“” Nature’s Colors “”
“” प्रकृति के रंग या इंसान का फितूर “”
इन्शा इन्शा को देख अपना ढंग बदलता है ,
मानो खरबूजा खरबूजे को देख जैसे अपना रंग बदलता है ;
गिरगिट तो नाहक़ ही यारो बदनाम है ,
नेता जो रखे पैरों तले ज़मीर वो दल बदल करना अपना धर्म समझता है ;
पेड़ सावन में नवसंचार हेतु अपने पत्ते हर बार बदलता है ,
पक्षी भी जरूरत पड़ने पर अपने पँख बदलता है ;
ज़हर रखने से औकात बढ़ गई तो क्या सांप भी अपनी कांचली जीवन में कई बार बदलता है ;
यहाँ तो अलग दिखने अजब गजब सनक दिखती है जनाब तभी तो इन्शा भी अपने निजी अंग बदलवाता है ;
दिल मे दबी नफरत से कभी किसी मसले का हल यारो कहाँ निकलता है ,
प्रेम व समर्पण के असर में जानवर तो क्या शैतान का भी मन बदलता है ;
दुत्कार व छिटकाने से सिर्फ़ अलगाव को ही यारो बल मिलता है ;
तो फिर सम्मान की चाह में पथ तो क्या इन्शा बड़ी संख्या में पंथ भी बदलता है ;
मौसम भी हर पल अपना मिजाज बदलता है ,
सीख मानुष प्रेम करने का वह अंदाज जो आपसी रिश्ते को अपनत्व में बदलता है ;
तो फिर चुनो मित्रों का संग ऐसा जो आपकी सोच को सकारात्मक में ही नहीं माहौल को भी जन्नत में बदलता है ;
मेहनत हो जनूँ के साथ सर्वकल्याण के लिए तो किस्मत ही नहीं वहाँ युग भी बदलता है |
मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना में प्रकृति के नियमों को यथार्थ में प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध प्रयास करना।
जहां एक दूसरे की अंगुली की छाप मिलना मुश्किल है,
वहां एक जैसी सोच वाले लोग ढूंढने से कहां मिलेंगे ।।।
So nice views
सही लिखा है
कोशिश करें तो युग बदलता है।