—– आवाज बनने और अलख जगाने की चाह ——
सुना व देखा, हृदय पीड़ा में जब किसी की फरियाद को ,
आँसुओं की जगह हमें, सिर्फ लहू से सने हर्फ़ ही दिखते हैं ,
क्रूरता भरे शोषण का आक्रोश जब रगों से फिर उतारा देखा तो ,
कलम से निकले हर हर्फ़ में अब हम, सिर्फ न्याय की पुकार ही तो फिर लिखते हैं ;
सच कहता हूँ मानस, जिसके जैसे मित्र होते हैं,
ठीक वैसा ही नहीं, बल्कि चरित्र उसका मिलताजुलता जरूर होता है ;
इसीलिए पुराने बुजुर्ग तो रिश्ता कुल को जान के ही करते हैं,
और चाहे पानी कितना भी साफ़ क्यों न हो, उसे छान कर ही पीते हैं ;
पर सौभाग्य से, गुरू भी हमें निर्मोही संत ऐसे ही मिले ,
उनकी तरह मुख्लिस के दर्द की आवाज का मर्म बन सके, ऐसे दिल का मालिकाना हक जरूर चाहते है ;
परमश्रद्धेय गुरुदेव की हल्की सी छाया, मुझ पर इस तरह जो पड़ी ,
फिर न जाने क्यूँ शिक्षा, समानता व स्वावलंबन की मशाल से हर घर आँगन रोशन करवाने हो, ऐसी अलख जगाने में अपने योगदान हेतु अटल प्रण भी चाहते हैं।
मानस जिले सिंह
【 REALISTIC THINKER 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानव कल्याण हेतू सर्मपण जीवन निर्वहन की एक चाह।
सत्यम शिवम सुन्दरम
मेरे विचार में ये ही आपके गुरु के प्रति सच्ची गुरु दक्षिणा होगी ।
thanks