आनन्द का स्वरूप | आनंद का अर्थ
Definition of Pleasure | Meaning of Happiness | Sukh Ka Sawroop
| आनंद |
उपरोक्त लिंक पूर्व में साझा किए गये इस विषयवस्तु पर विचार हैं अब इसी क्रम को आगे ले जाते हुये कुछेक बिन्दुवार विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है |
आनन्द को जानने की पिपासा सबकी है पर इसे जान ही लिया जाये यह जरूरी नहीं है क्योंकि जिन गुणों को आनन्द अंतर्निहित समाये हुये है। उसके गुण व स्वरूप का प्रथम दृष्टया में अभाव प्रतीत होता दिखाई पड़ता है जो वास्तव में शब्द की मूलतः संज्ञा को प्रदान करने में सहायक सिद्ध होता है।
आनन्द को जानने के सरल तरीके –
1. स्वयं में स्वयं की खोज की ओर प्रवृत्त होना है।
2. दूसरों को जानने की प्रवृत्ति में अरुचि व्यक्त करते हुए इसे चरितार्थ तक पहुंचने का प्रयास
3. दूसरों के द्वारा स्वयं के आंकलन को वरीयता से उसे हटाकर नीरसता की तरफ आगे बढ़ाना
4. दूसरों से किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा से दूरी बनाना
5. किसी भी प्रकार के वजूद को दरकिनार करते दंभ का त्याग और फिर उसमें भी आत्मसात की बढ़ते कदम को प्रोत्साहन
6. हिंसात्मक कृत्यों से परहेज करते हुए किसी भी प्रकार की जीव हत्या को सिरे से खारिज करना व अहिंसा के मार्ग को प्रशस्त करने में अभिरुचि बढ़ाना
7. सत्य और असत्य के फेर से बाहर निकलकर मानवीय प्रेम, करुणा व दया से बढ़कर क्षमाशीलता को जीवन का हिस्सा बनाना
8. ज्ञान जीवन को बेहतर करने का माध्यम है परन्तु यही जब शांति, सौहार्द व अस्तित्व के लिए बाधा बने तो उसकी जगह विवेकशील होकर यथार्थ में उत्सुकता व तार्किकता को बनाये रखना ही आनन्द प्राप्ति में अग्रसर होने का प्रमाण है।।
आनन्द को और आसानी से समझने के लिए निम्न प्रश्नों से रूबरू होना ही होगा –
1. क्या आनन्द को व्यक्त करने का सार्वभौमिक एक तय पैमाना हो सकता है
2. क्या आनन्द प्रकटीकरण का एकमात्र सर्वमान्य स्वरूप हो सकता है
3. क्या आनन्द की प्राप्ति का सर्वकालिक, सर्वविदित व सर्वव्यापक निश्चित स्रोत 【 वैचारिक या शारीरिक 】 हो सकता है
उपरोक्त प्रश्नोत्तरी आपके विचारों को वृहद स्वरूप प्रदान करने में तो सहायक सिद्ध होगी ही साथ ही साथ आपके निष्कर्ष को सर्वमान्य तक पहुँचाने में कारगर भी साबित होती है।
These valuable are views on Definition of Pleasure | Meaning of Happiness | Sukh Ka Sawroop
आनन्द का स्वरूप | आनंद का अर्थ
मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु प्रकृति के नियमों का यथार्थ प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध योगदान देना।