Thursday, August 7, 2025

Meaning of Trust | मोक्ष की पहली सीढ़ी

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“विश्वास” | “मोक्ष की पहली सीढ़ी”  
Meaning of Faith | Meaning of Belief | Meaning of Trust

विश्वास” | “मोक्ष की पहली सीढ़ी”

विश्वास” का अर्थ          

“विश्वास” का अर्थ है किसी वस्तु, व्यक्ति, विचार या ईश्वर पर श्रद्धा, भरोसा या दृढ़ता का भाव।

यह मनुष्य के मन, बुद्धि और भावना का वह गुण है जो अनिश्चितता, संदेह और भय से परे जाकर स्थायित्व और निश्चितता प्रदान करता है। विश्वास का आधार अनुभव, ज्ञान और आंतरिक स्वीकृति पर निर्भर करता है।

अन्य शब्दों में –

जीवन का आधार” | दृढ़ भरोसा या श्रद्धा” | जो संदेह से मुक्त हो और मन को स्थिरता प्रदान करे।”

यह व्यक्ति के भीतर आत्मिक स्थिरता और ईश्वर पर समर्पण का भाव जगाता है।

विश्वास” शब्द की व्युत्पत्ति

“विश्वास” संस्कृत मूल शब्द “वि” [विशेष रूप से] और “श्वस्” [सांस लेना या जीवन] से मिलकर बना है।

इसका अर्थ है “जीवन का आधार” या “वह जो मनुष्य के लिए स्थिरता और शांति का कारण बनता है।”

 

विश्वास के मुख्य तत्त्व

A . श्रद्धा [Faith] और भरोसा [Trust]

श्रद्धा वह भाव होता है, जो तर्क से परे भी सत्य को स्वीकार करता है।

भरोसा वह भाव है, जो दूसरों के प्रति निष्ठा और पारस्परिक सम्मान को बनाए रखता है।

B. आत्मज्ञान [Self-Belief]

स्वयं की क्षमताओं, ज्ञान और धैर्य पर भरोसा करना।

C. सत्यता और प्रमाण [Conviction]

जब भावना किसी सत्य पर आधारित होती है, चाहे वह व्यक्तिगत अनुभव से प्राप्त हुई हो या किसी उच्च सिद्धांत पर आधारित हो तो वह विश्वास का निर्माण करती है।

मुख्य प्रक्रियाएं:

स्वयं पर विश्वास [ आत्मज्ञान और आत्मबल ]

दूसरों पर विश्वास [ करुणा, सेवा, और श्रद्धा ]

ईश्वर पर विश्वास [ समर्पण और भक्ति ]

 

विश्वास” के विभिन्न आयामों में अर्थ-

  1. दार्शनिक परिप्रेक्ष्य से –

विश्वास वह दृढ़ मानसिक स्वीकृति है, जो किसी विचार या तथ्य को      सत्य मानकर स्वीकार करती है, भले ही इसका प्रत्यक्ष प्रमाण न हो।

यह तर्क और भावनाओं का संतुलन है।

उदाहरण: “मैं आत्मा और परमात्मा के अस्तित्व में विश्वास करता हूँ।”

  1. आध्यात्मिक दृष्टि से –

विश्वास ईश्वर पर समर्पण और श्रद्धा का भाव है।

यह आत्मा और ब्रह्म के संबंध को समझने और स्वीकार करने का माध्यम है।

उदाहरण: भक्त का अपने इष्टदेव के प्रति विश्वास।

  1. सामाजिक और व्यक्तिगत संदर्भ में –

ऐतबार का भाव है जो मनुष्य के आपसी संबंधों का आधार बनाता है।

ऐतबार बताता है कि दूसरे व्यक्ति ईमानदार, विश्वसनीय और अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान हैं।

उदाहरण: मित्रता और परिवार के रिश्तों में विश्वास।

  1. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से

यकीन वह मनोवैज्ञानिक अवस्था है, जिसमें व्यक्ति बिना प्रमाण के किसी निष्कर्ष को सही मानता है।

यह एक प्रकार की मानसिक स्वीकृति है जो अनुभवों और ज्ञान पर आधारित हो सकती है।

 

विश्वास और मोक्ष के बीच संबंध-

भारतीय दर्शन के अनुसार, विश्वास मोक्ष (आध्यात्मिक मुक्ति) प्राप्ति का मूल आधार है। इसका प्रभाव आत्मा, समाज और ईश्वर पर व्यक्ति के दृष्टिकोण को गहराई से प्रभावित करता है।

  1. आत्मिक [आत्मा] विश्वास और मोक्ष –

आत्मिक विश्वास [स्वयं पर विश्वास]

अर्थ: स्वयं की क्षमताओं और आंतरिक शक्ति पर भरोसा।

महत्त्व: आत्मविश्वास के बिना कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में उन्नति नहीं कर सकता। यह हमें अपने कर्मों और उद्देश्यों में स्थिर रहने की प्रेरणा देता है।

अहं ब्रह्मास्मि” [बृहदारण्यक उपनिषद 1.4.10]

अर्थ: “मैं ब्रह्म हूँ।”

आत्मज्ञान का आधार –
मोक्ष प्राप्ति का पहला चरण है आत्मा को ब्रह्म से जोड़ना। आत्मा में ब्रह्म का वास है। स्वयं पर विश्वास का अर्थ है, अपने भीतर ब्रह्म के स्वरूप को पहचानना।

सत्यं ज्ञानं अनन्तं ब्रह्म। [तैत्तिरीय उपनिषद 2.1.1]

अर्थ: ब्रह्म सत्य, ज्ञान, और अनंत है।

श्रद्धा श्रद्धा धर्मं श्रेयांसि।
[छांदोग्य उपनिषद 3.14.1]

अर्थ: श्रद्धा (विश्वास) धर्म और श्रेष्ठता का मूल है।

 

  1. विश्वास और अद्वैत मार्ग मोक्ष –

तत्त्वमसि।
[छांदोग्य उपनिषद 6.8.7]

अर्थ: “तुम वही हो।”

तत्त्वमसि” [छांदोग्य उपनिषद 6.8.7]

“तुम वही हो”। यह विश्वास आत्मा और ब्रह्म की एकता को दर्शाता है।

तज्जलान् इति।” [छांदोग्य उपनिषद् 3.14.1]

तत्: वह (ब्रह्म),

जलान्: जल (पानी) से उत्पन्न, यहाँ जल का अर्थ व्यापक रूप से “उत्पत्ति” से लिया गया है।

इति: ऐसा कहा गया है।

“तज्जलान्” शब्द का तात्पर्य उस ब्रह्म से है जिससे यह सारा संसार उत्पन्न हुआ है, जिसमें यह संसार स्थित है और जिसमें अंततः लय हो जाता है।

 

  1. दूसरों पर विश्वास और मोक्ष –

सामाजिक विश्वास [दूसरों पर विश्वास]

अर्थ: समाज और व्यक्तियों पर भरोसा करना।

महत्त्व: विश्वास से ही रिश्ते, समाज, और राष्ट्र की नींव बनती है। दूसरों पर विश्वास के बिना मानवता टिक नहीं सकती।

श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्।” [गीता 4.39]

श्रद्धा और विश्वास के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होता। दूसरों पर विश्वास व्यक्ति को ज्ञान और विकास का अवसर देता है।

योगस्थः कुरु कर्माणि।” [गीता 2.48]

योगस्थ होकर कर्म करना, मोक्ष प्राप्ति का साधन है। यह तभी संभव है जब व्यक्ति स्वयं पर और दूसरों पर विश्वास करे।

सर्वं खल्विदं ब्रह्म।” [छांदोग्य उपनिषद 3.14.1]

ब्रह्म की सर्वव्यापकता का बोध “दूसरों पर विश्वास” का आधार है।

 

करुणा, सेवा व विश्वास और मोक्ष –

दूसरों पर विश्वास से व्यक्ति करुणा, सेवा, और त्याग के गुणों को अपनाता है। ये गुण कर्मयोग का हिस्सा हैं, जो मोक्ष प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण मार्ग है।

परोपकाराय पुण्याय।”

परोपकाराय फलन्ति वृक्षा:
परोपकाराय वहन्ति नद्य:।
परोपकाराय दुहन्ति गाव:
परोपकारार्थमिदं शरीरम्॥ “ [मनुस्मृति]

दूसरों का कल्याण करना पुण्य है, और यह व्यक्ति को मुक्ति की ओर ले जाता है। यानि  मोक्ष प्राप्ति के मार्ग को प्रशस्त करता है।

 

  1. ईश्वर पर विश्वास और मोक्ष

आध्यात्मिक विश्वास [ईश्वर पर विश्वास]

अर्थ: ईश्वर, धर्म, और शाश्वत सत्य पर भरोसा।

महत्त्व: ईश्वर पर विश्वास से व्यक्ति को जीवन की कठिनाइयों को सहने का बल मिलता है। यह उसे मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।

“सर्वं खल्विदं ब्रह्म।“  [छांदोग्य उपनिषद 3.14.1]

अर्थ: यह सम्पूर्ण सृष्टि ब्रह्म है। ईश्वर पर विश्वास व्यक्ति को इस सत्य को समझने में सहायक बनता है।

मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।
[गीता 18.66]

अर्थ: सभी धर्मों को त्यागकर केवल मुझमें (ईश्वर में) शरणागत हो। मैं तुम्हें पापों से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करूंगा।

समर्पण और भक्ति का मार्ग
ईश्वर पर विश्वास भक्ति योग का मूल है। यह व्यक्ति को अहंकार और भौतिक इच्छाओं से मुक्त करता है।

सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।” [गीता 18.66]

ईश्वर पर पूर्ण विश्वास और समर्पण मोक्ष का सबसे सरल मार्ग है।

ईश्वर पर विश्वास और प्रेम संबंध का मार्ग

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।
[गीता 9.22]

अर्थ: जो मुझमें (ईश्वर में) अनन्य विश्वास और भक्ति रखते हैं, उनके योग-क्षेम का मैं स्वयं वहन करता हूँ।

यस्य श्रद्धा स जीवति।
[भक्ति सूत्र]

अर्थ: जिसके पास श्रद्धा (विश्वास) है, वही आध्यात्मिक रूप से जीवित है।

 

  1. ज्ञान पर विश्वास और मोक्ष –

सांख्य दर्शन के अनुसार, पुरुष और प्रकृति के ज्ञान के बिना मोक्ष असंभव है। यह ज्ञान तभी संभव है जब व्यक्ति सांख्य सिद्धांतों पर विश्वास करे।

तस्मात् तत्त्वज्ञानात् मोक्षः।
[सांख्य कारिका 64]

अर्थ: तत्त्वज्ञान (आत्मा और प्रकृति का भेद) से मोक्ष संभव है।

 

  1. तर्क के साथ विश्वास और मोक्ष

वैज्ञानिक और तर्कसंगत विश्वास       

अर्थ: अनुभव, तर्क, और प्रमाण के आधार पर किसी तथ्य को सत्य मानना।

महत्त्व: यह जीवन में संतुलन बनाए रखता है, अंधविश्वास से बचाता है, और व्यक्ति को यथार्थवादी बनाता है।

न्याय दर्शन में मोक्ष प्राप्ति के लिए तर्क और प्रमाण का सहारा लिया गया है, लेकिन तर्क से आगे बढ़कर सत्य पर विश्वास करना अनिवार्य है।

तर्क्यं हि परं ज्ञानं।
[न्याय सूत्र 1.1.40]

अर्थ: तर्क से प्राप्त ज्ञान ही परम ज्ञान है।

 

  1. ध्यान पर विश्वास और मोक्ष

योग दर्शन के महर्षि पतंजलि ने “श्रद्धा” (विश्वास) को योग साधना का अनिवार्य अंग बताया है।

श्रद्धा-वीर्य-स्मृति-समाधि-प्रज्ञा पूर्वक इतरेषाम।
[योगसूत्र 1.20]

अर्थ: श्रद्धा (विश्वास), बल, स्मृति, समाधि, और प्रज्ञा के माध्यम से योगी सिद्धि और मोक्ष प्राप्त करता है।

 

  1. गुरु पर विश्वास और मोक्ष –

गुरु पर विश्वास के बिना ज्ञान असंभव:

मोक्ष प्राप्ति के लिए गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक है।

गुरु पर विश्वास ही ईश्वर के प्रति विश्वास का प्रतीक है।

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः।”

तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।” [भगवद गीता, 4.34]

गुरु पर विश्वास और उनकी सेवा के बिना ईश्वर का ज्ञान और मोक्ष प्राप्ति संभव नहीं है।

दूसरों पर विश्वास, भक्ति योग का भी आधार है। भक्त दूसरों के माध्यम से ईश्वर की सेवा करता है।

विश्वास की सार्थकता –

  1. विश्वास जीवन का आधार है:

विश्वास के बिना जीवन अस्थिर और निरर्थक हो जाता है।

यह आत्मा को शांति, मन को स्थिरता और समाज को सामंजस्य प्रदान करता है।

2. विश्वास मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है:

आत्मिक विश्वास आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।

दूसरों पर विश्वास सेवा और करुणा का मार्ग दिखाता है।

ईश्वर पर विश्वास भक्ति और समर्पण को सशक्त बनाता है।

3. आध्यात्मिक संदेश:

“स्वयं को ब्रह्म मानकर आत्मा को जानो। दूसरों में ब्रह्म को पहचानो। ईश्वर में पूर्ण विश्वास रखो। यही मोक्ष का मार्ग है।”

“” “विश्वास” केवल एक भाव नहीं है, बल्कि जीवन और मोक्ष का आधार है। यह आत्मा की दिव्यता, समाज के सामंजस्य, और ईश्वर के प्रति समर्पण का मार्ग है। विश्वास ही वह शक्ति है, जो व्यक्ति को जीवन के बंधनों से मुक्त कर, उसे मोक्ष की ओर अग्रसर करता है। विभिन्न शास्त्रों और दर्शनों में “विश्वास” के महत्व को प्रमाणित करने वाले श्लोक स्पष्ट करते हैं कि बिना विश्वास के न तो ज्ञान संभव है, न भक्ति, और न ही मुक्ति। “”

These valuable are views on Meaning of Faith | Meaning of Belief | Meaning of Trust
“विश्वास” | “मोक्ष की पहली सीढ़ी”

 

विचारानुरागी एवं पथ अनुगामी –

मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक】
अनुयायी – मानस पंथ
शिष्य – डॉ औतार लाल मीणा
विद्यार्थी – शोधार्थी, दर्शनशास्त्र विभाग 【 JNVU, Jodhpur 】
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों को जगत के केंद्र में रखते हुऐ शिक्षा, समानता व स्वावलंबन का प्रचार प्रसार में अपना योगदान देने का प्रयास।
बेबसाइट- www.realisticthinker.com

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Mahesh Soni
Mahesh Soni
6 months ago

इसे जरा सरल भाषा मे लिखते है तो कुछ इस तरह लिख सकते है:

विश्वास: मोक्ष की पहली सीढ़ी
विश्वास का अर्थ
विश्वास का मतलब है किसी वस्तु, व्यक्ति, विचार या ईश्वर पर दृढ़ भरोसा और श्रद्धा। यह अनिश्चितता और संदेह से परे जाकर मन को स्थिरता और शांति प्रदान करता है।
विश्वास का महत्व

  1. आत्मविश्वास – खुद पर भरोसा, जो सफलता और आत्मिक विकास का आधार है।
  2. दूसरों पर विश्वास – यह रिश्तों और समाज को मजबूती देता है।
  3. ईश्वर पर विश्वास – जीवन के संघर्षों में संबल देता है और भक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।

विश्वास के आयाम

  1. आध्यात्मिक विश्वास – ईश्वर पर समर्पण और भक्ति से मोक्ष की ओर बढ़ना।
  2. सामाजिक विश्वास – आपसी भरोसे से समाज में शांति और सहयोग।
  3. वैज्ञानिक दृष्टिकोण – तर्क और अनुभव पर आधारित विश्वास।

विश्वास और मोक्ष
भारतीय दर्शन के अनुसार, विश्वास आत्मज्ञान और ईश्वर से जुड़ने का माध्यम है।

  • आत्मिक विश्वास: “मैं ब्रह्म हूँ” (अहं ब्रह्मास्मि) आत्मा की पहचान कराता है।
  • दूसरों पर विश्वास: यह सेवा और करुणा को बढ़ावा देता है।
  • ईश्वर पर विश्वास: भक्ति और समर्पण से व्यक्ति मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।

निष्कर्ष
विश्वास जीवन का आधार है। यह आत्मा को स्थिरता, समाज को संतुलन, और व्यक्ति को ईश्वर से जोड़ता है। बिना विश्वास के न तो ज्ञान संभव है, न भक्ति, और न ही मोक्ष।
संदेश
“स्वयं पर, दूसरों पर, और ईश्वर पर विश्वास करें। यही मोक्ष का मार्ग है।”

Sarla Jangir
Dr.Sarla Jangir
6 months ago

विश्वास का आधार उतना गहरा, अटल, अचल होना चाहिए जितना प्रहलाद को था, कि उस पर उसके विष्णु असीम कृपा रखते हैं।

Sandeep KUMAR
Sandeep
6 months ago

बहुत ही अच्छा।

Ajay Soni
Ajay Soni
6 months ago

मानस जिले सिंह जी, ईश्वर पर विश्वास ही मोक्ष प्राप्ति की प्रथम सीढ़ी है, पर उसे पाना कोन चाहता है? दुनिया तो धन, मान, पद, सुख के लिए ईश्वर को पूजती है।
गीता में भगवान ने कहा है की हजारों मनुष्यो में कोई एक मेरी प्राप्ति के लिए यतन करता है और उन यतन करने वाले योगियों में भी कोई एक मेरे परायण होकर मुझको तत्व से आर्थात यथार्थ रूप से जानता है।
आपने ब्लॉग में बहुत गहरी और मार्मिक बातें लिखी है। हार्दिक शुभकामनाएं।

sajjankumar singhmar
Sajjan
6 months ago

बहुत अच्छा 

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