गुस्से की परिभाषा | गुस्से का अर्थ
Definition of Anger | Meaning of Anger | Gusse Ki Paribhasha
| गुस्सा |
“” आवेश स्वरूप अपने संयम को खो देना ही गुस्सा है। “”
“” विषयवस्तु पर पकड़ ढीली होने पर अन्यत्र से नियंत्रण करने की खीझ ही गुस्सा है। “”
“” अहम की सिद्धि को न्याय से नहीं तो अन्याय से पूर्ण करने झुंझलाहट ही गुस्सा है। “”
“” अपने फैसले को सर्वमान्य करने की अनाधिकृत कुढ़न ही गुस्सा है। “‘
“” वास्तविकता की अस्वीकार्यता में मनचाहा परिवर्तन करने की चिढ़ ही गुस्सा है। “”
“” सिद्धांतहीन नाराजगी को व्यक्त करने की भड़ास ही गुस्सा है। “”
वैसे “” ग “” से गैरजिम्मेदाराना हरकत जहां जब भी हुई,
वहाँ शर्मिंदगी को उसने सदैव गले लगाया ;
“” स “” से सनक जहां चढ़ती है,
वहाँ बंदा नहीं सिर्फ जानवर ही छवि दिखाई पड़ती है ;
“” स “” से सर्वनाश जहां जब भी हुआ,
वहाँ मानवता सदैव खून के आँसू रोई है ;
“” वैसे गैरजिम्मेदाराना हरकत जब सनक पर सवार हो सर्वनाश की आकांक्षा करे तो वह गुस्सा ही है। “”
वैसे “” ग “” से गरियाना जहां इंसान की फितरत में समाने लगे,
वहाँ सिर्फ उल जलूल निकलना लाजमी है ;
“” स “” सब्जबाग जहां व्यवहारिकता को दरकिनार ही करने लगे,
वहाँ विनाश से पहले बुद्धि नष्ट होती है ;
“” स “” संजीदगी जहां जीवन के हिस्से से गायब होने लगे ,
वहाँ विनाश काले विपरीत बुद्धि की कहावत चरितार्थ हो ही जाती है ;
“” वैसे गरियाना सब्जबाग में शामिल हो संजीदगी को ही नास्तेनाबूत करने की जिद पकड़ ले तो वह गुस्सा है। “”
“” प्राणी द्वारा किसी के मन, वचन व कर्म की क्रिया का प्रतिरोधात्मक आकस्मिक कष्टदेय मनोभाव ही गुस्सा कहलाता है। “”
“” गुस्सा दिमाग की सोचने समझने की शक्ति यानि तार्किकता को क्षीण कर देता है। “”
“” गुस्सा कायरों की दो धारी तलवार है जो सामने वाले से पहले खुद को लहूलुहान करती है। “”
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गुस्से की परिभाषा | गुस्से का अर्थ
मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु प्रकृति के नियमों का यथार्थ प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध योगदान देना
Anger is one letter short of danger