भरोसे की परिभाषा | भरोसे का अर्थ
Definition of Trust | Meaning of Trust | Bharose ki Paribhasha
” भरोसा “‘”
जब-जब भरोसा तोड़ा गया ,
मर्यादायें तार-तार हो बिखर भी गयीं ;
अंतर्मन का टूटना तो लाज़मी था ही ;
दिल भी शीशे के तरह चकनाचूर हो गया ;
जिसने चक्रवात की प्रचंड लहरों को कभी यूँही पार कर लिया ,
अब हवा का झोंका भी शिकारे को डरा सा गया ;
जो कभी जांबाज़ी से निहत्थे ही शेरों ढेर करते थे ,
आज हथियारयुक्त होकर भी सियारों को “” जिगर ऐ लहू “” पिला गया ;
भरोसे में जहां “”भ”” से “” भातृत्व “” का आभास होने लगे ,
वहीं “”र”” से “”” रहमत “”” की आस भी जगने लगे ;
“”स”” से “” संरक्षित “”” होने का जो अहसास भी होने,
“” भातृत्व में जब रहमत व सरंक्षित का आभास होने लगे तो वह फिर भरोसा कहलाता है। “” ;
वैसे भरोसे में
“”भ”” से भीतरघात जहां पग पग निमन्त्रण देने लगे ,
“”र”” से रोष भी ढेर सारा व्याप्त हो जहां ;
“”स”” से सत्यानाश की लालसा भी जब सिर चढ़कर बोले ,
रोष में भीतरघात से सर्वनाश की लालसा परवान चढ़ने लगे तो भरोसा टूट अब विश्वासघात हो जाता है ;
इसीलिये मानस बुजुर्गों द्वारा बार-बार कहा गया ,
ज़हर की जगह जब किसी को भरोसा दिया गया हो तो ;
हलाहल विष का ईलाज फिर भी हो गया होता है ,
भरोसा जो टूटे तो “” इंसान जीवित होते हुए भी जिंदा लाश “” बन जाता है। ;
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भरोसे की परिभाषा | भरोसे का अर्थ
मानस जिले सिंह
【 यथार्थवादी विचारक】
अनुयायी – मानस पँथ
उद्देश्य – समाज में शिक्षा, समानता व स्वावलंबन के प्रचार प्रसार में अपनी भूमिका निर्वहन करना।
Nice thought
लाजवाब, 👌
सुन्दर अभिव्यक्ति 🙏
गजब व्याख्या
बहुत ही अच्छा लिखा गुरु जी
Nice 👍
Nice
बहुत बहुत आभार
शानदार