Wednesday, November 13, 2024

Meaning of Depressed | दलित शब्द एक नज़र

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दलित शब्द एक नज़र | दलित शब्द एक अभिशाप या दरिद्रता के मक्कड़ जाल से निवृत्ति हेतु स्वतः स्वीकृति द्वारा बनी की एक फ़ांस
Meaning of Depressed | A view on Classification of Depressed | Dalit Ka Matlab

| दलित |

सामान्य परिप्रेक्ष्य में –

“” दलित शब्द के कई उपनाम दिये गये हैं और इनके संदर्भ भी समय के साथ विकसित हुए हैं। ये उपनाम विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक आंदोलनों के परिणामस्वरूप उभरे। इन उपनामों का प्रयोग मुख्य रूप से उन समुदायों को संबोधित करने के लिए किया गया जिन्हें पारंपरिक रूप से “अस्पृश्य” या “शोषित” माना जाता था। समय के साथ इन शब्दों का प्रयोग सामाजिक सुधारकों, राजनेताओं और लेखकों द्वारा किया गया।

1. अस्पृश्य (Untouchables):
अस्पृश्य या अछूत का प्रयोग प्राचीन और मध्यकालीन भारत में उन जातियों के लिए किया जाता था जिन्हें जातिगत श्रेणीकरण में “शूद्र” से भी नीचे माना जाता था और समाज से बहिष्कृत रखा जाता था। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “The Annihilation of Caste” (1936) में अस्पृश्यता के मुद्दे पर विस्तार से उल्लेख किया। अंबेडकर द्वारा यह तर्क दिया कि अस्पृश्यता एक सामाजिक बुराई है, जिसे समाप्त किया जाना चाहिए। उन्होंने इसे भारतीय समाज की सबसे विक्षिप्त व विकराल समस्या के रूप में देखा और इसके खिलाफ संघर्ष भी किया।

2. शूद्र:
प्राचीन हिन्दू वर्ण व्यवस्था में शूद्र सबसे निचली जाति के रूप में देखे जाते थे और उन्हें कई सामाजिक अधिकारों से वंचित भी रखा गया था। हालांकि शूद्र और दलित समान नहीं हैं, लेकिन कई बार यह शब्द शोषित वर्ग के संदर्भ में उपयोग किया गया है। समाजसेवी ज्योतिबा फुले ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “गुलामगिरी” (1873) में शूद्रों और अतिशूद्रों के प्रति होने वाले अत्याचारों का उल्लेख किया। उन्होंने इसे भारतीय समाज में ब्राह्मणवादी व्यवस्था के द्वारा उत्पन्न की गई गुलामी का प्रतीक माना।

3. अतिशूद्र:
शूद्रों के नीचे आने वाली जातियों के लिए “अतिशूद्र” शब्द का उपयोग किया जाता था। ये वे जातियाँ थीं जिन्हें पूर्ण रूप से सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता था। ज्योतिबा फुले ने “अतिशूद्र” शब्द का भी प्रयोग किया और अपने लेखन में शूद्र और अतिशूद्र जातियों की सामाजिक स्थिति के बारे में विस्तार से चर्चा की है और उन्होंने इस शब्द का उपयोग उन सभी निचली जातियों के लिए किया जो सदियों से सामाजिक रूप से उत्पीड़ित थीं।

4. हरिजन:
“हरिजन” का अर्थ है “ईश्वर के लोग”। महात्मा गांधी ने इस शब्द का सबसे पहले प्रयोग अपने अखबार “हरिजन” में किया, जो उन्होंने 11 फरवरी 1933 में प्रकाशित किया। इस अखबार के माध्यम से गांधी ने जातिगत भेदभाव के खिलाफ अभियान चलाया और सामाजिक सुधार की बात की।
गांधी ने दलित समुदाय को “हरिजन” कहकर संबोधित करने का उद्देश्य यह था कि वे अस्पृश्यता के कलंक को समाप्त कर सकें और इन समुदायों को समाज में एक सम्मानजनक स्थान दिला सकें। वे मानते थे कि यह एक सकारात्मक और सम्मानजनक शब्द है, जो जातिगत भेदभाव को कम कर सकता है।

महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक “हिंद स्वराज” और अन्य लेखों में “हरिजन” शब्द का उल्लेख किया लेकिन उनका सबसे स्पष्ट विचार इस शब्द के बारे में उनके लेखन और भाषणों में मिलता है जिन्हें उन्होंने हरिजन समुदाय के उत्थान के लिए किया।
गांधी का विश्वास था कि समाज को जातिगत भेदभाव से मुक्त करना जरूरी है और इसके लिए “हरिजन” जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाए ताकि इन समुदायों को नई पहचान मिल सके साथ ही साथ वे समाज में सम्मान के साथ जी सकें।

हालांकि गांधी की मंशा सकारात्मक थी, लेकिन डॉ. भीमराव अंबेडकर और दलित नेताओं ने इस शब्द को अस्वीकार किया। अंबेडकर और अन्य दलित विचारकों का मानना था कि “हरिजन” शब्द दयालुता और कृपा का प्रतीक है जो इन समुदायों के लिए अपमानजनक था। उन्हें यह शब्द बहुत ही संरक्षणात्मक लगा क्योंकि यह जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के बजाय उन्हें ईश्वर की दया पर निर्भर बना रहा था।
दलित नेताओं ने इस शब्द को समाज की ओर से उनके लिए एक “बख्शीश” के रूप में देखा जो उनके संघर्ष और अधिकारों को कमजोर करता था। इस कारण दलित समाज ने “हरिजन” शब्द को खारिज कर दिया और “दलित” शब्द को प्राथमिकता दी। जो फिर उनके संघर्ष और अधिकारों का प्रतीक बना।

5. बहिष्कृत:
यह शब्द उन जातियों के लिए उपयोग किया जाता था जो समाज से पूरी तरह से बहिष्कृत थीं। यह उपनाम ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में अधिक प्रचलित हुआ जब अंग्रेजी प्रशासन ने इन्हें कानूनी और राजनीतिक रूप से पहचाना।
डॉ. अंबेडकर ने अपने पत्र “बहिष्कृत भारत” में इस शब्द का उपयोग किया, जिसमें उन्होंने अस्पृश्य जातियों की स्थिति का वर्णन किया और उनके अधिकारों के लिए संघर्ष की रूपरेखा भी प्रस्तुत की।

6. नामांतरण के बाद उपनाम (Buddhist Dalits or Neo-Buddhists):
जब डॉ. अंबेडकर ने 1956 में अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया, तो इन दलितों को “नव-बौद्ध” या “बुद्धिस्ट दलित” के नाम से भी संबोधित किया गया। इस आंदोलन ने दलितों को एक नई पहचान दी और उनके संघर्ष को बौद्ध धर्म से जोड़ा।
डॉ. अंबेडकर ने अपनी पुस्तक “The Buddha and His Dhamma” (1957) में बौद्ध धर्म और दलितों के पुनर्जन्म के बारे में चर्चा की है। इस पुस्तक में उन्होंने सामाजिक और आध्यात्मिक समानता की दिशा में इस परिवर्तन की व्याख्या की।

7. अनुसूचित जाति और जनजाति (Scheduled Castes and Scheduled Tribes):
अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) शब्दों का औपचारिक और कानूनी प्रयोग भारतीय संविधान के तहत किया गया। ये श्रेणियां भारत के हाशिए पर रहे समुदायों को विशेष सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए बनाई गईं।

1935 के भारत सरकार अधिनियम (Government of India Act, 1935) के तहत पहली बार “अनुसूचित जाति” और “अनुसूचित जनजाति” शब्दों का इस्तेमाल किया गया। यह शब्दावली उन जातियों और जनजातियों को चिन्हित करने के लिए थी जो सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित थीं। यह सूची (या शेड्यूल) सरकार द्वारा तैयार की गई ताकि इन समुदायों को शिक्षा, रोजगार, और सामाजिक सुधारों में प्राथमिकता दी जा सके।

26 जनवरी 1950 को लागू हुए भारतीय संविधान में अनुसूचित जातियों और जनजातियों को विशेष अधिकार दिए गए। संविधान के अनुच्छेद 341 (अनुसूचित जातियों के लिए) और अनुच्छेद 342 (अनुसूचित जनजातियों के लिए) में इन समुदायों की सूचियां तैयार की गईं। इन सूचियों का उद्देश्य था कि जो जातियां और जनजातियां सदियों से सामाजिक, शैक्षिक, और आर्थिक रूप से पीछे रही थीं, उन्हें सामाजिक न्याय के तहत विशेष सुविधाएं और अधिकार मिल सकें।

8. दलित:
“दलित” शब्द का सबसे पहले प्रयोग महात्मा ज्योतिबा फुले ने किया, और इसे आधुनिक संदर्भ में डॉ. अंबेडकर और दलित पैंथर्स आंदोलन के दौरान प्रमुखता मिली। यह शब्द उन सभी जातियों के लिए एक राजनीतिक और सामाजिक पहचान बन गया जो सदियों से शोषित और उत्पीड़ित रही हैं।

दलित पैंथर्स के नेता जैसे नामदेव ढसाल और ज.वी. पवार ने इस शब्द का बड़े पैमाने पर उपयोग किया। नामदेव ढसाल की रचनाएं और उनकी कविताएँ दलितों के संघर्ष और उत्पीड़न को केंद्र में रखकर लिखी गई हैं। “”

तार्किक परिप्रेक्ष्य से –

“” किसी भी शब्द का प्रयोग जब संगठित होने के लिए किया जाये या फिर
किसी भीड़ या यत्र तत्र को टुकड़ों में बांटकर प्रतिनिधित्व दिया जाये या फिर
एक बोली या क्षेत्र या सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखने की कवायद में हुआ गठजोड़ या फिर
एक सामान भौगोलिक परिस्थितियों का सामुहिक प्रतिनिधित्व

यानि कुछ भी तरीका हो चाहे पर होता तो है उन सब में एक अंतर्निहित लक्ष्य या स्वार्थ जनित आकांक्षा या फिर एक ध्येय ही क्यों न हो।

परिणाम सिर्फ एक मात्र ही होता है वह है “” वर्ग विशेष की रचना “”

यह रचनात्मक या सृजनात्मक दोनों।में कुछ भी हो सकता है इसका परिणाम भविष्य के गर्भ में छिपा रहता है। एक घटना कई अन्य घटनाओं की जन्मदात्री या सहायक सिध्द होती है।

जैसे ही अनुसूचित जाति व जन जाति के उत्थान का संविधान द्वारा मार्ग निकाला गया। तो कुछ उपेक्षित व वंचित जो बचे रह गये न्याय दिलवाने की प्रक्रिया ने उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया।यहीं फिर एक नये वर्ग का निर्माण हुआ।

जब भारत भूखण्ड में दलित वर्ग के उत्थान कि बात या आंदोलन मुखर होता है तो वहीं अत्याचार, उपेक्षा और अपमान की आग में झुलसती अनेकों पथराई व लाचार ऑंखें को एक नये वर्ग का नाम मिला जिसे “” अन्य पिछड़ा वर्ग “” यानि OBC ।

“अन्य पिछड़ा वर्ग” (Other Backward Classes – OBC) शब्द का इस्तेमाल भारत में पहली बार सरकारी दस्तावेजों और सामाजिक सुधारों में पिछड़ी जातियों और समुदायों को परिभाषित करने के लिए किया गया। इस शब्द का प्रमुख उपयोग सर्वप्रथम कुछ समितियों में देखने को मिलता है।

1. काका कालेलकर आयोग (1953)

आज़ादी के बाद भारत सरकार ने पहली बार पिछड़े वर्गों की पहचान और स्थिति सुधार के लिए 1953 में काका कालेलकर आयोग का गठन किया। इस आयोग की सिफारिशों में “अन्य पिछड़ा वर्ग” (OBC) की पहचान करने और उनके उत्थान के लिए कदम उठाने की बात की गई थी। हालांकि, इस आयोग की सिफारिशों को पूरी तरह लागू नहीं किया गया।

2. मंडल आयोग (1979)

1979 में, बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की अध्यक्षता में “मंडल आयोग” का गठन किया गया। मंडल आयोग ने गहन अध्ययन के बाद भारत की कुल आबादी में पिछड़े वर्गों का पता लगाया और सिफारिश की कि सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में “अन्य पिछड़ा वर्ग” (OBC) के लिए 27% आरक्षण दिया जाए।

1990 में प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की घोषणा की, जिसके बाद OBC आरक्षण की शुरुआत हुई।

यह उदाहरण बस वर्ग के निर्माण प्रक्रिया को दर्शाना भर था।
अब आ जाते हैं उनकी सामाजिक स्वीकृति या अस्वीकृति पर …. …. इसका जिक्र अगले लेख में करूँगा।
तब तक के लिए क्षमा प्रार्थी रहूँगा। आपके स्नेह, सानिध्य व सरंक्षण की याचना करता हूँ।

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मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ , शिष्य – प्रोफेसर औतार लाल मीणा
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु प्रकृति के नियमों का यथार्थ प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध योगदान देना।

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