Tuesday, September 17, 2024

Meaning of Liberty | स्वतंत्रता के मायने

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स्वतंत्रता के मायने | स्वतंत्रता का अर्थ
Meaning of Liberty | Definition of Independence | Swatantrata Ka Arth

“” स्वतंत्रता दिवस “”

“” स्वतंत्र या फिर स्वच्छंद होने की बढ़ती सनक में जर्जर व जख्मी होती मानवीय संवेदनशीलता “”

आज 78 वां स्वतंत्रता दिवस हम मनाने जा रहें हैं। इस पावन पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाएं।

“” राजतन्त्र सिर्फ गुलामी का प्रतीक नहीं ,
प्रजातंत्र उन्मुक्त जीवन जीने की गारंटी नहीं “”

“” नजरिये से इंसान की शख्सियत ही नहीं, समाज और फिर देश की तस्वीरें भी बदलती हैं। “

ढेर सारी उपलब्धियां जहाँ गौरवान्वित होने का अहसास करवाती हैं। हालफिलहाल में अपने दम पर दक्षिणी ध्रुव पर चन्द्रयान मिशन हो चाहे या फिर महामारी के समय कोविड वैक्सिनेशन अभियान आदि।

देश की आज़ादी के समय से आज तक जहाँ शिक्षा के क्षेत्र में हमने बहुत विकास किया है पर इन सबके बावजूद बहुत सी घटनाओं ने हमें शर्मशार व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई सूचकांक में हमें पिछलग्गुओं की श्रेणी में लाकर अपमानित भी किया है। हम बेहतर राष्ट्रीय मानदण्ड बनाना तो दूर की बात शीर्ष में आने बारे हम विचार भी नहीं करते हैं और तो और हम किनारे पर खड़े होकर दूसरों के लिये तालियां भी नहीं बजा पा रहे हैं बस छिद्रान्वेषण कर हम अपने आप को सांत्वना दे रहे हैं कि हमारे यहाँ संसाधनों का अभाव रहा है।

अब आपके सामने कुछ बिंदु रख रहा हूँ जो आपको सोचने पर मजबूर कर देंगे कि सिर्फ शिक्षा क्षेत्र का विकास ही मानवीय मूल्यों के संरक्षण में सहायक नहीं है। जिस भारत भूमि की संस्कृति ने शंकराचार्य, कपिल, गौतम, कणाद, पतंजलि , अरविंद, नागार्जुन, जैसे दार्शनिक ; भगवान महावीर, भगवान बौद्ध , गुरुनानक देव, कबीर, नामदेव, रैदास, दादू, तिरुवल्लुवर जैसे संत ; और कालिदास, रामसिंह दिनकर, , रविन्द्र नाथ टैगोर, सूर्यकांत त्रिपाठी कवि ; व महादेवी वर्मा, अमृता प्रीतम व मीराबाई जैसी कवियत्री साथ ही साथ राजाराम मोहनराय, भीमराव अंबेडकर, ज्योति राव फूले , पेरियार ,सावित्री बाई फुले, सरोजनी नायडू जैसे समाज सुधारक और तो और भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, चन्द्रशेखर आजाद, वीर सावरकर जैसे क्रांतिकारी दिये हों और न जाने कितने ही अनगिनत क्षेत्रों से महान हस्तियों को पैदा किया। जो आज भी हमारे गरिमामयी आदर्श के रूप में बने हुए हैं।
इसी बीच अतित में बहुत सा काल बाहर से आने वाले आतताईयों, क्रूर, बर्बर आक्रमणकारी जिन्होंने हमें आर्थिक रूप लूटा ही नहीं हमारी शैक्षणिक विश्वविद्यालय व ऐतिहासिक विरासतों को भी नुकसान पहुंचाया। हद तो जब हुई जब हमारे गौरवशाली सांस्कृतिक मूल्यों पर चोट की और उसे छिन्न भिन्न करने का प्रयास किया।

एक समाज अपना अस्तित्व उस दिन खो देता है जब वह अपनी संस्कृति को दरकिनार कर किसी चकाचौंध का शिकार होता है। पीड़ा तो तब बढ़ जाती है जब वह अपने विरासत में मिले संस्कारों व मूल्यों की अवहेलना कर उनको दकियानूसी, पिछड़ेपन की निशानी बताने लगता है।

सिलसिलेवार बिंदु –

1. कमजोर होती सहिष्णुता में छोटी छोटी बात हत्या और जघन्य अपराध में बढ़ती संलिप्तता ।
2. दायित्व के प्रति जवाबदेहिता में बेरुखी और स्वकेन्द्रित होने पर बल ।
3. दम तोड़ती संघर्षरत रहने की क्षमता ।
4. रिश्तों में Use and Throw का विचार निचले स्तर की ओर ले जाती मानसिकता द्योतक ।
5. सार्वजनिक स्थल पर अश्लीलता का बढ़ता प्रदर्शन ।
6. नशेखोरी की ओर कदमताल करता युवा।
7. आधुनिकता की चासनी में बदचलन होने को जायज ठहराती मनचली सोच ।
8. येन केन लक्ष्य प्राप्ति में अपराधिक षड्यंत्र की ओर झुकाव ।
9. झंझट से मुक्ति में दायरे का भ्रष्टाचार अब पसन्द बनना ।
10. स्वच्छंद बनने में चाह में राष्ट्रीय सुरक्षा की चढ़ती बलि ।
11. झूठ, छद्म की राजनीति का बढ़ते चलन में आंतरिक सुरक्षा पर पड़ती चोट ।
12. राजनैतिक लोगों द्वारा स्वार्थ सिद्धि हेतु द्वैष को बढ़ाते एवं फैलाते छिछले धार्मिक व्याख्यान ।
13. आरक्षण व जाति के नाम पर की जाने वाली घृणित कूटनीति पर पैर पसारता अलगाव ।
14. महिलाओं को सौंदर्य, कामवासनाओं की पूर्ति हेतु सिर्फ उपभोगिय वस्तु मानने की सनक ।
15. कामुकता को बढ़ावा देते विज्ञापन की भरमार के साथ वेब सीरीज में मानसिक विकृति को बढ़ावा देते चलचित्रों की आम जन मानस में बढ़ती पहुंच।

उपरोक्त बिंदुओं में बढ़ती सामाजिक समस्याओं की तरह ध्यान खींचा गया है जो मानवीय नैतिक मूल्यों के विकास में बाधक बन रहे हैं। शिक्षा संस्कारिक तो नहीं बल्कि व्यवहारिक तो जरुर बना सकती है।

“” तत्कालीन प्रसाशनिक व्यवस्था के अंतर्गत अनुशासनिक अधिकारों में मिली निर्णय लेने की स्वायत्तता ही स्वतंत्रता कहलाती है। “”

“” जब कोई वैधानिक व्यवस्था दायित्वों के बदले मानवीय अधिकारों के प्रयोग की इजाजत दे तो वह स्वतंत्रता कहलाती है। “”

हमें स्वतंत्रता का सही मायने में अर्थ और उसके महत्व को समझना होगा। तभी इसकी सार्थकता भी सिद्ध होगी और मानवीय जीवन भी सफल होगा।

“‘ देश को देश बनाने हेतु शिक्षा व व्यापार में मानवीय मूल्यों को केंद्र में लाने पर बल देना होगा।
क्योंकि अच्छी सोच अच्छा समाज, औऱ अच्छा समाज ही अच्छे देश की सरंचना बनाता है। “”
चंद सवाल जो आज भी मेरी बैचेनी बढ़ाते हैं –
1. आरक्षण का लाभ आर्थिक, सामाजिक समानता लाने के लिए था। तो सारे बाजार जाति पूछ अपमानित करने का दुस्साहस घृणा है या विकृत कुंठा या फिर राजनैतिक हथकंडा ।
2. एक बड़े समुदाय को आजादी के 50 वर्ष पश्चात तक आरक्षण लाभ में देरी ( अछूता रहा ) सोची समझी साजिश या फिर समुदाय के दमदार प्रतिनिधित्व न होना या आवाज में हिंसात्मक प्रदर्शन का अभाव।
3. तुष्टिकरण राजनैतिक लाभ की सीढ़ी या फिर सोची समझी साजिश के तहत जमीनी हकों वैधानिक तरीके से हस्तांतरण का जरिया या धर्म विशेष व संस्कृति को अस्तित्वहीन , छिन्न भिन्न व तार तार करने करने की कूटनीतिक साजिश ।
4. आदिवासियों की प्राकृतिक संसाधनों के प्रति आस्था, समर्पण व सरंक्षण के साथ सांस्कृतिक विरासत को सँजोए रखना गौरवपूर्ण विषय होने के बजाय हेय, उपेक्षा और हाशिये पर रखने की दकियानूसी सोच को बढ़ावा या फिर प्राकृतिक संसाधनों का व्यावसायिकरण करने की कुटिल नीति का परिणाम।
5. महिला को सनातन संस्कृति में देवी माना गया है। एक तरफ परिवार व समाज को समृद्ध बनाने में महिलाओं के योगदान को बढ़ावा देने की वकालत करते हैं तो आज तक महिलाओं को बराबरी का देने में इतने वर्षों का इंतजार क्यों, क्या यह पुरुष प्रधानता की सनक या फिर स्त्री को मात्र संभोगीय वस्तु मानने की रूढ़िवादी सोच या फिर स्त्रियों की बौद्धिक क्षमता में परतन्त्र मानने का सोचा समझा पैदा किया गया डर।
इस विषय पर भी आप सबकी प्रतिक्रिया की उम्मीद करता हूँ।

एक बार फिर स्वतंत्रता दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं।

“” जय गुरुदेव , जय मानस पंथ, जय भारत “”

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स्वतंत्रता के मायने | स्वतंत्रता का अर्थ

मानस जिले सिंह
【 यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
शिष्य – डॉ औतार लाल मीणा
विद्यार्थी – शोधार्थी, दर्शनशास्त्र विभाग 【 JNVU, Jodhpur 】
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों को जगत के केंद्र में रखते हुऐ शिक्षा, समानता व स्वावलंबन का प्रचार प्रसार में अपना योगदान देने का प्रयास।
बेबसाइट- www.realisticthinker.com

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