Saturday, July 27, 2024

Definition of Match | प्रतिद्वंद्विता की परिभाषा

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प्रतिद्वंद्विता की परिभाषा | प्रतिद्वंद्विता क्या है
Definition of Match | Meaning of Clamber | Pratidvandvita Ki Paribhasha

“” प्रतिद्वंद्विता “”

“” किसी से अधिक योग्यवान साबित करने के लिए अपने आप को कष्टदायी स्थिति से रुबरु करवाना ही प्रतिद्वंद्विता है। “”

“” किन्हीं दो के मध्य श्रेष्ठता हेतु मची रस्साकशी ही प्रतिद्वंद्विता कहलाती है। “”

सामान्य परिप्रेक्ष्य में –

वैसे “” प “” से प्रतिबिंब
“” र “” से रति
“” त “” से तीव्रता
“” द”” से दमखम
“” व् “” से विवाद द्विपक्षीय
“” न् “” से नियति
“” द “” से दर्जा
“” व् “” से वक़्त अनुसार
“” त “” से तामील

“” प्रतिबिंब में रति व तीव्रता के साथ – साथ दमखम विवाद द्विपक्षीय होने पर नियति दर्जा जब वक़्त अनुसार तामील करे तो वह प्रतिद्वंद्विता कहलाती है। “”

वैसे “” प “” से प्रतिकार
“” र “” से रोषपूर्ण
“” त “” से तकाजा
“” द”” से दावा
“” व् “” से वजूद
“” न् “” से नवनिर्माण
“” द “” से दखल दूसरे पक्ष
“” व् “” से विधिसम्मत
“” त “” से

“” प्रतिकार जब रोषपूर्ण तकाज़े में दावा वजूद के नवनिर्माण में दखल दूसरे पक्ष से विधिसम्मत व तर्कसंगत हो तो वह प्रतिद्वंद्विता कहलाती है। “”

मानस की विचारधारा में –

“” किसी दूसरे को ध्यान में रखकर बनाई गई रणनीति ही प्रतिद्वंद्विता है। “‘

“‘ किसी विशिष्ट स्थान, पहचान या स्थिति के समक्ष श्रेष्ठता हेतु प्रदर्शन ही प्रतिद्वंद्विता है। “”

—– “” प्रतिद्वंद्विता ज्यादातर अहम / मानसिक कुंठा की सन्तुष्टि के मार्ग को प्रशस्त करती है। “” —–

“”  आज के युग में श्रेष्ठ साबित होने का तरीका भी यही है और प्रतिस्पर्धा  की सिद्धि में अहम पड़ाव प्रतिद्वंद्विता ही आता है। “”

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प्रतिद्वंद्विता की परिभाषा | प्रतिद्वंद्विता क्या है

मानस जिले सिंह
【 यथार्थवादी विचारक】
अनुयायी – मानस पँथ
उद्देश्य – सामाजिक व्यवहारिकता को सरल , स्पष्ट व पारदर्शिता के साथ रखने में अपनी भूमिका निर्वहन करना।

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Sanjay Nimiwal
Sanjay
1 year ago

सुन्दर व्याख्या 👌👌

जीवन का हर कदम

चुनौतियों से भरा है,

इस दुनिया में जीतता वही है

जो साहस से लड़ा है।।

Sarla Jangir
Sarla Jangir
1 year ago

प्रतिद्वंदिता -अगर प्रतिद्वंदी दूसरे को नीचा दिखाने के लिए कोई कार्य करता है, तो उसमें ईर्ष्या की भावना होती हैं , किसी दूसरे के अस्तित्व को मिटाने की भावना होती है ।लेकिन अगर प्रतिद्वंदी मन में अपने अस्तित्व को स्थापित करने की भावना से कार्य करता है तो उसमें आत्मनिर्भरता या आत्मसम्मान की भावना आती है । इसलिए प्रतिद्वंदिता में ध्यान रखना चाहिए कि दूसरे के अस्तित्व को गिरा कर ऊपर नहीं उठना है बल्कि उसके अस्तित्व को स्वीकार करते हुए अपने आप को श्रेष्ठ बनाना है।

Amar Pal Singh Brar
Amar Pal Singh Brar
1 year ago

बहुत खूब

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