Saturday, July 27, 2024

Meaning of Will | इच्छा का अर्थ

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इच्छा का अर्थ | इच्छा की परिभाषा
Meaning of Will | Definition of Will | Echha Ka Arth

| Will |

“” किसी भी प्रकार की गई आवश्यकता पूर्ति हेतु की गई तड़प ही इच्छा कहलाती है। “”

वैसे “” W “” To Want
“” चाह “”
“” I “” To Intention
“” अभिप्राय “”
“” L “” To Licentious
“” बेलगाम “”
“” L “” To Longing
“” लालसा “”

“” वैसे चाह का अभिप्राय जब बेलगाम लालसा से युक्त हो तो इच्छा बनती है। “”

वैसे “” W “” To Wonderful
“” अद्भुत “”
“” I “” To Implementation
“” क्रियान्वयन “”
“” L “” To Lustrous
“” उज्ज्वल “”
“” L “” To Lubricious Loyalty
“” प्रवाहमय निष्ठा “”

“” वैसे अद्भुत क्रियान्वयन का उज्ज्वल के साथ प्रवाहमय निष्ठा युक्त होना ही उसे इच्छा बनाता है। “”

“” कार्य सिद्धि हेतु मची छटपटाहट ही इच्छा कहलाती है।””

“” भविष्य की सर्तकता व सार्थकता हेतु बनी व्याकुलता ही इच्छा कहलाती है। “”

“” इच्छा रखना सकारात्मकता दर्शाती है और इच्छित पूर्ति में ही बने रहना मूर्खता। “”

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इच्छा का अर्थ | इच्छा की परिभाषा

मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु प्रकृति के नियमों का यथार्थ प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध योगदान देना

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SARLA JANGIR
SARLA JANGIR
1 year ago

बाबा के आंगन में खिली, 
एक नन्ही -सी परी ।
अपनों के असीम स्नेह से,
 फूल बनकर निरंतर बढीं ।
संस्कारों के ओढ़े वस्त्र ,
ममता की छांव में पली-बढ़ी ।
नव कुसुमित फूल बनकर, 
 पिया के आंगन में सजी ।
 रिश्तो के वह रूप बदलकर ,नव परिवेश में जा मिली । लेकिन वह जड़…. जो छूट गई थी पीछे कहीं,
 बार-बार मिलने को उनसे ,इंतजार में जा बंधी ।
 खुश थी बेहद नव आंगन में, खलती रहती एक कमी ।
मिलन तड़प् थी उसके मन में ,बेचैनी मां भी रहती डरी ।
कभी-कभी इंतजार लंबा हो जाता है, विश्वास में नहीं रहती कमी ।

हां, जाना तो जरूर है ।

पूरे साल इंतजार किया,
 अपनी मां से मिलने का,
 थोड़ा सुख-दुख साझा करने का,
 कुछ बीती बातें कहने का ,
कुछ सलाह मशवरा करने का,
 पुराने दर्दों पर मरहम लगाने का,
 अनकही बातों को जुबां से कहने का ,
पुरानी यादों को ताजा करने का,
 कुछ सोए ख्वाब सजाने का,
 अपनी मां से मिलने का,

 हां जाना तो जरूर है ।

इस बार पिता से कहूंगी,
 क्यों जल्दी इतनी पराई की?,
 बेटी हूं, शायद यह सोच कर, 
अपनी सोच में भलाई की,
 जन्म देकर, प्यार देकर,
 क्यूं हाथ जोड़कर विदाई की?,

 अब मुझे तरसना पड़ता है,
 हर बार सोचना पड़ता है ,
कलेजा मुंह को आता है,
 जब वर्ष बीतता जाता है,

 इतनी शक्ति कहां से आती है? ,
जो वर्ष की जुदाई सह जाती हैं,

 इस बार पिता से कहूंगी,
 कि अगले जन्म मुझे बेटा बनाना ,
हमेशा अपने पास रखना,
 वर्ष का इंतजार नहीं करना होगा,
 हर पल तुमसे मिलना होगा ।

इस बार पिता से जरूर कहूंगी,

 हां जाना तो जरूर है 

प्यारे भाई से मिलूंगी,
थोड़ी सी शिकायत करूंगी,
 क्यों नहीं मिलने आते हो?
 कैसे तुम दूर रह जाते हो?
 क्या कर्तव्य प्रेम से बढ़कर है?
 क्या मेरा आना ही निश्चित है?
 अनजाने में तुम भी कभी आओ ना ,
अपनी बीती सुनाओ ना,
 दोनों मिलकर खूब बातें करेंगे ,
कुछ बचपन और कुछ आज की, चर्चा थोड़ी करेंगे ,
तुम्हें किसने की मनाही है ,
मेरे पास आने की क्या गुनाही है?
 परंपरा में ज्यादा उलझो मत,
 कर्म को हर बार पहले रखो मत,
 कभी तो अपने दिल से सोचो,
 बीते समय के पहलू खोजो ,
प्यारे भाई से जरूर कहूंगी 

हां जाना तो जरूर है। – प्रोफेसर सरला जांगिड़

Sanjay Nimiwal
Sanjay
Reply to  SARLA JANGIR
1 year ago

बहुत खूब 🙏🙏

Sanjay Nimiwal
Sanjay
1 year ago

🙏👌🙏

इच्छा तो मन में बहुत है पर क्या करें ,,,
एक पूरी होते ही दूसरी शुरू हो जाती है।।
और कुछ दबी की दबी ही रह जाती है ।।।

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