Saturday, March 25, 2023

मैं व्यक्ति नहीं, सिर्फ विचार हूँ

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“” मैं व्यक्ति नहीं, सिर्फ विचार हूँ “” | Vykti Nhi Sirf Vichar
“” I’m just a thought not a person. “”

मैं व्यक्ति नहीं, सिर्फ विचार हूँ ,
मैं बाज तो नहीं , उसके पँखों की रफ्तार हूँ ;
मैं नदिया तो नहीं , बस कल्कल बहती पानी की एक धार हूँ ;
मैं समाज तो नहीं, भविष्य को दर्शाता उसका सिर्फ कर्णधार हूँ ,

मैं अनहद नाद तो नहीं, हृदय को चीरती हुई करुणामयी पुकार हूँ ,
मैं तूफ़ान तो नहीं , मन को आनन्दित करती बस हवा की एक फुंहार हूँ ;
मैं ज्वालामुखी तो नहीं , बहते लावे का एक अंगार भी हूँ ,
मैं पहाड़ तो नहीं, चट्टान में छुपी हुई बजूद बतलाती बस एक टंकार हूँ ;

मैं अस्त्र शस्त्र तो नहीं, पर जिसे कोई काट न सके ऐसी पैनी एक धार हूँ ,
मैं गरूर तो नहीं, कुछ जमीनी करने वाला बस जो सिर चढ़कर बोले वो एक ख़ुमार हूँ ;
मैं नाव तो नहीं, जलजलों से जूझती हुई एक पतवार हूँ ,
मैं आदि पुरूष तो नहीं, मानवीय मूल्यों को दर्शाता मानस का ही एक अवतार हूँ ;

मैं निर्माता तो नहीं, पर नव निर्माण का एक रचनाकार  हूँ,
मैं जगत गुरु तो नहीं , अध्यात्म की ओर प्रशस्त मार्ग पर दिशा दिखाने वाला मददगार हूँ ;
मैं शायर, कवि या लेखक तो नहीं , फिर भी लेखनी को कैसे यथार्थ बनाया जाये उसका एक सलाहकार हूँ,
मैं पथ प्रदर्शक तो नहीं, पर जीवन को जीवंत देखने वाला एक कल्पनाकर हूँ ;

मैं सेनानायक तो नहीं,  पर अत्याचारों के विरूद्ध बनी रणभेरी की ही एक हुँकार हूँ ,
मैं लौहपुरुष तो नहीं, बस तानाशाही को कुचलने वाली एक ललकार भी हूँ ;
मैं मातृत्व शक्ति तो नहीं, प्रेम, सहयोग व सद्भाव का ही बस एक तलबगार हूँ ,
मैं जादूगर तो नहीं, पर बंद दिल दिमाग को खोलने वाला एक औजार भी हूँ ;

मैं सन्त तो नहीं, पर मानव मात्र हेतु उपयोगी प्रेम रूपी ज्ञान की रसधार हूँ ,
मैं करुणामयी मूर्त तो नहीं, बन्धुत्व व मित्रता के वास्ते उनको समर्पित एक परिवार हूँ ;
मैं जीवन तो नहीं , बस जिंदादिली के वास्ते कांटों के पथ पर चलने को तैयार भी हूँ,
मैं इंकलाब तो नहीं , फिर भी युवाओं के रगों में लहू बन बहने को तैयार हूँ।

एक बार फिर कहता हूँ कि, “” मैं व्यक्ति नहीं, सिर्फ विचार हूँ “”,
बना ले मुझे जो अपना , मानो तो उसी का मैं श्रृंगार भी हूँ ;
जो मुझ पर दिखाये अपना समर्पण, उसके लिए मैं फिर रक्षा की एक दीवार हूँ,
जो बिन कहे सुने मेरी दिल की अर्ज को ,  उसका तो मैं सिर्फ हुक्म का ताबेदार भी हूँ “”

इसीलिए फिर एक बार कहता हूँ कि, मैं व्यक्ति नहीं, सिर्फ विचार हूँ ,
I’m just a thought not a person.

मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु प्रकृति के नियमों का यथार्थ प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध योगदान देना।

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Mahesh Soni
Mahesh Soni
1 month ago

एक प्रवक्ता की परिभाषा मेरे नजरिए से:

एक अच्छा प्रवक्ता हो नही होता है, जो अपनी बात समझने के लिए अधिक शब्दों का इस्तेमाल करे। अपितु एक अच्छा प्रवक्ता वह है जो सामने वाले कि बात ग़ौर से सुनता है, और तत्पश्चात वह बहुत ही कम शब्दों में वह वो समझा जाता है की उसके आगे उसे कुछ अधिक बोलने की आवश्यकता नही होती।

Amar Pal Singh Brar
Amar Pal Singh Brar
1 month ago

सुन्दर अभिव्यक्ति

Devender
Devender
1 month ago

मैं पर प्रदर्शक…….. एक कल्पनाकार भी हूं।।

गजब लेखन

Sarla Jangir
Sarla Jangir
1 month ago

कोई भी रचना जितनी बार पढ़ी जाती है, सुनाई या दिखाई जाती है। उससे कहीं ज्यादा , कहीं हद तक , वह सत्य के करीब होती है ।- प्रोफेसर सरला जांगिड़

Sanjay Nimiwal
Sanjay
1 month ago

सुन्दर व्याख्या 🙏👌🙏

उत्तम लेखन आपके विचारों की

अभिव्यक्ति का दर्पण होता है,,,

पथ प्रदर्शक लेखन वही करते हैं,

जिसमें समाज, देश व अपनो के प्रति समर्पण होता है।।

ONKAR MAL Pareek
Member
1 month ago

संसार एक शीशा है इसमें जैसी छाया पड़ेगी वैसा ही प्रतिबिंब दिखाई देगा विचारों के आधार पर ही संसार सुखमय अनुभव होता है पुरोगामी उत्कृष्ट उत्तम विचार जीवन को ऊपर उठाते हैं उन्नति सफलता महानता का प्रशस्त करते हैं तो हीन निम्न गामी कुत्सित विचार जीवन को गिराते हैं यानी यह विचार ही हैं जो मनुष्य की जीवनी या यूं कहें की मनुष्य विचारों का ही पुलिंदा मात्र है अतः मैं लेखक महोदय से बिल्कुल सहमत हूं क्योंकि यह विचार ही हैं जो हमारे जीवन की दशा और दिशा दोनों बदल सकते हैं । मैं व्यक्ति नहीं सिर्फ विचार हूं ।

Radha Krishan
Member
1 month ago

स्व रचित अनुपम रचना,अत्यन्त सार गर्भित, हरेक शब्द/पंक्ति में मानस के विचारों की गहरी छाप स्पष्ट झलक रही है।

Rakesh Jangra
राकेश कुमार
1 month ago

लेखन द्वारा विचारों की उत्तम अभिव्यक्ति

SARLA JANGIR
SARLA JANGIR
25 days ago

मन करता है
 क्यों सबके बीच भी अपने वजूद, को नकारने का मन करता है ।
जलती लौ से घबराकर ,उसे बुझाने का मन करता है ।
लोगों की भीड़ से दूर ,कहीं निर्जन में जाने का मन करता है।
 बातों के भंवर में कहीं, मौन साधना को मन करता है ।
किसी निरीह एकांत में, जोर -जोर से चिल्लाने का मन करता है ।
शब्दों के अक्षय भंडार में नहीं, किसी विराम पर रुकने का मन करता है।
 मुंह से बात करने की शक्ति नहीं ,अपने खाली मन को टटोलने का मन करता है ।
चारों तरफ सारे रिश्ते ही रिश्ते हैं ,मगर कहीं किसी अपने को ढूंढने का मन करता है ।
सकारात्मक विचारों और किताबी ज्ञान से ऊब गए हैं हम ,अब तो अनजान रास्तों पर चलने का मन करता है।
 मन क्या है? भाव क्या है ?और शरीर क्या है? सब जुड़े एक माला के मोती की तरह ,
जुड़ने से होने वाला दुख और टूटने के अलगाव का कारण क्या है ?
उस ईश्वर की इस कारण को जानने का मन करता है।
– प्रोफेसर सरला जांगिड़

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