Wednesday, November 20, 2024

Meaning of Pleasure | आनंद का अर्थ

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आनंद का अर्थ | सुख का अर्थ
Meaning of Pleasure | Meaning  of Happiness | Sukh Ka  Arth 

| आनंद |

आनंद दुःख का एक सुनहरा, ख़ुशनुमा व जिंदादिली से लबरेज़ अहसास का नाम,

या फिर चैन को कैद करने की चाह रखने वाली मृगमरीचिका;

या फिर ईश्वरीय सरंक्षण में मिले त्वरित, आकस्मिक और क्षणिक आमोद प्रमोद का दूसरा पहलू ।

इसे आसानी से समझने के लिए कुछ तथ्यों , पूर्वानुमानों व कल्पनाओं का सहारा लेते हैं।

1. क्या भोज्यपदार्थों में मिठाई खाने से आनंद मिलता है या फिर प्रतिदिन पर्याप्त साधारण आहार लेने द्वारा
2. क्या शारीरिक सम्भोगवृत्ति आनंद का आधार है या फिर शारीरिक स्पर्श | संवेदना के व्यक्त द्वारा
3. जीत हासिल करने में दूसरों को पछाड़ने से आनंद मिलता है या फिर अपने प्रभुत्व को क़ायम | स्थापित करने की कवायद में
4. किसी अपनों की सहायता के बदले प्रसंशनीय कथन आनंद पहुंचाते हैं या फिर करुणामयी होकर सामर्थ्यनुसार मदद करने द्वारा मिले आत्मिक सन्तोष से
5. अपने विचारों को लिखने या क्रियान्वयन से आनंद मिलता है या फिर किसी अन्य द्वारा रचित अपनी समरूप विचारधारा को सिद्धि करती लेखनी | अनुसंधान को पढ़ने से
6. साधन सम्पन्नता | पसंदीदा वस्तु विशेष को हासिल करने से आनंद मिलता है या फिर किसी अन्य को अभाव से निःस्वार्थ उभारने में मिले सकून से | स्वार्थवश कूटनीतिक जीत से
7. इस प्रकृति यानि स्वंय को जानने की जिज्ञासा को शांत करती खोज या प्रक्रिया का हिस्सा होना आनंद देता है या फिर सृष्टि में मानवीय मूल्यों को दरकिनार कर मौजूद सुविधाओं को भोगने में
8. ईश्वरीय शक्ति को सर्वेसर्वा मानते हुए अपने इष्ट या भगवान से याचना के बदले में मिले प्रसाद को ग्रहण करने में आनंद मिलता है या फिर कर्मयोग से मिले प्रतिफल को भी प्रकृति को समर्पित करते हुए सिर्फ अपनी जरूरत को पूरा करने की अभिरुचि से

आप कौनसे बिंदु से सहमत हैं यह बड़ी बात नहीं है बड़ी बात तो तब है जब हम सभी बिन्दुओं को गहनता से समझने का प्रयास करते हैं इसी के साथ अपने मूल प्रश्न का उत्तर भी आपको समझने में आसानी रहेगी।

सुख को समझने हेतु आधार बिंदु हो सकते हैं –
1. क्या आनंद क्षणिक या फिर चिरकालिक है
2. क्या आनंद कभी मिट सकता है या फिर नित्य
3. क्या आनंद की प्राप्ति के पश्चात अन्य कि अभिलाषा शेष रहती है या किसी गन्तव्य की इच्छा शेष बनी रहती है
4. क्या आनंद को कोई छिन या चुरा सकता है या फिर सर्वसाधारण के लिए सहजता में उपलब्ध
5. क्या आनंद एक निजी अहसास है या फिर सर्वकालिक, सर्वमान्य और सार्वभौमिक
6. क्या आनंद प्राकृतिक रूप में है या मानवकृत
7. क्या आनंद एक मात्र स्वरूप में है या फिर विविध रूपों और आयामों में गतिमान
8. क्या आनंद किसी अन्य की पीड़ा का कारक भी बनता है या फिर कष्ट स्थिति में होते हुए भी आदर्श स्वरूप के हिस्सा होने का भ्रम | सहभागिता

उपरोक्त बिन्दुओं के तहत आनंद की पूर्ण व्याख्या देने का प्रयास अगले Article में करता हूँ। तब तक पूर्व में लिखित Article को आपसे साझा कर रहा हूँ।  मैं उम्मीद करता हूँ आपके मार्गदर्शन की जिससे मेरा दर्शन सही दिशा में आगे बढ़ सके।

Definition of Happiness | सुख की परिभाषा

These valuable are views on Meaning of Pleasure | Meaning  of Happiness | Sukh Ka  Arth 
आनंद का अर्थ | सुख का अर्थ

मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु प्रकृति के नियमों का यथार्थ प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध योगदान देना।

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jagmohan chugh
JAGMOHAN CHUGH
1 month ago

नमस्कार मित्र आपके द्वारा समझाया गई आनंद की परिभाषा बहुत ही अच्छे तरीके से समझ आई परंतु इसमें जो आठ नंबर बिंदु है वह मुझे बहुत ही अच्छा लगा कि जो आनंद ईश्वर के द्वारा दिया जाएगा वह स्थाई होगा बाकी तो सब क्षण मात्र के होंगे कुछ समय आप आनंदित रहेंगे फिर उसी तरह हो जाएगा इसलिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कि आपने समझाया आनंद क्या चीज होती है

Sandeep KUMAR
Sandeep
1 month ago

सर आप चुनिंदा शब्दों का चयन कहां से करते हैं, आप भी हमारी डीन मैम माननीया सरोज कौशल जी की ही भांति नए नए शब्दों के लिए शब्दकोश ही हो।

Mohan lal
Mohan lal
1 month ago

OK 👍 👌 🙆‍♀️ 🆗️

Sanjay Nimiwal
Sanjay Kumar
1 month ago

बहुत खूब 🙏👌👌

नादान इंसान ही आनंद ले पाता है,,
समझदार तो हमेशा उलझा रहता है।।

Dr.Vijeta
Dr.Vijeta
1 month ago

वास्तविक आनंद मानव की स्वयं की सोच पर निर्भर है वह चाहे तो औरों की सुख से सुखी चाहे तो औरों के सुख से दुखी दोनों हो सकता है

Dr. Saroj Kaushal
सरोज कौशल
1 month ago

आनन्द तभी प्राप्त हो सकता है जब आप चिन्ता नहीं चिन्तन करते हैं। आप व्यग्र नहीं रहते, अनवरत सकारात्मक प्रवृत्ति करते हैं।

Sarla Jangir
Dr. SARLA JANGIR
28 days ago

आनन्द वह है- जहाँ सुख का अनुभव हो | उस अवस्था में  प्रसन्नता, हर्ष, उत्साह, बहुत अधिक ऊर्जा का अनुभव हो, प्रीति हो, आसक्ति हो, मन प्रफुल्लित रहे, सुन्दर सुगन्धित पुष्प सा विकसित रहे वह आनंद है। किन्तु गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने कहा है- 
‘ये हि संस्पर्शजाः भोगाः दुःख योनयः एव ते। आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधैः।।५।२२।।’
 जो ये इन्द्रियों तथा विषयों के संयोग से उत्पन्न होनेवाले सभी भोग हैं, यद्यपि विषयी पुरुषों को सुख देने वाले लगते हैं, फिर भी दुःख के ही कारण हैं  | आदि अन्त वाले अर्थात् अनित्य, नाशवान हैं |
 हे ! कौन्तेय (कुन्ती पुत्र अर्जुन) बुद्धिमान विवेकी पुरुष उनमें नहीं रमता। यहां अर्जुन को कौन्तेय विशेष कारण से कहा गया है, क्योंकि कुन्ती ने भगवान् श्री कृष्ण की प्रार्थना करते हुए उनसे दुःख मांगा था जिससे कि  दुःख में उन्हें भगवान् श्री कृष्ण के दर्शन हो सके, और जिस दुःख में भगवान् श्री कृष्ण हों वह दुःख भी सुख है। सत्य चिर कालिक है – 
‘ संसार सुखस्य परिणाम दुःखम्।।’ मृगमरीचिका (mirage) में सूखे में पानी लगता है। उसे देख कर प्राप्त करने को दौड़ते हुए मृग-मानव का, काल मृगया (शिकार) कर लेता है। अहो महादुःखम्,शोकञ्च। इस दुःख और शोक की निवृत्ति के लिए, जहां से इस मिथ्या सुख के किरण का प्रक्षेपण हो रहा है | तैत्तिरीय उपनिषद् ब्रह्मानंदवल्ली २.९ के इस मन्त्र का मनन करें- ‘यतो वाचो निवर्तन्ते, अप्राप्य मनसा सह। आनन्दो ब्रह्मणो विद्वान्, न विभेति कुतश्चन इति।’ जहां से मन के साथ वाणी भी, उसे नही पाकर लौट आती है, उस ब्रह्म के आनन्द को जानने वाला किसी से भी भयभीत नहीं होता है।अवास्तविक आनन्द या आनंद का अर्थ तो सच्चिदानंद परमात्मा ही है। धन्यवाद एवं साधुवाद।

डॉ. सरला जागिड

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