श्रीमद्भगवद्गीता का शाब्दिक अर्थ | श्रीमद्भगवद्गीता क्या है
Meaning of Shrimad Bhagwad Geeta | Shrimad Bhagwad Geeta Kya Hai
| श्रीमद्भगवद्गीता |
पौराणिक कथाओं व मान्यताओं के अनुसार –
“” भगवान के गुणों के वर्णन के साथ साथ भक्ति मार्ग , ज्ञान मार्ग व कर्म मार्ग की व्याख्या से ईश्वर प्राप्ति यानि मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करना। “”
सैद्धांतिक दृष्टि से व्याख्या
सन्धि विच्छेद द्वारा —
श्री + मद् + भगवद् + गीता = श्रीमद्भगवद्गीता
श्री = शिक्षित होने पर शालीन हो, रणबांकुरा होने के साथ रसिक भी हो और ईमानदार के साथ ईश्वरनिष्ठ हो तो, वह “” श्री “”
मद् = मानस की ध्यान साधना के साथ दयादृष्टि बनाये रखना ही “” मद् “”
भगवद् = भवसागर का तारणहार के साथ गुणों का सागर, विश्वजीत और दयानिधान होना ही “” भगवद् “”
गीता = गरिमामयी अभिव्यक्ति , ईमान के साथ कर्म का आचरण व तत्वज्ञान के परिप्रेक्ष्य में अविलम्ब साक्षात्कार करवाने वाला ग्रँथ ही “” गीता “”
दूसरे शब्दों में –
श्री + म + द् + भ + ग + व + द् + ग + ई + त + अ = श्रीमद्भगवद्गीता
श्री = जो श्रद्धेय होने के साथ इंद्रजीत भी हो
म = माया
द् = दूर करने वाला व दृष्टा भी
श्रीयुक्त जो माया दूर करने वाला व दृष्टा ही “” श्रीमद्भ “”
भ = भक्तवत्सल के साथ संहारक हो
ग = गतिशील होने के साथ शाश्वत हो
व = विश्वरूप के साथ अविनाशी हो
द् = दयासिन्धु होने के साथ दण्डनायक हो
“” भक्तवत्सल के साथ गतिशील , विश्वरूप और दयासिन्धु होना ही “” भगवद् “”
ग = गुणातीत 【 सत्व, रज व तम गुण से परे 】
ई = ईश्वरीय गुणों की व्याख्या
त = तारण हारिणी
अ = आसक्ति / आस्था का अनुग्रह करना
“” गुणातीत होने पर ईश्वरीय गुणों की व्याख्या कर तारण हारिणी व आस्था का अनुग्रह करने वाला ग्रँथ ही “” गीता “”
अन्य शब्दों में –
श्री + म + द् + भ + ग + व + द् + ग + ई + त + अ = श्रीमद्भगवद्गीता
श्री = जिसकी श्रांत भावानुभूति होते हुए भी ईश्वर पर आसक्ति हो तो, वह श्री कहलाता है ।
म = मानस के ध्यान प्रति अधीर हो ।
द् = दरवेश होते हुए भी स्वंयम्भू हो।
“” श्रीयुक्त होकर मानस के ध्यान के प्रति अधीर जो दरवेश होते हुए भी स्वंयम्भू हो वही “” श्रीमद् “”
भ = भविष्य दृष्टा के साथ अकल्पनीय हो
ग = गंधहीन होने के उपरांत सुगन्धित हो
व = विराट पुरुष के साथ अतिसूक्ष्म हो
द् = दयासागर होने के साथ प्रलयकारी हो
“” भविष्य दृष्टा , गन्धहीन होने उपरांत भी विराट पुरूष के साथ दयासागर होना ही “” भगवद् “”
ग = गरूर यानि गुमान का संहार
ई = ईश्वर के विश्वरूप स्वरूप से परिचय
त = तात्विक गुणों 【 पंच महाभूत व पंच तन्मात्र 】 से अवगत करना
अ = अनुयायी बनने हेतु प्रेरणादायी संग्रह
“” गरूर के संहार के उपरांत ईश्वरीय विश्वरूप के तात्विक गुणों से अवगत करवाकर अनुयायी बनने हेतु प्रेरणादायी संग्रह ही “” गीता “”
सरल शब्दों में –
“” निर्गुण ब्रह्म को साकार रूप में साधने की प्रकिया में भक्ति व ज्ञान योग साधन बताते हुए, कर्म की प्रधानता में निष्काम भाव रखना सिखाये वही ग्रंथ “” श्रीमद्भगवद्गीता “” है। “”
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श्रीमद्भगवद्गीता का शाब्दिक अर्थ | श्रीमद्भगवद्गीता क्या है
मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु प्रकृति के नियमों का यथार्थ प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध योगदान देना।
सुन्दर व्याख्या 🙏👌🙏
जो हुआ वह अच्छा हुआ,,
जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है,,,,
जो होगा वो भी अच्छा ही होगा ।।।
Very nice