Tuesday, April 1, 2025

Sense of Spirituality | आध्यात्मिकता का अर्थ 

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आध्यात्मिकता का अर्थ  | आध्यात्मिकता का भाव
Sense of Spirituality | Definition of Spirituality | Meaning of Spirituality | Spirituality ki Paribhasha

| Sense of Spirituality |

आध्यात्मिकता को सदियों से एक गूढ पहेली, असमंजस युक्त और अस्पष्ट अवधारणा बनाई हुई है| जो बहुत ही विविध आयामों में बंधी हुई होने के बावजूद भी आज अनसुलझी पहेली बनी हुई है| मोक्ष की जब बात करते हैं तो उसका उद्देश्य और निहितार्थ तो कहीं न् कहीं समझ में आता है जिसे अलग अलग नामों से पुकार गया है| जिन्हें हम निर्वाण, कैवल्य, मुक्ति, निश्रेयस, जीवनमुक्ति, विदेहमुक्ति, सद्गति, अपवर्ग, विमुक्ति, विमोक्ष, परमपद इत्यादि कहते हैं| भावार्थ कही न् कहीं सभी के एक दूसरे से मेल खाते हैं| जिनका जिक्र संक्षिप्त रूप से देने का प्रयास किया है|

मोक्ष (वेदांत) – पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति।

कैवल्य (सांख्य) – सांख्य और योग दर्शन में आत्मा की पूर्ण स्वतंत्रता।

अपवर्ग (योग) – न्याय और वैशेषिक दर्शन में दुखों का अंत।

परमपद (वेदान्त) – भगवान के धाम को प्राप्त करना, विशेष रूप से वैष्णव परंपरा में।

जीवनमुक्ति (वैशेषिक) – जीते-जी मुक्ति प्राप्त कर लेना।

विदेहमुक्ति (मीमांसा) – मृत्यु के बाद पूर्ण मुक्ति।

निर्वाण (बौद्ध दर्शन) – समस्त इच्छाओं और क्लेशों का अंत, जिससे पुनर्जन्म समाप्त हो जाता है।

निश्रेयस (बौद्ध दर्शन) – बौद्ध और वेदांत दोनों में कल्याणकारी मोक्ष का स्वरूप।

विमुक्ति (बौद्ध दर्शन) – सभी बंधनों से मुक्ति।

सद्गति (जैन दर्शन) – उत्तम गति, जो आत्मा की मुक्ति की ओर ले जाती है।

विमोक्ष (जैन दर्शन) – कर्मों से मुक्ति, जिसे मोक्ष कहा जाता है।

परमधाम (भक्ति सम्प्रदाय) – ईश्वर के धाम की प्राप्ति

परमानंद (भक्ति सम्प्रदाय) – शाश्वत आनंद की अवस्था

स्वर्ग (पूर्व मीमांसा) – कर्मों से उत्तम गति

ब्रह्मनिर्वाण (वेदान्त) – ब्रह्म में पूर्ण विलय (अद्वैत)

मुक्ति (सिख दर्शन) – परमात्मा के साथ मिलन और अहंकार से मुक्ति।

सच्चखंड (सिख दर्शन)  – वह अवस्था जहाँ आत्मा ईश्वर के साथ एक हो जाती है।

मोचन या उद्धार (ईसाई दर्शन) – पापों से मुक्ति और ईश्वर के राज्य में प्रवेश।

अनंत जीवन (ईसाई दर्शन) – ईश्वर के साथ शाश्वत एकता।

जन्नत (इस्लाम दर्शन )- जन्नत में प्रवेश, जहाँ आत्मा को शांति और जन्नत की निकटता प्राप्त होती है।

निजात (इस्लाम दर्शन ) – पापों से मुक्ति और अल्लाह की कृपा प्राप्त करना।

अमरता (दाओवादी दर्शन) – प्रकृति और ताओ के साथ पूर्ण सामंजस्य की अवस्था।

वू वेई (दाओवादी दर्शन) – एक ऐसी अवस्था जहाँ व्यक्ति संसार के साथ संघर्ष छोड़कर सहजता में रहता है।

फना (सूफी दर्शन) – अहंकार का विलय और ईश्वर में पूर्ण समर्पण।

बका (सूफी दर्शन) – ईश्वर के साथ शाश्वत एकता की अवस्था।

उपरोक्त संदर्भ को समझना व विचारों की गहराई में अपने को उतरना का प्रयास भर रहा है जिससे अब बहुत से प्रश्न निकलकर कर आते हैं| आध्यात्मिकता क्या है और उसका मानदंड क्या बनाया जा सकता है| जिसे कुछ बिंदुओं के तहत इसे समझने का प्रयास करेंगे|

  1. आत्मज्ञान की शुद्धता
    1. चार आर्यसत्य का ज्ञान
    2. त्रिरत्न का बोध
    3. साधन चतुष्टय की अनुपालना
    4. “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः”
  1. सर्व-एकता
    1. ईश्वर से एकता
    2. प्रकृति से एकता | तादात्म्य
    3. आत्मा का [ब्रह्म] निराकार से अभेद होना
    4. आत्मा का परमात्मा में विलय
    5. जीव का ईश्वर से मिलन
  1. आत्मविश्लेषण व आत्मउत्थान
    1. मैं कौन हूँ
    2. स्वयं को जानो
    3. प्रकृति में अस्तित्व की खोज
  1. मानवीय मूल्य की धारणा (संग्रहण, संरक्षण व संवर्धन)
  2. व्यक्तिगत स्वतंत्रता, स्वनिर्माण व आत्मकल्याण
  3. सामाजिक (दुखों से मुक्ति) न्याय, सेवा व सहयोग

उपरोक्त बिंदुओं के अंतर्गत शायद हम आध्यात्मिकता को सही तार्किक व विषयनिष्ठ समझ सकेंगे| वैसे कोई भी नियम और परिभाषा सार्वभौमिक, सर्वकालिक, सर्वव्यापक और सर्वमान्य हो तो उसकी गुणवत्ता और विश्वनीयता बढ़ जाती है| यदि इतने गुण ना भी मिले पर दो का मिलना तो नित्तान्त आवश्यक हैं| सार्वभौमिक, सर्वकालिक गुण के बिना उसका होना न् होना मायने नहीं रखता है|

पहली दृष्टि में आध्यात्मिकता परा विद्या के ज्ञान का अनुभव प्रतीत होती है| द्वितीय दृष्टि में आध्यात्मिकता आत्मविश्लेषण और आत्मउत्थान की प्रक्रिया महसूस होती है| तृतीय में प्राणी द्वारा मानवीय मूल्यों संग्रहण, संरक्षण व संवर्धन के अनुसरण और उसके क्रियान्वयन से जुड़ी लगती है| चतुर्थ में मानव की व्यक्तिगत स्वतंत्रता, स्वनिर्माण व आत्मकल्याण के प्रति अभिरुचि दिखलाई पड़ती है| और पंचम में सामाजिक (दुखों से मुक्ति) न्याय, सेवा व सहयोग के महान व्यक्तित्व की ऋणी व साक्षी बनती दिख पड़ती है|

आगे इसकी और विवेचना जल्द ही लेख में प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगें|

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शेष अगले अंक ……

“मैं” को पूर्ण रूप से गुरुचरणों में समर्पित कर दिया है अब अद्वैत ………
मन 【 गुरुवर की चरण धूलि 】

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