Tuesday, December 3, 2024

गर्त के मुहाने पर | किन्नर | Difficulties of LGBTIQ

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गर्त के मुहाने पर | किन्नर | Difficulties of LGBTIQ | Meaning of Transgender

“” इंसानियत के दोहरे मापदंड में उपेक्षित समाज में भी गर्त के मुहाने पर “” किन्नर “” “””

सभ्य समाज की सरंचना में सबको समानता, स्वतंत्रता व जीने का अधिकार शामिल होता है।
परन्तु आज इस आधुनिक युग में भी एक ही कहावत आज भी चरितार्थ होती प्रतित होती है।
“” जिसकी लाठी उसी की भैंस “”
यानि जिस वर्ग ने अपनी बात जितनी प्रमुखता से रखी उतना ही लाभान्वित हुआ।

उदाहरण के तौर –
कबिलाई जीवन शैली में तलवार 【हथियार】राज करती है।
बाद में बुर्जुआ वर्ग का अधिपत्य रहा।
इसके बाद फिर ताकत सल्तनत या शासक के माध्यम से कुटिलता व सर्व शक्ति के उपासक पास रही।
फिर मजदूर वर्ग को शोषण से उभारने में मार्क्सवादी विचारधारा का प्रमुख युग परिवर्तन में कामयाबी।
आज पूंजीवाद थोड़ा social welfare करते हुए फिर से राज्य नई अवधारणा को देखा जा सकता है।

यानि आप कितने भी बड़े वर्ग से क्यों न हों जरूरी यह कि आपकी समाज में जरूरत या प्रतिनिधित्व कितना है। यह आपकी दशा व दिशा दोनों को तय करता है।

आज इतिहास गहराई में नहीं ले जाकर सरसरी तौर पर बताने की कोशिश रहेगी। देश की आजादी से पूर्व डॉ. भीमराव अंबेडकर के मजबूत नेतृत्व से अनुसूचित जाति व जनजाति को 1928 में आरक्षण दिलवाने में नीव रख दी । जिसे1932 के पूना पैक्ट ने पुख्ता कर दिया। यानि आजादी से पूर्व ही ST, SC के अधिकारों की रक्षा हुई।

परन्तु महिलाओं का प्रतिनिधित्व न के बराबर था अतः उनको आंशिक राजनैतिक प्रतिनिधित्व भी 1993 में जाकर मिलता है। विभिन्न कुरूतियों पर रोक भी 21 सवीं सदी के शुरूआत या 20वीं सदी के अंतिम पड़ाव में जाकर देखने को मिलता है।
मानवीय संवेदनाओं की हद तो ओबीसी वर्ग की भागीदारी जनसंख्या में 54 ℅ होने के बावजूद भी 2006 में केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में आरक्षण दिया जाता है।

अब सुनिये इस ट्रांसजेंडर वर्ग को वोटिंग राइट भी 1994 में जाकर मिलता है।
2014 में सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से तीसरे लिंग की मान्यता दी जाती है। यह हमारे समाज की क्रूरता का परिचायक ही रहा जो कि आजादी के 60 साल बाद एस वर्ग को पहचान की कानूनी मान्यता मिली।

2018 में न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 377 में आंशिक बदलाव करते हुऐ समलैंगिक सैक्स को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया।

2014 से लेकर12019 में जाकर “”द ट्रांसजेंडर पर्सन्स【प्रोटेक्शन ऑफ राइट】 एक्ट, दिसम्बर 2019 में राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से कानून के रूप में लागू हुआ।

जो आज भी विवाद व न्यायिक सुधार में एक मजाक से ज्यादा कुछ नहीं है।

1. शारीरिक शोषण में सजा के प्रावधानों में अंतर समानता के अधिकार को चुनौती देता है।
2. वर्ग को परिभाषित करने के तथ्यों में भारी अंतर्विरोध है।
3. शिक्षा व सिविल अधिकारोँ की सही से को व्याख्या नहीं करता।
4. नोकरी में आरक्षण या शोषण के खिलाफ शिकायत व सजा के प्रावधानों में भी अस्पष्टता झलकती है।
5. राजनैतिक प्रतिनिधित्व जहां एंगलो इंडियन की जनसंख्या कम होने के उपरांत भी दो नॉमिनेट सीट संसद में आरक्षित होना । पर इस वर्ग के साथ उपेक्षा का भाव दर्शाते हुए विधान सभा या लोकसभा में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं किया गया।

वैसे जनसंख्या में 50% महिलाओं की हिस्सेदारी होने के उपरांत भी आज तक महिला को राजनैतिक प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया तो इस वर्ग के लिये न्यायिक उम्मीद पुरूष प्रधान समाज से करना हास्यास्पद लगता है।

वैसे महिलाओं या ट्रांसजेंडर को अधिकार न के बराबर मिले यह पुरूषवादी , धर्मान्धता व संकुचित मानसिकत का द्योतक रही है।

समाज मे हिजड़ा वर्ग के लिए घृणित छुआछूत का माहौल सदियों से बनाया गया। हालांकि ये शारीरिक विकृति है न कि मानसिक आदत या लत। इसको थोड़ा वैज्ञानिक तरीके से समझने की कोशिश करते हैं।

सैक्स 【sex】दो प्रकार से होते हैं।
Heterosexuals and Homosexuals.
In which two participates female and male in Heterosexuality.
In which Homosexuality have fifth type of categories. Lesbian, Gay, Bisexuals, Transh3 and Intersexual

जब मादा की अंडकोशिकाएँ व नर के शुक्राणुओं से मिलती है तो zygote बनता है। आगे चलकर ये भ्रूण में बदलता है।
पुरूष के Y chromosome पर SRY Gene रहता है। 8 हफ्ते के उपरांत जब testosterone में secretion होता है तो male gender की उत्पति होती है।

महिलाओं SRY Gene नहीं होता है अतः महिलाओं को लड़के ना होने का दोषी मान लेना मूर्खता व क्रूरता की निशानी है।
अब chromosomes के मिलने के समय इनमें आंशिक विघटन हो जाये तो और भ्रूण के विकास में विसंगतियों के चलते Lesbian, Gay, Bisexuals, Transh3 and Intersexual की उत्पत्ति बनती हैं।
तो इन लोगों के ग्रुप को LGBTI यानि QUEER कहा जाने लगा है।

यह सब बताकर कई मुद्दों पर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ।
प्रकृति ने सब जीवो की उत्पत्ति की है। मादा व नर श्रेष्ठ कृति है। यदि जन्म आधार पर दण्ड या अछूत मानकर त्याग कितना जायज।
ऊपर से समाज में उनको पढ़ने लिखने के अधिकार से वंचित रखना। नोकरी में भी भागीदारी न देना। फिर उनको हेय दृष्टि से देखना कितना जायज।

आसानी से समझने के लिए एक अच्छे परिवार में जन्म के उपरांत अच्छी परवरिश या शिक्षा न होना बेरोजगार, उपद्रवी या अपराधी बना देता है।तो इस पूरे वर्ग की अनदेखी क्या क्या हो सकता है यह सोचने मात्र से डर लगता है यह किन्नर वर्ग ने झेला है।

इस आपातकाल ने समाज के विभिन्न पहलुओं से मुझे अवगत करवाया जो मैंने आपसे साझे किये हैं।

निष्कर्ष के रूप में –
1. सत्ता जिसकी अधीन रही उसने अपने हित को ही सर्वोपरि व सरंक्षित रखा।

2. पुरुष प्रधानता , ब्राह्मणवाद की धर्मान्धता स्त्री, किन्नर व दलित पिछडों के लिये अभिशाप बनी।

3. संघर्षपूर्ण आजादी के बाद भी कार्य उत्तरदायित्व व समय सीमा का निर्धारण प्रशासनिक व राजनैतिक दलों पर न होना। लालफीताशाही व भ्रष्टाचार के दलदल में समाज को झोंकना।

4. मानवीय मूल्यों में समानता के अधिकारों को रौंदते राजनैतिक दलों पर किसी तरह के रोक, अंकुश या वापसी प्रक्रिया का न होना। राजतंत्र व तानाशाही कार्यप्रणाली की ओर अग्रसरता में छूट, लालच की चासनी में परस्पर भेदभाव, वैमनस्य पैदा करती घृणित राजनीति का वर्चस्व कायम रखने की होड़।

आज इस बीमारी में स्वस्थ व सुरक्षित रहने के लिए हम हर कीमत देने के लिए तैयार हैं।

पर मानवीय मूल्यों की खातिर कुछ वर्ग को अधिकार देकर उनके साथ न्याय कर सकते हैं।

1. महिलाओं व किन्नरों को सम्पूर्ण शिक्षा का अधिकार में सौहार्द वातावरण को वरीयता।
2. सामाजिक नेतृत्व व राजनैतिक प्रतिनिधित्व को स्वस्थ मन से स्वीकार्यता।
3. छुआछूत या जातिय ऊँच नीच से किनारा।
4. राजनैतिक दलों व प्रशासनिक अधिकारियों की जवाबदेही तय हो उसके लिए अपनी आवाज को जन आंदोलन को समर्पित करें।
5. इस आपात स्थिति में ज्यादा से ज्यादा Offline खरीददारी को अपनी रोजमर्रा की आदत का हिस्सा बनायें।
विशेषकर छोटे दुकानदार व रेहड़ी पटरी वालों से।
6. दहेज प्रथा को सिरे से नकारने का जज्बा। हमारा उपहार सिर्फ शिक्षा व रोजगार व सुरक्षा की गारंटी देती व्यवसायिक या तकनीकि व Self De fence शिक्षा।

These valuable are views on गर्त के मुहाने पर | किन्नर | Difficulties of LGBTIQ | Meaning of Transgender

मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु प्रकृति के नियमों का यथार्थ प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध योगदान देना

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Amar Pal Singh Brar
Amar Pal Singh Brar
2 years ago

प्रासंगिक तथा प्रभावी विश्लेषण

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