मन्त्र की परिभाषा | मन्त्र का अर्थ
Meaning of Mantra | Definition of Mantra | Mantra Ki Paribhasha
| मन्त्र की परिभाषा या भावार्थ |
“” दैहिक, दैविक व भौतिक सुखों की प्राप्ति हेतु किया गया अपने आराध्य के प्रति शाब्दिक जाप ही मन्त्र कहलाता है। “”
“” वांछित फल की अभिलाषा में की गई भाव युक्त पंक्तिबद्ध उच्चारण ही मंत्र कहलाता है। “”
वैसे “” म “”-से मन जहां अपने आराध्य को समर्पित करना होता हो,
वहाँ प्रेम पूर्वक अभिव्यक्ति के साथ आस्था भी परवान पर होती है ;
“” न् “” से न्याय जहां विचारों में समाया हो,
वहाँ अपने हित को साधने के लिए अथक परिश्रम करना दिनचर्या में स्वतः शामिल हो जाता है ;
“” त्र “” से त्रिताप जहां मनुष्य के दुखों को कारक बने,
वहाँ इसके निवारण के लिए सात्विक प्राणी का ईश्वर के प्रति झुकाव होना लाजमी है ;
यानि मन जहां न्याय की आकांक्षा में तत्पर रहता है,
वहां त्रिताप से मुक्ति का उपाय हेतु ईष्ट देव के समक्ष विशेष शाब्दिक वंदना ही मंत्र कहलाता है।
मानस विचारधारा में “” मंत्र “”
“” वह शब्दावली जो आत्मशक्ति , विश्वास को मजबूत करते हुए अपने निर्धारित लक्ष्य प्राप्ति के प्रति दृढ़संकल्पित होने के लिए प्रेरित करे वह मंत्र है। “”
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मन्त्र की परिभाषा | मन्त्र का अर्थ
मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – समाज में अपनी वास्तविक स्थिति को समझते हुए मानस पंथ की विचारधारा को परिलक्षित करना।