“तूँ” का भाव | “हम से तूँ ही है का भाव”
Ourself to Yourself | We to You | Our to Your
|| Ourself to Yourself ||
“हम” से “तूँ” की यात्रा – सहयोग से समर्पण तक का सफर
मनुष्य जीवन में दो महत्वपूर्ण अवस्थाएँ होती हैं—सहयोग और जुड़ाव (“हम”), और अर्पण व समर्पण (“तूँ”)। जब कोई व्यक्ति “हम, हमारा और हमें” के सहयोग व सामूहिकता से “तूँ, तेरा और तुझे” के अर्पण व समर्पण की ओर बढ़ता है, तो उसका जीवन न केवल व्यक्तिगत स्वार्थ से मुक्त होता है, बल्कि आध्यात्मिक ऊँचाइयों को भी छूने लगता है।
यह यात्रा व्यक्तिगत चेतना से सार्वभौमिक चेतना की ओर बढ़ने का प्रतीक है। इसमें तीन प्रमुख पड़ाव होते हैं:
हम, हमारा, हमें – सहयोग, सामूहिकता, जुड़ाव और परस्पर सहायता।
तूँ, तेरा, तुझे – समर्पण, त्याग, प्रेम और निःस्वार्थता।
पूर्ण आत्मदान – अहंकार का संपूर्ण विसर्जन और आत्मा का विराट में विलय।
पहला चरण: “हम” का भाव – सहयोग और सामूहिकता
“हम” का अर्थ है सहयोग, साझेदारी और एकता। जब व्यक्ति “हम” की भावना को अपनाता है, तो वह केवल अपने लिए नहीं, बल्कि पूरे समूह, समाज या राष्ट्र के लिए सोचने लगता है। यह भावना पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, और व्यावसायिक हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
सम्बन्धित क्षेत्र में प्रयोग :
क्षेत्र | “हम” का प्रभाव | |
परिवार | पारिवारिक जुड़ाव, सामूहिक निर्णय और परस्पर सहयोग। | |
समाज | सामाजिक एकता, सेवा और सहानुभूति। | |
कार्यस्थल | टीम वर्क, नेतृत्व, सामूहिक सफलता। | |
राजनीति | लोक कल्याण की भावना, सत्ता के बजाय सेवा का भाव। | |
आध्यात्म | भक्ति और ध्यान में सामूहिक साधना, संगति का महत्व। |
उदाहरणस्वरूप –
- एक विद्यार्थी पहले केवल अपनी सफलता की सोचता है, लेकिन “हम” का भाव अपनाने के बाद वह सामूहिक उत्थान और दूसरों की मदद करता है।
- एक राजनेता जब “हमारे समाज का विकास” सोचता है, तो उसकी राजनीति लोक-कल्याणकारी बनती है।
“हम” से व्यक्ति सामूहिकता की ओर बढ़ता है, और व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर दूसरों की भलाई की सोचता है।
दूसरा चरण: “हम” से “तूँ” की ओर – अर्पण और समर्पण
जब व्यक्ति “हम” से “तू” की ओर बढ़ता है, तो वह सहयोग और सामूहिकता से आगे जाकर पूर्ण समर्पण को अपनाता है। इसमें केवल “हमारा” ही नहीं, बल्कि “सब कुछ तेरा” का भाव विकसित होता है। यह अहंकार के पूर्ण विसर्जन की दिशा में पहला कदम है।
सम्बन्धित क्षेत्र में प्रयोग:
क्षेत्र | “तू” का प्रभाव |
भक्ति और अध्यात्म | स्वयं को ईश्वर को समर्पित कर देना – “सब कुछ तेरा”। |
कला और साहित्य | अपनी रचनाएँ व्यक्तिगत स्वार्थ से मुक्त कर समाज को समर्पित करना। |
सेवा और समाज सुधार | दूसरों की सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लेना। |
संबंध | अधिकार और स्वामित्व की भावना छोड़कर निःस्वार्थ प्रेम अपनाना। |
उदाहरणस्वरूप –
- एक भक्त पहले कहता है –”हम सब ईश्वर की शरण में हैं”, लेकिन जब वह समर्पण को अपनाता है, तो कहता है – “मेरा प्रत्येक कार्य ईश्वर को समर्पित“।
- एक कलाकार पहले अपनी कला को अपनी सफलता का माध्यम मानता है, लेकिन “तू” की भावना अपनाने के बाद वह कहता है – “मेरी कला लोगों की सेवा के लिए है”।
- एक माँ पहले कहती है – “हमारे बच्चे”, लेकिन जब वह पूर्ण समर्पण को अपनाती है, तो वह कहती है – “बेटा, तेरा जीवन तुझे समर्पित है”। यानि निर्णय का सम्पूर्ण अधिकार बच्चे या ईश्वर के पास रहता है।
“हम से तूँ की यात्रा आत्मसमर्पण की ओर ले जाती है, जहाँ व्यक्ति अपने अस्तित्व को किसी उच्च शक्ति, सत्य या प्रेम के प्रति समर्पित कर देता है।”
जीवन पर प्रभाव
चरण | भाव | परिणाम |
“हम”, “हमारा”, “हमें” | सहयोग, जुड़ाव, सामूहिकता | एकता, समर्पण की तैयारी। |
“तू”, “तेरा”, “तुझे” | अर्पण, निःस्वार्थ प्रेम, त्याग | पूर्ण समर्पण, सेवा, शांति। |
पूर्ण आत्मदान | अहंकार का विसर्जन | परम आनंद, मोक्ष, ब्रह्मज्ञान। |
मानसिक और भावनात्मक परिवर्तन:
- “हम” में सहयोग की भावना, “तूँ” में त्याग की भावना।
- “हमारा” में साझेदारी, “तेरा” में निःस्वार्थ प्रेम।
- “हमें” में जुड़ाव, “तुझे” में पूर्ण समर्पण।
सामाजिक और पारिवारिक जीवन पर प्रभाव:
- परिवार में “हमारा” की भावना से प्रेम बढ़ता है।
- समाज में “तेरा” का भाव अपनाने से सेवा और त्याग की संस्कृति बढ़ती है।
- संबंधों में अधिकार और स्वार्थ की बजाय निःस्वार्थ प्रेम और समर्पण आता है।
आध्यात्मिक और दार्शनिक दृष्टिकोण:
- “हम” सामूहिकता है, “तूँ” भक्ति और अर्पण है।
- “हमारा” साझेदारी है, “तेरा” आत्मदान है।
- “हमें” सामाजिक चेतना है, “तुझे” आत्मनिवेदन है।
सारांश में यात्रा –
जब कोई व्यक्ति “हम” की भावना अपनाता है, तो वह अपने व्यक्तिगत अहंकार से मुक्त होकर समूह, समाज और परिवार के लिए सोचने लगता है।
जब वह “तूँ“ की भावना अपनाता है, तो वह अपने अस्तित्व को पूर्ण रूप से समर्पण और अर्पण के लिए समर्पित कर देता है।
- “मैं” की दुनिया में आत्मकेंद्रितता, स्वार्थ और संघर्ष है।
- “हम” की दुनिया में सद्भावना, सहयोग और सामूहिकता है।
- “तूँ” की दुनिया में पूर्ण समर्पण, प्रेम और निःस्वार्थता है।
यह यात्रा अपनाने से व्यक्ति अपने जीवन में अधिक प्रेम, सेवा, शांति और संतोष अनुभव करता है।
जो गुरु नानक देव का भी कथन् है [ सब तेरा है ] “तेरा तेरा” को अपनाने लगेगा इंसान।
These valuable are views on Ourself to Yourself | We to You | Our to Your
“तूँ” का भाव | “हम से तूँ ही है का भाव”
“मैं” को पूर्ण रूप से गुरुचरणों में समर्पित कर दिया है अब अद्वैत ………
मानस 【 गुरुवर की चरण धूलि 】