Saturday, July 27, 2024

Definition of Doubt | वहम की परिभाषा

More articles

वहम की परिभाषा | वहम का अर्थ
Definition of Doubt | Meaning of Mistrust | Vaham Ki  Paribhasha

“” वहम “”
“” सन्देहास्पद या संशयवश रहते हुए एक अनजाने व अनहोनी के आदेशों से चिंतित और भयावह विचार ही वहम है। “”

सरल शब्दों में –
“” एक अनिश्चितता या कल्पनात्मक नुकसान होने की आशंकाग्रस्त विचार ही वहम है । “”

“” व “” से विनाश जहां आशंका में बना रहे ,
वहां सुख चैन का त्याग होना तो निश्चित है ;

“” ह “” से हमसाया जहां भयावह अनिश्चितता के रंग में रंग जाये ,
वहां चिंताग्रस्त रहना मानवीय स्वभाव में आ ही जाता है ;

“” म “” से मौन जहां हथियार नहीं जब मर्ज़ बन जाये ,
वहां जीवन अवसादग्रस्त व संघर्षरत होना स्वभाविक हो जाता है ;

“” वहम “” से विनाश हमसाया मौन जहां बने ,
वहां मर्म के साथ खिलवाड़ कर विचार को अवसादयुक्त व चिंतायुक्त बना दे तो वह “” वहम ” कहलाता है ;

“” वहम दीमक की तरह सुख चैन को ही नहीं अपितु जीवनशैली को सिद्धान्तहीन व विचारहीन बना देता है । “”

“” बेवजह वहम करना एक मानसिक रोग का लक्षण “”

These valuable are views on Definition of Doubt | Meaning of Mistrust | Vaham Ki  Paribhasha.
वहम की परिभाषा | वहम का अर्थ

मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु प्रकृति के नियमों का यथार्थ प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध योगदान देना।

2 COMMENTS

Subscribe
Notify of
guest
2 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Sanjay Nimiwal
Sanjay
1 year ago

उड़ रही है जिंदगी पल पल रेत सी,,,

और हमको वहम है कि हम बड़े हो रहे हैं।।

Sarla Jangir
Sarla Jangir
1 year ago

अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।।
।।नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।
भागवत गीता, चौथा अध्याय, चालीसावां श्लोक  
अर्थात ज्ञानहीन और श्रद्धा हीन मनुष्य तो नष्ट होते ही हैं, परंतु संशय करने वाला सबसे पहले नष्ट होता हैं, उस  आत्मा को न भू लोक और ना ही परलोक दोनों की प्राप्ति नहीं होती है । 
संशय शब्द को विस्तार से समझते हैं । संशय का अर्थ हमारे अपने मन,बुद्धि और विचारों में चलने वाला अंतर्द्वंद है।  यह विचार हमारा व्यक्तिगत भी हो सकता है और दूसरों के विचारों से प्रभावित भी। व्यक्तिगत संशय हमारे कर्मों के अच्छे – बुरे प्रभाव, सही गलत, समय की स्थिति के लिए हो सकता है। दूसरों के विचारों से उत्पन्न संशय किसी की कही गई बात, विचार ,भाव- भंगिमा से हो सकता है। कुछ लोग अज्ञानवश संशय और संदेह को एक पलड़े में रखते हैं, जो मेरे ख्याल से सही नहीं है। संशय किसी दूसरे की कही गई बात से अपने मन और बुद्धि का अंतर्द्वंद है। संदेह किसी के प्रति मन और बुद्धि का अंतर्द्वंद है। संदेह किसी के प्रति होता है। संशय किसी के लिए होता है। संदेह का समानार्थी शब्द अविश्वास ,शक, प्रश्न है। संशय का समानार्थी शब्द अंदेशा, खटका ,डर अभिशंका ,अपडर है । इसको हम थोड़ा विस्तार से समझने के लिए तुलसीदास रचित रामायण का आशय लेते हैं। क्योंकि रामायण हम सब की आस्था का प्रतीक है । रामायण में सती को राम के पूर्णब्रह्म होने पर संदेह होता है । इसलिए सती सीता वेश धारण करके राम के सामने आती हैं  और आगे शिव मन से सती का त्याग कर देते हैं।  इस प्रसंग के उत्तरार्ध में सती को देह त्याग करना पड़ता है। दूसरा संदेह राम के राज्याभिषेक के बाद धोबी के संदेह से गर्भवती सीता को वन जाना पड़ता है , यहां राजा राम को संदेह नहीं था, वो राजा के पद पर थे, किसी और के संदेह को दूर करने के लिए उन्हें ऐसा करना पड़ा। यह तो रही हमारे संदेह की स्थिति, अब हम संशय पर आते हैं । संशय की स्थिति के कैकेई के मन में थी कि राजा दशरथ उसकी बात को मानेंगे या नहीं। बात क्या? भरत  को राजा बनाने की। इसके लिए कैकेई ने पुत्र मोह में डर के वशीभूत होकर अपने दोनों वचनों का प्रयोग किया। संशय के कारण ही राम को वनवास दिया। संशय और संदेह दोनों ही स्थिति अच्छे जीवन के लिए उपयुक्त नहीं है । संशय का त्याग कर आत्मविश्वासी बनना चाहिए। 
“संशय विनाश है जीवन का, फिर भी इस पथ पर बढ़ते जाते हैं;
सीधा सरल सुखी हो जीवन, इस पथ क्यों नहीं अपनाते हैं।”- प्रोफेसर सरला जांगिड़ 

Latest