“मौन- निर्विकल्प, निर्विकार एवं निर्लिप्त” | “मोक्ष की पंचम सीढ़ी”
Meaning of Silence | Meaning of Reticence | Meaning of Quietude
““मौन- निर्विकल्प, निर्विकार एवं निर्लिप्त””:
आत्मविश्लेषण से आत्मशुद्धि और अनिर्वचनीय तक पहुँच
“मौन”
मौन का शाब्दिक अर्थ है “चुप रहना” या “वाणी का स्थगन।” संस्कृत में इसे “मौनम्” कहा गया है।
मौन केवल वाणी का न बोलना नहीं है या वाणी का त्याग नहीं बल्कि यह मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक स्तर पर चित्त की स्थिरता, शांति, आत्मा की शुद्धता और आत्मनिरीक्षण का प्रतीक है।
भारतीय दर्शन में मौन को आत्मा के साथ एकत्व स्थापित करने और उच्चतम सत्य का अनुभव करने का साधन माना गया है। यह व्यक्ति को बाहरी और आंतरिक विक्षेपों से मुक्त करके ज्ञान, वैराग्य, निर्वाण और मोक्ष की ओर ले जाता है।
मौन के विभिन्न पहलू
1. भौतिक मौन (Physical Silence)-
वाणी और शारीरिक गतिविधियों का संयम। यह मौन ध्यान और आत्मनियंत्रण की पहली अवस्था है।
2. मानसिक मौन (Mental Silence)-
विचारों और भावनाओं का स्थिर हो जाना। मानसिक मौन से व्यक्ति चित्तवृत्तियों के शांत होने का अनुभव करता है।
“योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः”
योग चित्त की वृत्तियों का निरोध है।
3. आध्यात्मिक मौन (Spiritual Silence)-
आत्मा और ब्रह्म के साथ एकात्मता की अवस्था। इसे अद्वैत वेदांत में ब्रह्मज्ञान या निर्विकल्प समाधि कहा गया है।
4. सामाजिक मौन (Social Silence)-
समाज में अनावश्यक वाद-विवाद और अशांति से बचने के लिए मौन को एक गुण के रूप में अपनाया जाता है। यह शांति और सद्भाव को बढ़ावा देता है।
5. सृजनात्मक मौन (Creative Silence)-
यह मौन नई सोच, रचनात्मकता, और प्रज्ञा को जन्म देता है। कलाकार, विचारक, और साधक अपने सृजनात्मक कार्य में इस मौन का अनुभव करते हैं।
भारतीय दर्शन में मौन –
भारतीय दर्शन के विभिन्न ग्रंथों और परंपराओं में मौन को आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति के लिए आवश्यक साधन माना गया है।
“यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह।”
जहाँ वाणी और मन पहुँच नहीं सकते वही ब्रह्म है। मौन इस ब्रह्मानुभूति की पहली अवस्था है।
“मौनेन आत्मनि संधत्ते।”
मौन के माध्यम से आत्मा के साथ एकात्मता प्राप्त होती है।
उपनिषदों में मौन ध्यान के माध्यम से आत्मा का ब्रह्म के साथ तादात्म्य स्थापित करने का साधन है।
भगवद्गीता में भी मौन को आत्मसंयम, ध्यान, और ज्ञान का अविभाज्य अंग बताया गया है।
“मनःसंयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः।”
ध्यान और मौन के माध्यम से मन और आत्मा को एकाग्र करने की बात कही गई है।
“मौनं चैवास्मि गुह्यनाम्।”
भगवान श्रीकृष्ण मौन को अपनी दिव्य विभूतियों में से एक बताया है। यहाँ मौन को गहन आत्मचिंतन और ज्ञान की अवस्था के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
“श्रीभगवानुवाच: श्रोत्रादीनि इंद्रियाणि संयम्य, मौनं स्वधर्म का पालनं।”
मौन का अर्थ केवल न बोलना नहीं है, बल्कि इंद्रियों और मन को संयमित करना है।
“शब्दो वा मौनं लभते।”
शब्द और तर्क के परे जाकर मौन ही सत्य और ब्रह्म का अनुभव कराता है।
ब्रह्मसूत्र मौन को आत्मसाक्षात्कार और ब्रह्मज्ञान का मुख्य साधन मानता है। इसमें मौन को बाहरी और आंतरिक विक्षेपों से मुक्त होकर आत्मा के साथ जुड़ने का माध्यम कहा गया है।
उपनिषदों में मौन ब्रह्मानुभूति का माध्यम है।
भगवद्गीता में मौन ध्यान और कर्मयोग का अभिन्न अंग है।
ब्रह्मसूत्र मौन को सत्य के अनुभव और आत्मा की परम अवस्था तक पहुँचने का साधन मानता है।
साहित्यिक दृष्टि से मौन की व्याख्या –
“सुखिया सब संसार है, खाए और सोए।
दुखिया दास कबीर है, जागे और रोए।”
यहाँ मौन आत्मा की शुद्धता और जागरूकता का प्रतीक है।
“मौनी रहे तो ज्ञानी कहावे।”
कबीर के अनुसार, जो व्यक्ति मौन है, वह अपनी ऊर्जा को संरक्षित करने के साथ ज्ञान भी प्राप्त करता है।
“बिनु बोले जो जानत सब, गुणी जन सकल समाज।
बिनु जल पायस प्रीति कर, बिनु दृग परस नाज।”
तुलसीदास ने मौन के माध्यम से व्यक्ति अपने विवेक और ज्ञान का प्रसार करता है।
“मौन आत्मा को शुद्ध करने का सर्वोत्तम साधन है।”
महात्मा गांधी के अनुसार मौन के द्वारा व्यक्ति अपनी आंतरिक शक्ति और ध्यान केंद्रित कर सकता है।
“यदि आप मौन रहकर सुनने की कला सीख लेते हैं, तो आप आधी समस्याओं को सुलझा सकते हैं।”
स्वामी विवेकानंद के अनुसार मौन विचारों की ऊर्जा को सही दिशा में लगाता है।
“रहिमन चुप हो बैठिए, देख दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर।”
संत रहीम ने मौन को धैर्य और समय के साथ जोड़ा गया है। यह सिखाता है कि परिस्थिति का सामना शांतिपूर्वक करना चाहिए।
“मौन रहना वाणी का सबसे बड़ा आभूषण है।”
यह कहावत मौन को संयम और गरिमा का प्रतीक मानती है।
“जो मौन साधे, वही प्रभु को पावे।”
गुरु नानक ने मौन को ईश्वर से जुड़ने का माध्यम माना।
“मौन सबसे बड़ा उत्तर है।”
महात्मा गौतम बुद्ध ने मौन को करुणा और अहिंसा का प्रतीक बताया।
मौन की महत्ता पर विचार –
“शब्द से अधिक मौन बोलता है।”
मौन के द्वारा भावनाओं और विचारों को गहराई से समझा जा सकता है।
“जो मौन है, वही स्थिर है।”
यह विचार स्थिरता आत्मा की अचल और शाश्वत प्रकृति को दर्शाता है। मौन व्यक्ति को आत्मनिर्भर और आत्मशुद्ध बनाता है।
मौन भारतीय साहित्य और दर्शन का एक गहन विषय है। यह आत्मनिरीक्षण, धैर्य और आंतरिक शक्ति का प्रतीक है। संतों और महापुरुषों ने मौन को जीवन में शांति, संयम, और आत्मज्ञान प्राप्त करने का साधन बताया है।
मौन का सार यह है कि शब्दों से अधिक प्रभाव मौन का होता है और इसे जीवन में अपनाने से व्यक्ति आध्यात्मिक और मानसिक संतुलन प्राप्त करता है।
“रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय।
सुनि इठलैहें लोग सब, बांटि न लैहें कोय।”
रहीम ने कहा मौन, ज्ञान और धैर्य का अद्वितीय साधन है।
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विचारानुरागी एवं पथ अनुगामी –
मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक】
अनुयायी – मानस पंथ
शिष्य – डॉ औतार लाल मीणा
विद्यार्थी – शोधार्थी, दर्शनशास्त्र विभाग 【 JNVU, Jodhpur 】
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों को जगत के केंद्र में रखते हुऐ शिक्षा, समानता व स्वावलंबन का प्रचार प्रसार में अपना योगदान देने का प्रयास।
बेबसाइट- www.realisticthinker.com
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