Thursday, November 21, 2024

Meaning of Struggle | संघर्ष के आगे मजबूर होती प्रकृति

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संघर्ष के आगे मजबूर होती प्रकृति | संघर्ष का अर्थ
Meaning of Struggle | Definition of Struggle | Sangharsh Ki Paribhasha

| Struggle always defeats nature |
| संघर्ष के आगे मजबूर होती प्रकृति |

“” हवा के हल्के झोंके से पंख जो उड़ा ,
बाज बनने की कुवत भी अब वो करने लगा ;

मानो एक अदना सा होंसला परवान जो चढ़ने लगा ,
भवंर से नौसिखिया भी उफनती नदी अब पार करने लगा ;

ताकत थी विश्वास की जो अब अग्निपथ पर आगे बढ़ने लगा ,
गज़ब की चित्रकारी भी बिन हाथों के अब वो करने लगा ;

जनूँ रगों में खून की जगह फिर से जो दौड़ने लगा ,
मौत निश्चित जान भी योद्धा अब चक्रव्यूह को तोड़ने लगा ;

कुदरत का करिश्मा कहूँ या फितरत जो उसकी ,
खुले में जलते चिरागों के वास्ते तूफानों के वो पर भी कुतरने लगा ;

हमने लगा दी सारी उम्र सिर्फ अपनों को जानने में ,
रहमत तो उसकी जो गूंगे की जुबान व बहरे के कान वो बनने लगा ;

वैसे बिन मांगे या छिने बगैर यहाँ अब कुछ कहां मिलने लगा ,
बिन रोये दूध कहां छोटे शिशु को मां से भी जो मिलने लगा ;

नहीं चली उसकी हकूमत में हमारी तब एक भी ,
जब – जब फैसलों के दौर में हुक्मरानों को छोड़ “‘ नियम विधाता का “” अब था जो चलने लगा ;

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संघर्ष के आगे मजबूर होती प्रकृति | संघर्ष का अर्थ

मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु प्रकृति के नियमों का यथार्थ प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध योगदान देना। “”

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Amar Pal Singh Brar
Amar Pal Singh Brar
2 years ago

प्रकृति सर्वशक्तिमान है, समय रहते ही मनुष्य को चेतना होगा।

Juneja juneja
Sandeep juneja
2 years ago

वैसे तो मैं लिखा हुआ काम पड़ता हू लेकिन आप का लिखा हुआ मुझे अच्छा लगा जब भी समय होता है तो मैं बड़ी रुचि से पड़ता हू धन्य वाद आप हमे इस ही दिशा देते रहे

Devender
Devender
2 years ago

Nice 👍

SARLA JANGIR
SARLA JANGIR
1 year ago

जीवन की परिभाषा बहुत कठिन है। जीवन को जीना और जीवन के लिए जीना- इन दोनों का अर्थ बिल्कुल विपरीत है । जीवन को जीना -यह एक सकारात्मक विचार है । जीवन के लिए जीना यह किसी के प्रति समर्पित या अधीन विचार है । इन्हीं भावों को कागज पर उड़ेल रही हूं । शायद इन सफेद पन्नों पर कोई रंग आ जाए । रंग कितना भाव भरा शब्द है । रंग का नाम सुनकर सभी के मुख पर एक मुस्कान आ जाती हैं । न जाने कितने रंग भाव मुद्राओं का रूप लेकर नाचने लगते हैं। अलग-अलग तरह के रंग आंखों के पटल पर आकर मन गुदगुदाते हैं । जब बच्चे का जन्म होता है , उस समय जीवन का रंग कोरा कागज यानी सफेद होता है । इसलिए शायद बच्चे को भगवान का रूप कहते हैं कितना पावन, सच्चा, निश्चल रंग होता है। मां-बाप के संस्कारों और रिश्तो के प्यार से इसमें बहुत सारे रंग को भरने लगते हैं । बाल्यावस्था के आते -आते  सफेद रंग में चटकीले रंग भरने लगते हैं । जिसमें ज्यादा चमक हो ।जो मन और आंखों दोनों को आकर्षित करें । युवा अवस्था में ये सभी रंग प्यार के लाल रंग में समा जाते हैं, यहां ऊर्जा और भावों के आवेग का स्तर उच्च होता है।  इस लाल रंग में अगर थोड़ा पीला रंग मिला दिया जाए तो वह हरा बन जाता है।  हरे रंग का मतलब तो खुशियां और खुशहाली ही है । यह पीला रंग जीवन में किसी और के शामिल होने का संकेत देता है । यहां आधार सिर्फ लाल रंग का है यानी – प्यार । और पीला मिले तो हरा । मतलब परिवार में खुशहाली । फिर वह समय आता है,जब सभी अपने- अपने रंग  इस रंग में घोलना चाहते हैं । तो ज्यादा मिलावट से एक समय में वह रंग – बेरंग हो जाता है । माना कि वह रंग गहरा है ,फिर भी सभी रंग को कहां संभाल पाता है।  तो धीरे-धीरे  उसमें दाग ,धब्बे और कुरूपता आ जाती हैं । उसका प्रतिबिंब इतना गहरा होता है कि जीवन के अंत तक उस रंग में कालिमा छा जाती हैं । कालिमा  के रंग तक मनुष्य का व्यवहार आम मनुष्य की तरह होता है । जिसमें समय और प्रकृति परिवर्तन के साथ उसका स्वभाव नदिया के बहाव की तरह होता है । कहीं भी ठहराव नहीं होता है । जैसे -नदियां का जल सारे कंकड़ और अपशिष्ट पदार्थ साथ लेकर चलता है । उसी तरह मनुष्य अपनी कमजोरियों, गलतियों को जीवन भर साथ ढोता रहता है । मनुष्य का स्वभाव नदिया के जल की तरह ना होकर समुद्र की तरह होना चाहिए । समुद्र की गहराई सोच में, लहरों (समय )के साथ सारी गंदगी किनारों पर और बहुमूल्य रत्न ( गुण) अपने में छिपा कर रखना ।  जीवन के किसी भी क्षण में सकारात्मक परिवर्तन आ जाए तो जीवन का आखिरी रंग काला न  होकर कोई दूसरा रंग भी हो सकता है । यह हमें सुनिश्चित करना होगा कि जीवन का आखिरी रंग शांत ,श्वेत होना चाहिए या कि कुरूप ,कलंकित और  काला ।

  • प्रोफेसर सरला जांगिड़
Mahesh Soni
Mahesh Soni
1 year ago

परिस्थितियाँ आपमे परिवर्तन लाती है।
और प्रकृति आपकी परिस्तिथियाँ को सुनिश्चित करती है।

शुविचारक
महेश सोनी

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