चेतना का अर्थ | चेतना की परिभाषा
Definition of Consciousness | Meaning of Consciousness | Chetna Ka Arth
| चेतना |
चेतना का अर्थ
चेतना एक बहुआयामी अवधारणा है। “चेतना वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपने अस्तित्व, विचारों, अनुभवों और अपने चारों ओर की दुनिया के प्रति जागरूक होता है।”
“चेतना” संस्कृत की “चित्” धातु से बना है, जिसका अर्थ है — “जानना”, “बोध करना”, “जाग्रत होना”, “जागरूक होना” ।
चेतना मस्तिष्क की न्यूरोनिक क्रियाओं की उपज है। – विज्ञान
“चेतना शुद्ध, शाश्वत और सर्वव्यापी है; यह आत्मा का स्वरूप है जो माया से ढकी होती है।” – अद्वैत वेदांत (भारतीय दर्शन)
“आत्मा का स्वभाव; यह निर्गुण ब्रह्म की अभिव्यक्ति है।”– शंकराचार्य
मनोवैज्ञानिकों द्वारा दी गई परिभाषाएँ –
“चेतना एक प्रवाह है जो निरंतर बदलता है पर अविच्छिन्न रहता है।” – विलियम जेम्स
“चेतना संपूर्ण अनुभवों का एक समग्र संगठन है, जो अलग-अलग हिस्सों का योग नहीं बल्कि एक एकीकृत संरचना है।” – मैक्स वर्टहाइमर
“चेतना को उन्होंने संज्ञानात्मक (Cognitive), भावात्मक (Affective) और क्रियात्मक (Psychomotor) क्षेत्रों में बाँटकर समझा जा सकता है।” – बेंजामिन ब्लूम
दार्शनिकों द्वारा दी गई परिभाषाएँ
“चेतना वह है जो सोचने की क्षमता को प्रमाणित करती है; मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ।” – रेने डेकार्ट
“चेतना वह संरचना है जो अनुभव को संभव बनाती है; यह संवेदनाओं को एक एकीकृत रूप में व्यवस्थित करती है।” – इमैनुएल कांट
“चेतना वह है जो व्यक्ति को स्वयं के रूप में पहचान प्रदान करती है; यह स्मृति और आत्म-चिंतन से जुड़ी है।” – जॉन लॉक
तुलनात्मक टिप्पणी
मनोवैज्ञानिक परिभाषाएँ चेतना को मस्तिष्क की प्रक्रिया और व्यवहार से जोड़ती हैं, जो इसे वैज्ञानिक जांच के लिए उपयुक्त बनाती हैं। उदाहरण के लिए जेम्स और बेंजामिन ने इसके गतिशील और स्तरबद्ध स्वरूप पर ध्यान दिया। दूसरी ओर दार्शनिक परिभाषाएँ चेतना को अधिक अमूर्त और व्यापक रूप में देखती हैं, जैसे डेकार्ट का आत्मा-केंद्रित दृष्टिकोण या वेदांत का आध्यात्मिक स्वरूप। मनोविज्ञान जहाँ चेतना को मापने और उसके प्रभाव को समझने पर केंद्रित है, वहीं दर्शन इसके मूल स्वरूप और अस्तित्वगत महत्व पर विचार करता है। दोनों दृष्टिकोण एक-दूसरे के पूरक हैं परंतु चेतना की पूर्ण व्याख्या अभी भी एक अनसुलझी पहेली बनी हुई है।