Sunday, October 6, 2024

Meaning of Woman | नारी “” दासता को ढोती एक जिंदगी “”

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नारी “” दासता को ढोती एक जिंदगी “” | नारी का अर्थ
Meaning of Woman | Definition of Woman | Woman Ki Paribhasha

Woman “” A Life carrying Slavery “”
नारी “” दासता को ढोती एक जिंदगी “”

अनकहे शब्द मेरे इर्द गिर्द जो मौजूद थे ,
आँखों के रास्ते रगों में अब वो हैं बसने लगे ,
उबाल जो मारा दर्द भरे खून ने तो ,
उंगलियों के रास्ते पत्थर पर कुर्दने भी लगे ;

एक रोने की आवाज़ महलों में जो गूँजने लगी ,
मानो दर्द अब नये चोगे से फिर आगाज़ जो करने लगी ;
लगी इतनी प्यारी कि दिल के तार धीरे से छूने भी लगी ,
फिर न जाने क्यों वो सन्नाटे में पसरने लगी ;

वो कोई और नहीं नवजात बच्ची की आवाज थी ,
कभी उसको गले से ही दबा मौत दी ;
कभी ज़हर की घुट्टी से खामोश कर दी ,
तो कभी दूध की परात में सुलाकर दम घुटा दी ;

बच गई जो रहम से जुल्मों की पहचान बनी ,
मां के काम में हाथ बटाने वाली स्यानी बिटिया बनी ;
तो बड़ी जो हुई घर के काम में ही झोंक दी ,
पढ़ाई करने को जो मिली तो नसीबों की रानी बनी ;

कभी कच्ची उम्र में ही अल्हड़ जवानी बनी ,
किसी ने जो दोस्त माना तो कलमुँही जान बदनामी बनी ;
कभी मनचलों की निग़ाहों का शिकार बनी ,
तो कहीं हवस के भेड़ियों के वहशीपन की दास्तां भी बनी ;

शादी जो चाहती थी प्यार की मिशाल बने ,
ऑनर किलिंग की शिकार हो दहशत की जुबान बनी ;
बची तो कभी पाप की कालिख़ की पहचान बनी ,
या फिर अंधेरी काल कोठरी की अमिट निशानी बनी ;

नसीब थोड़ा अच्छा रहा तो नये घर की बहूरानी बनी ,
अच्छे ससुराल में जिंदगी कभी जन्नत भी बनी ;
तो कभी दहेज की बलि चढ़ जिंदा जलती तस्वीर भी बनी ,
तो कभी तिल तिल मरने वाली नरकीय जिंदगानी बनी ;

जिंदगी में बिजली उस वक़्त गिरी ,
जो बाँझ का अभिप्राय बनी ;
औरत की कमी बता दी तो बैरन फिर जवानी बनी ,
तो कभी साथी मरा जो विधवा बन नर्पिश्चनी भी बनी ;

रंगों की पहचान मानो जिंदगी से चलती बनी ,
जब हर दिन सफेद पहन जीता जागता बुत बनी ;
खुशी के हर पल व रातें जो फिर अभिशाप बनी ,
वीरान जिंदगी मानो क्रूरता की मिशाल बनी ;

औरत का मरना तो मानस है हर घड़ी ,
चाहे जन्म देने की प्रसव पीड़ा में मरी ;
चाहे सती रूप में जिंदा जली ;
सबूत मिट जाये दरिंदगी का फिर जो बदहवास हो कर भी जली ;

अपने ऊपर लिखे दर्द से कर्राहाने पर पत्थर में अब दरारें भी पड़ने लगी ,
मानो पहाड़ी भी यह जताने वास्ते पीड़ा को लावा बना बहाने लगी ;
बेइन्तहा है सहन शक्ति पीड़ा सहने की उसकी ,
वह कहलाती है “” नारी “” जो दिव्य मिट्टी की ही बनी तो “” जगत जननी “” वरना लाज बचाने हेतु घर बसा अपना फिर “” अर्द्धांगिनी “” ही बनी ;

These valuable are views on Meaning of Woman | Definition of Woman | Woman Ki Paribhasha
नारी “” दासता को ढोती एक जिंदगी “” | नारी का अर्थ

मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना में प्रकृति के नियमों को यथार्थ में प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध प्रयास करना।

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SS Jangid
SS Jangid
2 years ago

Why should we remind that slavery ?It is passed.This is to respect her at any relation.

She is one who is ever resected because of her oneship.Jai ho devi.💐💐💐

Amar Pal Singh Brar
Amar Pal Singh Brar
2 years ago

सम्यक दृष्टि

Sarla Jangir
सरला जांगिड़
1 year ago

नारी शब्द नर + अरी से बना है अर्थात जिसका कोई शत्रु नहीं हो ।क्या यह अर्थ सही है ? आज का संदर्भ हो या पौराणिक । इस वाक्य का अर्थ बिल्कुल विपरीत है । नारी के शत्रु तो चारों ओर से है। आओ हम सब मिलकर इस वाक्य पर विस्तार से चर्चा करते हैं । कौन-कौन से शत्रु हैं? क्या थोड़ी गणना की जाए ? – उसकी अस्मिता के शत्रु, उसके अस्तित्व के शत्रु, उसके अधिकारों के शत्रु, उसकी कोमल भावनाओं के शत्रु । कितनी विडंबना की बात है ? जन्म देने वाली के जन्म के शत्रु । इतनी शत्रुओं से घिरी है नारी । ये शत्रु रक्तबीज राक्षस की तरह अनंत है । एक का विनाश करने पर बहुत सारे और खड़े हो जाते हैं । कैसे अंत हो इन शत्रुओं का? पुराने जमाने से बहुत सारे समाज सुधार को जैसे राजा राममोहन राय, विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस ने बहुत सारी बुराइयों को मिटाने के लिए आगे कदम बढ़ाया और कुछ नियम भी बनवाए । यह नियम और सहयोग विराम का केंद्र बिंदु नहीं है, बल्कि आज के संदर्भ में इन बुराइयों का रूप बदल गया है ।
तुलसीदास ने रामचरितमानस में सटीक लिखा है – “पराधीन सपने सुख नाहीं” अर्थात किसी के अधीन रहकर सपने में भी सुख की प्राप्ति नहीं की जा सकती । इस प्रसंग को हम कुछ इस तरह से समझेंगे । हमारी उन्नति और सफलता किसी और के द्वारा किया गया प्रयास या सहायता तब तक फलदाई नहीं होती है, जब तक उसमें हमारा प्रयास या कोशिश ना जुड़ें अर्थात दूसरे की कल्पनाओं पर हम अपना महल नहीं बना सकते । नारी अपने शत्रुओं पर तब तक विजय प्राप्त नहीं कर सकती, जब तक वह स्वयं उसके लिए तत्पर, कार्यरत और संघर्षरत ना हो ।उसका यह संघर्ष घर की चारदीवारी से लेकर बाहर कार्यक्षेत्र तक, जन्म से लेकर जीवन के अंतिम श्वास तक, अपने रिश्तों से लेकर बाहर के उसके अस्तित्व तक, उसकी कोमल भावनाओं से लेकर विद्रोह की भावना तक है । उसे हर कदम, हर क्षण तैयार रहना होगा ।अंत में इन्हीं पंक्तियों के साथ अपने शब्दों पर विराम देती हूं ।” मैं नहीं चाहती कि महिलाओं का पुरुषों पर अधिकार हो, लेकिन खुद पर जरूर होना चाहिए।”- प्रोफेसर सरला जांगिड़

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