श्रीमद् भागवत कथा का शाब्दिक अर्थ | श्रीमद् भागवत कथा क्या है
Meaning of Shrimad Bhagwat Katha| Shrimad Bhagwat Katha Kya Hai
“” श्रीमद् भागवत कथा “”
पौराणिक कथाओं व मान्यताओं के अनुसार –
“” भगवान के प्रति सच्ची श्रद्धा रखते हुए भक्ति मार्ग द्वारा ईश्वर का सानिध्य यानि मोक्ष प्राप्ति करने वाले भक्तों के जीवन वृतांत का संकलन ही “” श्रीमद् भागवत कथा “” “”
सैद्धांतिक दृष्टि से व्याख्या
सन्धि विच्छेद द्वारा —
श्री + मद् + भागवत + कथा = श्रीमद् भागवत कथा
श्री = शिक्षित होने पर शालीन हो, रणबांकुरा होने के साथ रसिक भी हो और ईमानदार के साथ ईश्वरनिष्ठ हो तो, वह “” श्री “”
मद् = मानस की ध्यान साधना के साथ दयादृष्टि बनाये रखना ही “” मद् “”
भागवत = भवसागर तारणहार के साथ गुणनिधि, विश्वजीत का तर्करहित अनुयायी होना ही प्राणी को “” भागवत “” कहलवाता है।
कथा = कर्मशील प्राणी जब थकान मिटाने हेतु ईश्वर से भक्ति, वैराग्य और मुक्ति की चाह रखने लगे तो ऐसे जीवन चरित्र “” कथा “” का स्वरुप लेने लगती है।
दूसरे शब्दों में –
श्री + म + द् + भ + अ + ग + व + त + क + थ + अ = श्रीमद् भागवत कथा
श्री = जो श्रद्धेय होने के साथ इंद्रजीत भी हो
म = माया
द् = दूर करने वाला व दृष्टा भी
श्रीयुक्त जो माया दूर करने वाला व दृष्टा ही “” श्रीमद्भ “”
भ = भक्तवत्सल के साथ संहारक हो
अ = अनुगामी होना
ग = गतिशील होने के साथ शाश्वत हो
व = विश्वरूप के साथ अविनाशी हो
त = तार्किक होने के साथ अनुगृहीत होना
“” भक्तवत्सल के साथ गतिशील , विश्वरूप का तार्किक होने के साथ अनुगृहीत होना ही मनुष्य को “” भागवत “” बनाती है। “”
क = कल्पनाशील होने के बावजूद व्यवहारिक पात्र
थ = थिरकते कदमों में भक्तिमय होने की सात्विकता
अ = असीम कृपा के भावयुक्त आचरण
“” कल्पनाशील होने के बावजूद व्यवहारिक पात्र में थिरकते कदमों में भक्तिमय होने की सात्विकता व असीम कृपा के भावयुक्त आचरण का जीवनी ही “” कथा “” है।
अन्य शब्दों में –
श्री + म + द् + भ + अ + ग + व + द् + क + थ + अ = श्रीमद् भागवत कथा
श्री = जिसकी श्रांत भावानुभूति होते हुए भी ईश्वर पर आसक्ति हो तो, वह श्री कहलाता है ।
म = मानस के ध्यान प्रति अधीर हो ।
द् = दरवेश होते हुए भी स्वंयम्भू हो।
“” श्रीयुक्त होकर मानस के ध्यान के प्रति अधीर जो दरवेश होते हुए भी स्वंयम्भू हो वही “” श्रीमद् “”
भ = भविष्य दृष्टा के साथ अकल्पनीय हो
अ = अनुसरणकर्ता
ग = गंधहीन होने के उपरांत सुगन्धित हो
व = विराट पुरुष के साथ अतिसूक्ष्म हो
त = तृप्ति भाव होने पर उसकी पिपासा व्याप्त हो
“” भविष्य दृष्टा , विराट पुरूष के प्रति तृप्ति भाव होने पर भी उसकी पिपासा व अनुसरणकर्ता बने रहना ही जीव को “” भागवत “” कहलवाती है।
क = कर्मयोग निभाने में भक्ति को प्राथमिकता देते हुए पात्र
थ = थपकी यानि आशीर्वाद भरा हाथ
अ = अनुरक्ति ईश्वरीय प्रेम की
“” कर्मयोग निभाने में भक्ति को प्राथमिकता देते हुए पात्र जब थपकी यानि आशीर्वाद भरे हाथ की चाह या अनुरक्ति और अनुराग करे तो, ऐसे वृत्तांत “” कथा “” कहलवाती है। “”
वैसे साधारण शब्दों –
“” भगवान विष्णु की भक्ति में तल्लीन प्राणियों की अविरल , निश्चल त्याग व समर्पण को दर्शाते जीवन वृतांत
ही श्रीमद् भागवत कथा कहलाती है। “”
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श्रीमद् भागवत कथा का शाब्दिक अर्थ | श्रीमद् भागवत कथा क्या है
मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु प्रकृति के नियमों का यथार्थ प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध योगदान देना।
सटीक व्याख्या 🙏👌🙏
सच्चे मन से ऐसे कर्म करना,,,
जिससे किसी जीव का दिल ना दुखे।।।