Sunday, January 26, 2025

Meaning of Truth | “मोक्ष की चतुर्थ सीढ़ी”

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“सत्य, शांति एवं संयम” | “मोक्ष की चतुर्थ सीढ़ी”
Meaning of Truth | Meaning of Self-Possession | Meaning of Continence

““सत्य, शांति एवं संयम”: आत्म कल्याण को आत्मसात करवाता नियम

“सत्य“
संस्कृत की “सत्” धातु से बना है सत्य , जिसका अर्थ होता है “वास्तविकता, सतत, शाश्वत”
सत्य वह है जो समय, परिस्थिति और तर्क से परे होकर स्थायी और सार्वभौमिक बना रहे। यह “सत्” (अस्तित्व), “चित्” (चेतना), और “आनंद” (परम सुख) का प्रतीक भी माना गया है।
जो असंदिग्ध, अटल और अपरिवर्तनीय हो, वह सत्य कहलाता है। अन्य अर्थ – संस्कृत में “सत्” का अर्थ है “अस्तित्व” और “त्य” का अर्थ है “स्थिति”। इसलिए सत्य वह है जो सदैव अस्तित्व में रहता है और परिवर्तन से परे है।

सत्य पर विचार –
सत्य ही ते धरती धरे, सत्य रचे सब थाल।
सत्य से रचि सप्त सागर, सत्य पाले सब काल।।
सत्य ही सृष्टि का आधार है। तुलसी के अनुसार, सत्य वह शक्ति है जो संसार की रचना और पालन करती है।

साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हृदय साँच है, ताके हृदय आप।।
सत्य ही तपस्या के समान है। कबीर का मानना था कि सत्य का पालन करने से व्यक्ति के भीतर ईश्वर का वास होता है।

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।
सत्य और चरित्र मानव का सबसे बड़ा गुण है। रहीम के अनुसार सत्य और शुद्धता किसी भी परिस्थिति में भ्रष्ट नहीं होती।

“सत्य ही ईश्वर है।”
सत्य ही जीवन का सर्वोच्च नैतिक मूल्य है। महात्मा गांधी के अनुसार, सत्य को अपनाने से अहिंसा, प्रेम और मानवता का विकास होता है।

“सत्य को खोजो, सत्य को जीओ। सत्य से ही तुम मुक्त हो सकते हो।”
सत्य ही आत्मा और ब्रह्म का सार है।
विवेकानंद के अनुसार सत्य को जानने से ही व्यक्ति जीवन के बंधनों से मुक्त हो सकता है।

सचु अरु सबना भुखिया, सब हुक्मै अंदरु जाय।
सचु नानक सब उपरि, सचु करे पछान।।
सत्य ही सर्वोपरि माना है। गुरुदेव नानक के अनुसार सत्य के माध्यम से व्यक्ति ईश्वर को पहचान सकता है।

अन्य संदर्भ –
1. महाभारत:
“सत्यं धर्मः।” (सत्य ही धर्म है।)
युधिष्ठिर द्वारा सत्य का पालन उनकी पहचान बनी। उनके अनुसार, सत्य धर्म का मूल है।

2. रामचरितमानस:
राम को “सत्यव्रती” (सत्य पर चलने वाले) और “सत्य संकल्पी” कहा गया है।

3. गीता का सत्य:
सत्यं प्रियं च हितं च यत्।
सत्य वह है जो प्रिय और हितकारी हो।

4. अद्वैत वेदांत
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः।
(ब्रह्म सत्य है, यह जगत माया है, और जीव ब्रह्म का ही स्वरूप है।)

5. तैत्तिरीयोपनिषद
सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म।
(ब्रह्म सत्य, ज्ञान और अनंत है।)

सत्य की विवेचना अन्य माध्यम से –
सत्य कहै जो कष्ट सहै, वही सच्चा वीर।
झूठ कभी फलता नहीं, सत्य बढ़ावे नीर।।
समाज में सत्य का पालन सद्भाव, न्याय और समरसता लाता है।

आध्यात्मिक सत्य वह है जो आत्मा और ब्रह्म की वास्तविकता को प्रकट करता है। सत्य आत्मा का स्वरूप है, जो ध्यान, तप और साधना से जाना जा सकता है।
सत्य केवल एक नैतिक गुण नहीं है, बल्कि यह जीवन का आधार, समाज की स्थिरता और आत्मा की पूर्णता का मार्ग है। सत्य का पालन न केवल व्यक्तिगत उन्नति के लिए आवश्यक है, बल्कि यह समाज और मानवता के लिए भी अनिवार्य है।

निचोड़ –
सत्यमेव जयते नानृतम्।
(सत्य की ही विजय होती है, असत्य की नहीं।)
यह सत्य की सार्वभौमिक शक्ति का प्रतीक है।

“शांति”

शांति शब्द संस्कृत की धातु “शम्” से बना है, जिसका अर्थ है “सुख, आनंद और शीतलता”।
अर्थात अशांति, संघर्ष या क्लेश की अनुपस्थिति होना।
शांति मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक स्थिरता की स्थिति का द्योतक है।

शांति के विभिन्न आयाम –
(क) व्यक्तिगत शांति –
यह आंतरिक स्थिरता और संतुलन की स्थिति है। व्यक्ति के भीतर जब काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि शांत हो जाते हैं, तब वह शांति का अनुभव करता है।
“ध्यान, योग और आत्मचिंतन के माध्यम से व्यक्ति आंतरिक शांति प्राप्त करता है।“

(ख) सामाजिक शांति –
यह समाज में सद्भाव, न्याय, और समानता की स्थिति है। जब सभी लोग अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं और दूसरों के प्रति सहिष्णु होते हैं, तो सामाजिक शांति स्थापित होती है।
“महात्मा गांधी का अहिंसा और सत्य का सिद्धांत सामाजिक शांति का आदर्श है।“

(ग) आध्यात्मिक शांति –
यह आत्मा और परमात्मा के मिलन से उत्पन्न होती है। भारतीय दर्शन में इसे “मोक्ष” या “कैवल्य” की अवस्था कहा गया है।
“भक्ति और ध्यान से आत्मा को दिव्य शांति का अनुभव होता है।“

(घ) वैश्विक शांति –
यह सभी देशों और समाजों के बीच युद्ध, विवाद और शोषण की समाप्ति और सहयोग की स्थापना से जुड़ी है।

शांति पर अन्य विचार –
सिया राम मय सब जग जानी, करहुं प्रणाम जोरि जुग पानी।
तुलसीदास ने राम के आदर्श चरित्र को केंद्र में रखकर बताया है कि जब व्यक्ति हर जगह एकत्व और सद्भावना देखता है, तब शांति की अनुभूति होती है।

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाए।।
रहीम ने प्रेम और संबंधों को बनाए रखने की शिक्षा देकर सामाजिक शांति का महत्व बताया है। यदि संबंधों में दरार आती है, तो समाज अशांत हो जाता है।

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
यह मन शांति पाएगा, जब होए सब से प्रीत।।
कबीर ने शांति को व्यक्ति के मन और विचारों से जोड़ा है। शांति का मूल स्रोत व्यक्ति का आचरण और प्रेम है।

“शांति का मार्ग सत्य और अहिंसा है।”
गांधीजी के अनुसार, शांति केवल बाहरी संघर्षों को समाप्त करने से नहीं आती, बल्कि व्यक्ति के भीतर सत्य और अहिंसा की स्थापना से प्राप्त होती है।

“शांति भीतर से आती है, इसे बाहर मत खोजो।”
बुद्ध ने शांति को आत्म-नियंत्रण और इच्छाओं के त्याग से जोड़ा है। उनका अष्टांगिक मार्ग (सम्यक दृष्टि, सम्यक विचार आदि) शांति का मार्गदर्शक है।

“मनुष्य के भीतर जो दिव्यता है, वह शांति का सच्चा स्रोत है।”
विवेकानंद के अनुसार, शांति का अनुभव आत्मा की दिव्यता को पहचानने से होता है।

सांई इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाए।।
गुरुनानक ने संतोष और समर्पण को शांति का आधार बताया है। उनका संदेश है कि संतोष से ही मनुष्य शांति का अनुभव कर सकता है।

“जहां मन भय से मुक्त हो, वहीं शांति का वास होता है।”
रवींद्रनाथ टैगोर ने शांति को स्वतंत्रता, समता और आध्यात्मिक विकास के साथ जोड़ा।

“शांति तभी स्थायी हो सकती है, जब न्यायपूर्ण समाज की स्थापना हो।”
सुभाष चंद्र बोस ने सामाजिक और राजनीतिक शांति को न्याय और समानता से जोड़ा।

जब समाज के सभी वर्गों के अधिकार समान हों और एक-दूसरे के प्रति दया हो, तभी शांति संभव है।

प्रीत जहां ना सत्य है, नहिं होए सुकून।
जब तक सत्य और प्रेम हो, शांति बनें उस धून।।
राम नाम रट ले मनवा, सब दुख दूर होय।
शांति वही पाए सदा, जो हरि का नाम जपे।
शांति का अर्थ केवल संघर्ष की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि यह एक ऐसी अवस्था है जहां व्यक्ति और समाज संतुलन, सद्भाव और आनंद की अनुभूति करते हैं। साहित्य, संतों और महापुरुषों ने शांति को प्रेम, सत्य, और न्याय के माध्यम से प्राप्त करने का संदेश दिया है। शांति के बिना मानवता की प्रगति और सुख की प्राप्ति असंभव है।

सारांश –
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।
यह सार्वभौमिक शांति की पुकार है, जो हर व्यक्ति और समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

“संयम”
संयम एक मानसिक और शारीरिक अवस्था है, जिसमें व्यक्ति अपनी इच्छाओं, भावनाओं, और प्रतिक्रियाओं पर नियंत्रण रखता है। संयम का अर्थ केवल शारीरिक या मानसिक अवरोध नहीं है, बल्कि यह आत्म-नियंत्रण और आंतरिक संतुलन की ओर अग्रसर होने का एक उपाय है।

संयम शब्द संस्कृत के “सं” (साथ) और “यम” (नियंत्रण) से बना है।
अर्थात – “किसी वस्तु या प्रवृत्ति पर नियंत्रण रखना”।
यह आत्म-नियंत्रण, स्थिरता और संतुलन को दर्शाता है।

1 . आध्यात्मिक संयम –
आत्मा और ब्रह्म के साथ जुड़ने के लिए अपने इच्छाओं और भौतिक सुखों को नियंत्रित करना होता है। यह आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष प्राप्ति की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।

2 . शारीरिक संयम –
शारीरिक इच्छाओं और आवेगों पर नियंत्रण रखना होता है।
जैसे भोजन, नींद, और अन्य भौतिक इच्छाओं का संयम।

3 . मानसिक संयम –
अपनी मानसिक स्थितियों, जैसे चिंता, भय, और क्रोध पर काबू पाना होता है। यह मानसिक शांति और संतुलन का प्रतीक है।

4 . भावनात्मक संयम –
क्रोध, घृणा, ईर्ष्या जैसी भावनाओं पर नियंत्रण पाना होता है। यह आत्मनिर्भरता और आंतरिक संतुलन की ओर अग्रसर होने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

संयम की विवेचना –
शरीरवन्धनात्मन्यात्मसाक्षात्कारिणं संयमः।
ब्रह्मसूत्र में संयम शरीर के बंधनों से मुक्त कर आत्मा के साक्षात्कार की दिशा में अग्रसर करता है।

तस्मिन्नेवात्मनि संयम्य स्वाधीनः सर्वं पश्येत्।
बृहदारण्यक उपनिषद में जो व्यक्ति आत्मा में संयमित होता है, वह सर्वव्यापक ब्रह्म को देख सकता है।

“संयम से ही हम अपने जीवन में शांति और संतुलन ला सकते हैं। संयम ही जीवन का आधार है।”
महात्मा गांधी

संयम केवल एक नैतिक गुण नहीं है, बल्कि यह आत्मा, मन और शरीर का संतुलन स्थापित करने का एक प्रभावी तरीका है। भारतीय दर्शन में संयम को जीवन की सच्ची सफलता और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग माना गया है। वेदांत या भगवद्गीता व भारतीय दर्शन इन सभी में संयम को जीवन का केंद्रीय तत्व बताया गया है। संयम का पालन करके हम अपने भीतर की शक्तियों का सही उपयोग कर सकते हैं और जीवन में शांति और संतुलन ला सकते हैं।

सारगर्भित संदेश –
मोक्ष की चतुर्थ सीढ़ी में सत्य के साथ शांति और संयम को रखना अत्यंत आवश्यक और प्राकृतिक है| सत्य बिना संयमीत जीवन और शांति की अवस्था के संभव ही नहीं है| यह एक आंतरिक और नैसर्गिक समन्वय है।

These valuable are views on Meaning of Truth | Meaning of Self-Possession | Meaning of Continence
“सत्य, शांति एवं संयम” | “मोक्ष की चतुर्थ सीढ़ी”

विचारानुरागी एवं पथ अनुगामी –

मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक】
अनुयायी – मानस पंथ
शिष्य – डॉ औतार लाल मीणा
विद्यार्थी – शोधार्थी, दर्शनशास्त्र विभाग 【 JNVU, Jodhpur 】
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों को जगत के केंद्र में रखते हुऐ शिक्षा, समानता व स्वावलंबन का प्रचार प्रसार में अपना योगदान देने का प्रयास।
बेबसाइट- www.realisticthinker.com

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