Saturday, July 27, 2024

Definition of Perform | कर्म का अर्थ

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कर्म की परिभाषा | कर्म क्या है | कर्म का अर्थ
Definition of Perform | Meaning of Act | Karma Kya Hai | Karma Ka Arth
एक फिर नये अंदाज में – “” कर्म “”
“” अपेक्षित परिणामस्वरूप किये जाने वाले प्रयत्न ही कर्म कहलाते हैं। “”
“” आकांक्षा की पूर्ति हेतु किये जाने वाले प्रयास ही कर्म कहलाते हैं। “”
वैसे मानस के अंदाज में —
“” क “” से कर्त्तव्यनिष्ठा जहां जीवन की सर्वोच्च प्राथमिकता में दर्ज हो,
वहाँ आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण होना लाज़मी हो जाता है ;
“” र “” से रति जहां हर विचार से होने लगे तो,
वहाँ कार्य की दक्षता अपने चरम पर होती है ;
“” म “” से महत्वाकांक्षा जहां हर वक़्त पूरी करने की धुन सवार हो,
वहाँ निश्चय ही अभूतपूर्व परिणाम आते हैं ;
 “” वैसे महत्वाकांक्षा को पूरा करने की रति जहां कर्त्तव्यनिष्ठा से हो उसे, वहाँ  “” कर्म “”  कहते हैं। “”
 “” स्वप्न को यथार्थ में परिवर्तन करने हेतु किया गया परिश्रम ही कर्म कहलाता है। “”
“” इंसान से महान व्यक्तित्व के धनी बनने तक हर संघर्ष कर्म ही तो है। “”
“” सोने को कुंदन बनने के लिये बार – बार तप से गुजरना पड़ता है, ठीक उसी तरह मेरे हर लेखन में आपकी प्रतिक्रिया मुझे एक यथार्थवादी विचारक बनाने में मदद करेगी।””
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कर्म की परिभाषा | कर्म क्या है | कर्म का अर्थ

मानस जिले सिंह
【 यथार्थवादी विचारक】
अनुयायी – मानस पँथ
उद्देश्य –  सामाजिक व्यवहारिकता को सरल , स्पष्ट व पारदर्शिता के साथ रखने में अपनी भूमिका निर्वहन करना।

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Lecturer Anju bala
2 years ago

Nice

Dalip Singh
2 years ago

Nice

Devender
2 years ago

सराहनीय 'मानस' लेखन कार्य (कर्म)।।

SARLA JANGIR
SARLA JANGIR
1 year ago

नदी किनारे बैठा युवक एक, धीर – शांत मुद्रा में,
 जीवन से कलांत हुआ,
 पराजित मन, थकित देह,
 जैसे निर्जन वन में ठूंठ- सा,
 दोनों हाथ धरती पर टेके , शून्य में एकटक देख रहा 
अनजानी सोच में सोच रहा था, कहां हूं मैं? यहां क्या मैं क्या कर रहा?
 भाग्य से जीवन है या, कर्म से बनना है मुझको ,
ऐसी चिंता में अपने -आप  को कोस रहा 
सोच तो सिर्फ सोच होती है, चिंता में घुलता रहा
 दो पहर बीत गए, सोच का अंत ना रहा 
हाथ में लिपटी धूल ने पुकारा, उठ ! मनुष्य, क्यों चिंता से लिपट  रहा ?
पौरुष से जीवन को सींच, बीती में क्यों डूब रहा?
 कर्म पर विश्वास कर तू,  नियति को क्यों कोस रहा? 
माना राह थोड़ी कठिन है, भय से क्यों त्रस्त रहा?
स्मरण कर  इतिहास को अपने,  कर्म से क्यों भाग रहा ?
याद कर मां के दर्द को, पिता के अभिमान को
 याद कर अब मनुज धर्म को, अपने खोए हुए स्वाभिमान को
 तेरे हाथ रंगें हैं मुझमें, समाना है तुझे मेरी गोद में 
उड़ती धूल न बनो तुम , जो आँखों में चुभन करेबवंडर सा जीवन जिओ, सब तुम्हें सम्मान करें
 रेत, गर्द ,धूल, मिट्टी में, अंतर सिर्फ़ स्तर का हैजानो और पहचानों, क्या तुम्हारा कर्म है?
मिट्टी का मिट्टी में मिलना, यही तो सब की नियति में 
तय करेगा तेरा कर्म ही, कैसे तेरा आना होगा
 चाहिए सिर्फ चार कंधे तुझको, या पीछे तेरे जमाना होगा ।-Professor Sarla Jangir

Sarla Jangir
सरला जांगिड़
10 months ago

कहीं भी विराम नहीं ,
किसी को विश्राम नहीं।
यह दौड़ है जीवन जीने की,
 संघर्ष का दूजा नाम यहीं।।

 ढूंढे अगर ठहराव को,
 जीवन में अपनी चाह को,
 दरिया के किसी किनारे को ,
समुद्र के तल की थाह को,
 सवाल है जवाब नहीं,
 कहीं भी विराम नहीं ।।
समय तो रुकता नहीं ,
जवानी तो झुकती नहीं ,
बचपन का अपना राग है,
 बुढ़ापा तो सिर्फ त्याग है ,
परिवर्तन चल है अचल नहीं ,
कहीं भी विराम नहीं ।।
पृथ्वी भी अटल नहीं ,
जो रोक सके वह बल नहीं,
 धड़कनें भी कभी थकती नहीं ,
वायु भी रुकती नहीं ,
प्रकृति भी गतिमान है, 
कहीं भी विराम नहीं।।
 ना भावों पर अपनी रोक है,
 ना सांसों पर अपना रौब है ,
मन भी चंचल है स्थिर नहीं,
 कहीं भी विराम नहीं।।- प्रोफेसर सरला जांगिड़

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