“” श्री का शाब्दिक अर्थ “” Or “” श्री की परिभाषा “”
“” Definition of Shri “” OR “” Shri ki Paribhasha “”
“” श्री “”
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार –
“” श्री “” का अर्थ लक्ष्मी, वैभव, ऐश्वर्य इत्यादि
“” श्री “” का अर्थ लक्ष्मी पति यानि धन सम्पदा के स्वामी
“” श्री “” का अर्थ लक्ष्मीनारायण भगवान यानि विष्णु भी कहा जाता है।
परन्तु हमारी नजर में –
श्री सैद्धांतिक अर्थ सन्धि विच्छेद द्वारा
श्र + ई = श्री
श्र = श्रांत 【 जिसकी इच्छा व वासना की तृप्ति हो चुकी हो 】
ई = ईश्वर के प्रति आस्थावान हो।
“” जिसकी श्रांत भावानुभूति होते हुए भी ईश्वर पर आसक्ति हो तो, वह श्री कहलाता है। “”
दूसरे शब्दों में –
श्र + ई = श्री
श्र = श्रद्धेय
ई = इंद्रजीत 【 पाँच ज्ञानेन्द्रियों (आंख, कान, नाक, जीभ और त्वचा) व पाँच कर्मेन्द्रियों ( हाथ, पैर, मुंह, गुदा और लिंग )+ चार अन्तःकरण ( मन बुद्धि चित्त और अहंकार ) 】
“” जो श्रद्धेय होने के साथ इंद्रजीत भी हो तो, वह श्री कहलाता है। “”
अन्य शब्दों में –
श् + र + ई = श्री
श् = शिक्षित होने पर शालीन हो।
र = रणबांकुरा होने के साथ रसिक [ वयस्क 】 भी हो।
ई = ईमानदार के साथ ईश्वरनिष्ठ हो।
“” शिक्षित होने पर शालीन हो, रणबांकुरा होने के साथ रसिक भी हो और ईमानदार के साथ ईश्वरनिष्ठ हो तो वह श्री कहलाता है। “”
“” शूरवीर , ज्ञानी, शक्तिशाली होते हुए भी शालीनता, दया और सरंक्षण में पौरुषत्व का परिचय देना ही श्री कहलवाता है। “”
“” सर्वशक्तिमान, ज्ञानवान, अपराजेय व अद्वितीय होने पर भी सरल, क्षमाशील व परोपकारी होना ही “” श्री “” संज्ञा सूचक बना। “”
“”” कालांतर में वर्ण व्यवस्था को अपनाने वाला गृहस्थ युवक ही “” श्री “” शब्द से नवाजा जाने लगा। “”
मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु प्रकृति के नियमों का यथार्थ प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध योगदान देना।