तमाशा देख ,
जो जीने की सीख ली तो समझदार बनवा गया ;

जब दूसरों के लिए मदद या जीना सीखा ,
हमदर्दों ने मूर्ख या बेवकूफ भी जता  दिया ;
दर्द सीने की राह पर संतत्व की ओर जो बढ़ा ,
अपनत्व ने पगला व गैरजिम्मेदार भी बता दिया ;

जीते जी कौन व किसको समझ है पाया ,
किसी को ईश निंदक समझ सूली पर चढ़ाया ;
तो किसी को साध्वी को पापिनी जान जहर भी पिलाया ;
संसार छोड़ा जो फकीर ने उसे भगवान कह सिहांसन पर भी बिठाया ;

प्रकृति की फितरत से कौन व कब रूबरू है हो पाया ,
किसी की जिद ने गलियों की ख़ाक से चक्रवर्ती सम्राट भी बनवाया ,
तो विजयी सम्राट को युद्ध की हृदय विदारक दृश्य द्वारा सन्यासी भी बनाया ,
जीतने वाला सिकन्दर तो कभी जो हार कर भी जीता उसको बाजीगर भी कहलवाया ;

मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना में प्रकृति के नियमों को यथार्थ में प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध प्रयास करना।

5 COMMENTS

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Amar Pal Singh Brar
Amar Pal Singh Brar
10 months ago

अभीष्ट अभिव्यक्ति

Sanjay Nimiwal
Sanjay
10 months ago

प्रकृति की गोद में..

बेशुमार खजाना है,,,

बशर्ते आप ढूंढना चाहे ।।

Shintu Mishra
शिंटू मिश्रा
10 months ago

हमारी संस्कृति ही प्रकृति आधारित है प्रकृति को हम मां का ही रुप मानते हैं

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