Wednesday, November 20, 2024

Sense of Deepawali | दीपावली एक शौर्य की गौरवगाथा का आनन्द पर्व

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दीपावली एक शौर्य की गौरवगाथा का आनन्द पर्व | स्त्री चरित्र हनन के प्रयास में सजा का प्रतीकात्मक रूप
Sense of Deepawali | Deepawali Ka Matlab | Meaning of Diwali 

“” दीपावली का उल्लास “” या फिर “” समाज का लोकलुभावन प्रचलन “”
“” न्याय की अन्याय पर जीत का जश्न “” या फिर “” महिलाओं की खुशफ़हमी को जताता एक चलन “”
“” शौर्य की गौरवगाथा का आनन्द पर्व “” या फिर “” वनवास के उपरांत घर वापसी का उत्सव “”
“” स्त्री चरित्र हनन के प्रयास में सजा का प्रतीकात्मक रूप “” या फिर “” स्त्री की मर्यादा को जीर्णशीर्ण करने की नाकाम हसरत को अंजाम ऐ हर्ष का संदेशसूचक “”

दीपों की माला, दीपों की अवली, दीपों की श्रृंखला ये सब भी दीपावली के संज्ञानात्मक नाम हैं।
दीपावली मानने के सिर्फ मर्म को समझने से पूर्व अब हम निम्न बिन्दुओं को समझने का प्रयास करते हैं। जो महिलाओं की दुर्दशा का कारणबनी हुई हैं जिसमें कुप्रथाओं, कुरीतियों और आडम्बरों ने आग में घी डालने का काम किया।

1. दहेज से संबंधित उत्पीड़न और हत्याएँ
आज भी कई परिवारों में विवाह के बाद दहेज की माँग के लिए महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है। दहेज उत्पीड़न के चलते मानसिक तनाव, घरेलू हिंसा, और कई बार महिलाओं की हत्या भी हो जाती है।

2. घरेलू हिंसा और मानसिक प्रताड़ना
घरेलू हिंसा का आधुनिक स्वरूप केवल शारीरिक हिंसा तक सीमित नहीं है; इसमें मानसिक प्रताड़ना, आर्थिक नियंत्रण और भावनात्मक उत्पीड़न भी शामिल आते हैं।

3. यौन उत्पीड़न और बलात्कार
सार्वजनिक स्थानों, कार्यस्थलों, और यहाँ तक कि घरों में भी महिलाओं को यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। बलात्कार के मामलों में कई बार न्याय प्रणाली की धीमी गति भी समस्या को बढ़ावा देती है।

4. कार्यस्थल पर भेदभाव और यौन उत्पीड़न
आधुनिक समय में भी कार्यस्थलों पर महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है। कई बार उन्हें पुरुषों की तुलना में कम वेतन मिलता है और उन्हें उच्च पदों पर जाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न भी एक बड़ी समस्या है।

5. ऑनर किलिंग (सम्मान के नाम पर हत्या)
जाति या धर्म के बाहर विवाह करने पर या परिवार के खिलाफ जाकर निर्णय लेने पर कई बार परिवार और समाज द्वारा महिलाओं की हत्या तक कर दी जाती है। ऑनर किलिंग का प्रचलन अभी भी ग्रामीण इलाकों में अधिक है।

6. साइबर बुलिंग और ऑनलाइन उत्पीड़न
इंटरनेट के व्यापक उपयोग से महिलाओं के खिलाफ साइबर बुलिंग, ऑनलाइन ट्रोलिंग, और छेड़छाड़ की घटनाएँ बढ़ी हैं। सोशल मीडिया पर महिलाओं को अभद्र संदेश, धमकी, और उनकी व्यक्तिगत जानकारी का दुरुपयोग किया जाता है।

7. मानव तस्करी और यौन व्यापार में शोषण
गरीब और पिछड़े क्षेत्रों की महिलाओं को रोजगार का लालच देकर या मजबूरी का फायदा उठाकर मानव तस्करी के ज़रिये यौन व्यापार में धकेल दिया जाता है। यह समस्या अभी भी भारत में गंभीर रूप से विद्यमान है।

8. कन्या भ्रूण हत्या और लिंग भेद
आज भी लिंग चयन कराकर कन्या भ्रूण हत्या की घटनाएँ होती हैं। इस प्रथा ने समाज में महिलाओं की संख्या को कम किया है और उनके प्रति भेदभाव को बढ़ावा दिया है।

9. सोशल बॉयकॉट (सामाजिक बहिष्कार)
कई बार समाज या समुदाय द्वारा महिलाओं को उनके निर्णयों के लिए बहिष्कृत कर दिया जाता है, जैसे कि तलाक लेना, अकेले रहना, या समाज की परंपराओं के खिलाफ जाकर जीवनशैली चुनना।

10. ब्रेस्ट टैक्स
हमारे समाज के काले धब्बे इतिहास में केरल में त्रावणकोर रजवाड़ा था।। जिसमें एजवा जाति जो निम्न जातियों में आती है और नादर समुदाय की महिलाओं पर ब्रेस्ट टैक्स लगाया जाता था।
यह टैक्स उच्च वर्ग के सम्मान में इन जाति की महिलाओं को अपनी छाती को कपड़े से ढकने का अधिकार नहीं था। यदि उनको कपड़े से ढकना होता तो उनको टैक्स देना पड़ता था।

11. डाकन प्रथा
डाकन प्रथा तांत्रिक क्रियाओं व वैदिक ज्योतिष की उपज का क्रूर रूप है। जिसका 1853 में राजस्थान के महाराजा स्वरूप सिंह ने अमानवीय कृत्य मान इस पर कानून बनाया। परन्तु नवम्बर 2020 मध्यप्रदेश में 65 वर्षीय बुजुर्ग महिला इसकी शिकार हुई। ऐसी अनेकों धटनाओं का देश साक्षी बना। जो हमारे बोधिसत्व पर प्रश्न चिन्ह लगाता है।

12. सती प्रथा
सती प्रथा का चलन कई गुना बढ़ा। यह क्रूर व्यवस्था पौराणिक कथाओं में विभिन्न रूपों में दर्ज है। परन्तु आधुनिक युग भी इस अमानवीय, क्रूर प्रथा का साक्षी रहा है।

13. बाल विवाह प्रथा
बाल विवाह एक ऐसी प्रथा है जिसमें कानूनी रूप से निर्धारित आयु से पहले ही बच्चियों का विवाह कर दिया जाता है। भारत में यह प्रथा कई वर्षों से चली आ रही है और समाज में इसके नकारात्मक प्रभाव व्यापक रूप से देखे जा सकते हैं।

14. देवदासी प्रथा
देवदासी प्रथा एक प्राचीन भारतीय सामाजिक प्रथा है, जिसमें युवा लड़कियों को देवी या देवता की सेवा में समर्पित किया जाता था। इसे शुरू में एक धार्मिक कृत्य माना जाता था, लेकिन धीरे-धीरे यह प्रथा महिलाओं के शोषण और यौन उत्पीड़न का माध्यम बन गई। समय के साथ, इस प्रथा ने गंभीर सामाजिक और आर्थिक समस्याएं उत्पन्न कीं। खासकर निचली जातियों और गरीब परिवारों की लड़कियाँ देवदासी प्रथा में फँसती गईं और जीवनभर आर्थिक और सामाजिक शोषण का सामना करती रहीं।

15. घूंघट और पर्दा प्रथा
घूंघट और पर्दा प्रथा भारतीय समाज की एक प्राचीन सामाजिक परंपरा है, जिसमें महिलाएं अपने चेहरे या शरीर को कपड़े से ढकती हैं। यह प्रथा विशेष रूप से ग्रामीण और पारंपरिक परिवारों में देखने को मिलती है, घूंघट और पर्दा प्रथा के पीछे कुछ धार्मिक और सांस्कृतिक कारण हो सकते हैं, लेकिन आधुनिक समय में यह प्रथा महिलाओं के अधिकारों, स्वतंत्रता और सशक्तिकरण में बाधा के रूप में देखी जाने लगी है।

16. विधवा उत्पीड़न एवं पुनर्विवाह निषेध
विधवा उत्पीड़न भारतीय समाज की एक गहरी और दुखद सामाजिक समस्या रही है, जिसमें पति की मृत्यु के बाद महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक और मानसिक रूप से शोषण का सामना करना पड़ता है। परंपरागत समाज में विधवाओं को कई प्रकार की असमानताओं और वर्जनाओं का सामना करना पड़ता था, जिसमें उनका पुनर्विवाह भी निषेध माना जाता था। इस प्रकार का भेदभाव और उत्पीड़न न केवल महिलाओं के आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचाता है बल्कि उनके अधिकारों और स्वतंत्रता को भी सीमित करता है।

17. तलाक और विवाह पर सामाजिक नियंत्रण
तलाक और विवाह पर सामाजिक नियंत्रण भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण विषय है। विवाह और तलाक दोनों ही समाज के महत्वपूर्ण घटक हैं, और इन पर विभिन्न सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक मानदंडों का गहरा प्रभाव है। सामाजिक नियंत्रण के जरिए समाज में यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है कि विवाह संस्था मजबूत और स्थायी बनी रहे, और तलाक का विकल्प केवल गंभीर परिस्थितियों में ही अपनाया जाए।

अब प्रश्न यह उठता है कि 【 शूपर्णखा या सीता 】 स्त्रियों के अपमान के प्रतिशोध ही राम रावण का युद्ध बना तो चिरकाल से स्त्रियों का शोषण तो फिर से क्यों हो रहा है? इसने तो और पाश्विक, हिंसक व बर्बर रूप ही धारण किया है।
इससे तो बस यही लगता है कि हम किसी को हीरो बनता देखना पसंद तो करते हैं परंतु हमें मनुष्यत्व को आदर्श मानकर जीना बहुत ही मुश्किल लगता है। तभी तो उस घटना काल से आज तक स्त्रियों की दशा बद से बदतर ही हुई है।
क्या हम अब यह मान सकते हैं यह युद्ध स्त्रियों की प्रतिष्ठा के लिए लड़ा गया था। यदि हाँ तो सदियों से लेकर आज भी स्त्रियों की दुर्दशा व दयनीय स्थिति क्यों बनी हुई है। बहुत सारी शर्मशार करने वाली कुप्रथाओं को हाल फिलहाल में ही बंद किया गया है फिर भी स्त्री आज भी ” Sexsual Object “” के Symbol से ऊपर नहीं उठ पाई है। अब इस Symbol को उसने जाने अनजाने में 【 नासमझी या फिर चातुर्य में 】 सहजता व सरलता से खुद से स्वीकार कर लिया है।

A. महिलाओं द्वारा विशेष पौशाकों में खुद को सवांरने की रुचिकर आदत ने इसे और अधिक पुख्ता अंजाम तक पहुंचा दिया है।

B. पुरूष प्रधानता की समाज में स्वेच्छा से स्वीकृति प्रदान कर देना।

C. सामाजिक तानेबाने में पारिवारिक वृद्ध महिलाओं द्वारा अधीनस्थ वर्ग पर को दास, उपेक्षा भाव से ग्रसित रख उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित रखने की परम्परा को और दृढ़ता से पुख्ता करना।

D. स्त्री को देवी या पूजनीय मानने की मान्यताओं को समाज द्वारा छद्म रूप निभाने यानि ढोंग व पाखण्ड का हिस्सा बना देने को ही वास्तविकता में स्त्रियों द्वारा स्वीकार कर लेना।

E. आर्थिक रूप से स्वावलंबी न होना या अपने से अधिक पुरुषों पर निर्भरता ने उसे और निर्बल, कमजोर और असहाय बनने को हो अपने समर्पण का गहना मान लिया। यहीं उसके स्वतंत्र अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगाने में अनिच्छा से ही परन्तु स्व स्वीकृति मिली।

आज यह प्रश्न आप बुद्धिजीवी वर्ग के लिये दीपावली का वास्तविक संदेश किस वर्ग के लिये है और क्या ?  हम अगले अंक में इस पर और आगे की चर्चा करेंगे |

दीपावली की ढेर सारी हार्दिक शुभकामनायें |

Sense of Deepawali | Deepawali Ka Matlab | Meaning of Diwali 
दीपावली एक शौर्य की गौरवगाथा का आनन्द पर्व | स्त्री चरित्र हनन के प्रयास में सजा का प्रतीकात्मक रूप

मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक】
अनुयायी – मानस पँथ
उद्देश्य – समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना में अपनी भागीदारी को सुनिश्चित करना।

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Sarla Jangir
Dr.Sarla Jangir
15 days ago

कुछ बच्चे हरे-भरे खेत में खेल रहे थे,
 धरती मां में धूलित हो,
कूद आसमान को चूम रहे थे ।
ठंडी हवा गात को छू जा रही,
 जिससे उनमें उल्लास की उमंगें ,
जोश -खगोश से आ रही ।
अचानक एक चीख पड़ी कान में,
 यह खिलाड़ी कौन आ गया ?
जिसकी उपस्थिति मात्र से,
सब की खुली आंखों पर अंधेरा क्यों छा गया???
 सांप सांप तब चिल्लाए,
 कुछ भय से दौड़े,
कुछ निडर बन,   सब की जान बचाए ।
एक बोला,-अरे सांप यहां क्यों आया?
 हमारी चहकती -खिलती बगिया में,
 भूचाल  क्यों लाया ?
क्या चाहते हो?
 हमें काटना!!!! 
पहले यह बता दो,
 अरे ! विषधर , गरल कहां से लाया ?
क्या यह वही गरल है?
 जो दुर्योधन के सर बोला था,
 रिश्तो को उसने रखा ताक में,
 द्रोपदी के मान को तोला था।
इस गरल की बू में  तो  रावण भी नहाया था,
 प्राणों का मोह किए बिना ,
पर – नारी को छलने आया था ।
इस विष को बहुत पी चुके,
 जैसे सभी नीलकंठ बन चुके!!!!
अब तो विश्व की भूमि पर,
 हर पल हर लड़की द्रौपदी बन,
 दुशासन की भेंट चढ़ती है।
 निर्मम हत्या और बलात्कार,
 रोज मानवता जर्जर होती है!!!
 अरे!सांप ,चला जा, 
कुछ और तरीका सीख कर आ
माना तेरा विष गरल बन रहा,
 हम में भी तो अमृत ढल रहा।
 इस गरल को पीकर भी,
वह आगे बढ़ती जाएगी।
 यह भारतवर्ष की नारी है,
 फिर भी संभल ही जाएंगी।।।।- Dr.Sarla Jangir

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