दार्शनिक की परिभाषा | दार्शनिक का अर्थ “”
Meaning of Philosopher | Darshnik Ki Paribhasha
Meaning of Philosopher | Darshnik Ki Paribhasha
“” दार्शनिक “”
“” प्रकृति की उत्पत्ति और उसके क्रियान्वयन को जानने व समझने की जिज्ञासा से ही दार्शनिक का जन्म होता है। “”
“” प्राकृतिक रहस्यों में से मानव के जन्म और जीवन के औचित्य की अनभिज्ञता को भिज्ञ में बदलने की खोज ही उसे दार्शनिक बनाती है। “”
सामान्य परिप्रेक्ष्य में –
“” द “” से दूरदर्शी जहां होना समझदारी की निशानी लगाने लगे,
वहाँ व्यवहार ही नहीं व्यापार में नये आयाम स्थापित होते हैं ;
“” र “” से रहस्य उद्धारक जहां प्रकृति के मूल तत्वों के बारे में चर्चा करे,
वहाँ भगवान, आत्मा जैसी तत्वों की स्वीकार्यता, बहिष्कृत या तटस्थता दर्शानी पड़ती है ;
“” श “‘ से शिक्षार्थी जहां बनकर जीवन जिया जाये,
वहाँ व्यक्ति गुणों में नहीं उनके निर्वहन में भी अकल्पनीय भूमिका अदा करता है ;
“‘ न “‘ से निर्मोही जहां रहना संतत्व व गम्भीर होने की निशानी बनने लगे,
वहाँ अपना या पराया नहीं सिर्फ विचारधारा ही महत्व रखती है ;
“” क “” से कर्मयोगी जहां रहना हर इंसान का इच्छा में शामिल हो,
वहाँ विचारधारा में कर्म की प्रधानता सर्वोच्चता में बनी रहती है। “”
“” वैसे दूरदर्शी , रहस्य उद्धारक जहां शिक्षार्थी होने के साथ निर्मोही भी हो,
वहाँ कर्मयोगी होकर नव विचारधारा का प्रणेयता ही दार्शनिक कहलाता है। “”
मानस के अंदाज में –
“” ज्ञान का अनुरागी होने के साथ तत्व या ज्ञान का मीमांसक हो तो वह दार्शनिक कहलाता है। “”
“‘ रूढ़िवादी विचारों से मुक्ति दिलाते हुए सरल, सहज व पारदर्शी व्यवस्था से सुखद जीवन की ओर अग्रसर करवाने वाली विचारधारा के जनक को दार्शनिक कहते हैं। “”
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Manas Jilay Singh 【 Realistic Thinker 】
अनुयायी – मानस पँथ
उद्देश्य – सामाज में शिक्षा, समानता व स्वावलंबन के प्रचार प्रसार में अपनी भूमिका निर्वहन करना।
उद्देश्य – सामाज में शिक्षा, समानता व स्वावलंबन के प्रचार प्रसार में अपनी भूमिका निर्वहन करना।
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