Saturday, March 25, 2023

“” मजदूर या फिर हालात से मजबूर “”

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“” A Labour or Victim of Circumstances “”
“” मजदूर या फिर हालात से मजबूर “”

राम राम साहब जो सुना , मानो कानों में अमृत सा घुला ;
जैसे ही सन्नाटे को चीरती, जो आवाज कानों में पड़ी ;

नजर दौड़ाई तो मुरझाये चेहरे, फिर सम्मान देने उनके ही आगे झुके ;
लगा जैसे एक झुठी चेहरे की मुस्कान, मेंढक की तरह दुःखों के सैलाब से उछल पड़ी ;

ईमानदारी से लग्न व मेहनत भी, आँखों की चमक में मजबूरी न छुपा सकी ;
खुद के भरणपोषण के साथ परिवार की परवरिश, और क़बिलदारी की जिम्मेदारी भी उनके नाजुक कन्धों पर थी जो पड़ी ;

मोल भाव की आदत है सबको, चाहे फिर एक ही रेट मालिक यह सबको पहले से क्यों न कहा ;
दान देने वाला बड़ा होता है, इसलिए उनसे पुण्य कमाने वालों में भी होड़ सी मची ;

मौत है हर कदम पर फिर भी , जो सुरक्षित रहने का ये फरमान सबको मिला ;
खुद की खैरियत की ख़ातिर , वैसे ही दुनिया घरों के लिए निकल पड़ी ;

हराम और बेशर्मी से बैठकर, वो भी सकते थे खाना जो खा ;
ज़िल्लत से मर न जायें , फिर इज्ज़त की कमाने वास्ते दौड़ जो उनकी ही लगी ;

सब्जी बेचना, पानी , दूध पहुंचाना व साफ सफाई , ऊपर से कचरा भी घर घर का उनके ही हाथों से उठा ,
जबकि संकट काल में भी दुनिया , हर तरफ़ गन्दगी मचाने में थीं जुटी ;

इज्ज़त से नहीं तो थोड़ी सी करुणा से ही पुकार लेते , यह आस थी अंतर्मन में थोड़ी सी उनको भी ;
लाचारी की इंतहा दिखती है तो कभी , बेबस पथराई आंखों में हर बार की तरह एक फिर से टकटकी सी दिखी ;

मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना में प्रकृति के नियमों को यथार्थ में प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध प्रयास करना।

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Amar Pal Singh Brar
Amar Pal Singh Brar
10 months ago

अत्यंत मार्मिक चित्रण

Garima Singh
Garima Singh
10 months ago

आपकी रचना मुझे इस रचना की बहुत याद दिलाती है

” मैं मजदूर मुझे देवों को बस्ती से क्या ?”

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