Tuesday, March 21, 2023

“” किन्नर या दर्द की इन्तहा का मूर्त रूप “”

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“” Transgender or The Embodiment of Pain “”
“” किन्नर या दर्द की इन्तहा का मूर्त रूप “”

लिखना नहीं है शौक मेरा ,
जब दिल में दर्द हद से बढ़ गया ;
और जब सहा भी ना जा सका तो ,
कभी आंखों से तो कभी कागज पर उतर गया ;

एक थाप जो कानों ने सुनी ,
मानो सारी सितम की कथा सुना गया ;
सुना रहा था खुशियों के गीत ,
न जाने क्यूँ हाल ऐ दर्द उसके जुबां पर आ गया ;

दर्द जो उसकी पथराई व कर्कश आंखों में था ,
न जाने कैसे वो मुझमें समा गया ;
पीड़ा तो जो थी उसकी ,
न जाने क्यों मैं दर्द से कर्राह गया ;

दिल पर चोट तब लगी उसको ,
जो दुनिया द्वारा उसे किन्नर कह पुकारा गया ;
माँगा था जिसे मन्नत से ,
फिर क्यों कोई किसी को अपनी जन्नत थमा गया ;

व्यथा जो अथाह गहरी थी ,
मुझको तो अंदर तक ही कंपकपा गया ;
अश्क़ जिन आँखों से बहते थे हमेशा ,
अब उन आंखों से लहू ही टपकवा गया ;

दोष मां बाप या समाज का ,
पर एक अबोध ही उसे भुगता गया ;
बंटनी चाहिए थी घूघरी ,
पर मातम में अभिशप्त हो फिर चला गया ;

बात नही करूँगा उस पत्थर दिल मां की ,
जिसने मनहूस मान उसको जो दुत्कार दिया ;
घृणा होती है उस सोच की भी ,
जो मासूम के कंधों पर कहर बरपा गया ;

छोटी सी उम्र में थी जिसे प्यार की जरूरत ,
पेट की भूख ने उसे मजदूरी करना भी सीखा दिया ;
उम्र ने भी जुल्म ढहाने में कोई कसर न छोड़ी थी ,
जो मजदूरी छुड़ावा दर दर पर नाच के साथ गवाने भी लगवा दिया ;

ताली जो बजी कानों में मिश्री सी घुली,
मानो कोई किसी के घर में खुशियों के फूल खिला गया ;
हँसती मुस्कुराहट में न जाने कितने गम थे ,
फिर भी दुआ में कई गीत प्यार के सुना गया ;

दुआ जो बसी है लबों पे जिनके ,
उनकी हर जुबां पर हर बार प्यार का तराना आया ;
मांगा था कभी जिसने पीने का पानी जो,
न जाने क्यूँ अपमान का हर घूँट फिर उसको कोई पिला गया ;

न लिख सकी कलम और अल्फाज जो मेरे ,
किन्नर के हर शब्द में दर्द जो गहराता चला गया ;
मुमकिन भी ना था जो कर सकूँ बयाँ ,
जुल्मों व दर्द के लाखों लम्हों को तो मैं कभी समझ भी न पाया ;

मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना में प्रकृति के नियमों को यथार्थ में प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध प्रयास करना।

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ONKAR MAL Pareek
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10 months ago

किसी के दर्द को यूं आसानी से समझ कर कलमबद्ध करना भी एक बहुत बड़ी चुनौती का काम है जिसे लेखक महोदय ने बहुत ही मार्मिक रचना से प्रस्तुत किया है ।

Amar Pal Singh Brar
Amar Pal Singh Brar
10 months ago

यथार्थ

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