मजदूर की परिभाषा | मजदूर का अर्थ
Meaning of Labor | Definition of Labor | Majdoor Ki Paribhasha
| Labor or Helplessness shows Life |
| मजदूर या मजबूरी को दर्शाती जिंदगी |
मजदूर का मतलब जहां शुरुआत में “” म “” से “” मुख्लिस “” होता है ,
वहां न्याय की उम्मीदों पर तो पहले ही पानी फिर जाता है ;
दूसरा अक्षर “” ज “” से “” जानकर हो जो काम का “” होता है ,
है जो हैरत की बात वहां वही सबसे बड़ा बेवकूफ बना होता है ;
तीसरा अक्षर “” द “” से “” दस्तूर ऐ हाजिरजवाबी “” होता है ,
वहां दास्ताँ में नाफरमानी का इनाम आँसुओ से चुकाना पड़ता है ;
चौथा अक्षर ” र ” से “” रहमत की राहों का राहगीर “” होता है ,
वहां हक की बात करना ही गुनाह होता है ;
मजदूर वर्ग के साथ ऐसा ही क्यों होता है ,
हुनरमन्द ही क्यों हमेशा गर्जमन्द जो होता है ;
गलती चाहे मालिक या मजदूर किसी की भी क्यों न हो ,
गेट के बाहर हमेशा मजबूर ही होता है ;
फैसला ज्यादातर रसूख के पक्ष में ही होता है ,
इसीलिये खुद्दारी को बग़ल में छोड़ मजदूर बिना शर्त काम पर होता है ;
उड़ने की तमन्ना तो बहुत होती है ख्वाहिशों में ,
तभी तो सपनों की उड़ान में मजबूर सदैव पीछे होता है ;
ईमान जब नशा बनकर मजदूर की रगों में दौड़ता है ,
तो व्यवसाय खिलखिला हर दिशा में फैलता है ;
मजदूर की सच्चाई जब इमारत में मजबूती से नींव लगाती है ,
तो साम्राज्य बड़ी खूबसूरती से आसमां चूमता है ;
फिर न जाने क्यों बुरे वक़्त में मालिक इन्शानियत से पहले फायदा सोचता है ,
जिसने पहुँचाया शीर्ष पर उसे सरेराह बीच बाजार छोड़ता है ;
वैसे कटु सत्य है नोकरशाह ही मजदूर पर सबसे ज्यादा जुल्मों सितम करता है ,
मानस इन्तहा होने पर न जाने क्यूं फिर वक़्त “” सबको एक साथ तराजू से ही तौलता है “” ;
These valuable are views on Meaning of Labor | Definition of Labor | Majdoor Ki Paribhasha
मजदूर की परिभाषा | मजदूर का अर्थ
मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु प्रकृति के नियमों का यथार्थ प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध योगदान देना।
इतने सुंदर शब्दो में और स्पष्ट रूप से बताया मजदूर का अर्थ अच्छा लगा और मैं आगे भी आशा करूंगा इस तरह से स्पष्ट ज्ञान का
It’s my pleasure.
व्यथा का स्टीक चित्रण
Shandaar
Waqt sabko “ek sath hi terazu me tolta h”
Nice
मैं एक मजदूर हूँ, ईश्वर की आंखों से मैं दूर हूँ।
छत खुला आकाश है, हो रहा वज्रपात है।
फिर भी नित दिन मैं, गाता राम धुन हूं।
गुरु हथौड़ा हाथ में, कर रहा प्रहार है।
सामने पड़ा हुआ, बच्चा कराह रहा है।
फिर भी अपने में मगन, कर्म में तल्लीन हूँ।
मैं एक मजदूर हूँ, भगवान की आंखों से मैं दूर हूँ।
आत्मसंतोष को मैंने, जीवन का लक्ष्य बनाया।
चिथड़े-फटे कपड़ों में, सूट पहनने का सुख पाया
मानवता जीवन को, सुख-दुख का संगीत है।
मैं एक मजदूर हूँ, भगवान की आंखों से मैं दूर हूँ।
So nice thinking