Tuesday, March 21, 2023

“” प्रेम की परिभाषा “” या “” प्रेम का भावार्थ “‘

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“” प्रेम की परिभाषा “” या “” प्रेम का भावार्थ “‘
“” Meaning of Love “” Or “” Definition of Devotion “”

“” प्रेम “”

“” अहिंसात्मक रहते हुए भी आश्रित हेतु प्राणों की आहुति की उत्कंठा ही प्रेम है। “”

“” निःस्वार्थ समर्पण का दूसरा नाम प्रेम है। “”

“” किसी के सुखद की कामना में निश्छल व निश्चल कार्यप्रणाली का निर्वहन ही प्रेम है। “”

“” सर्वकल्याण की भावना में भी किसे के प्रति आत्मीयता के साथ निष्ठावान होना ही प्रेम है। “”

वैसे “” प “” से परमार्थ जहां जीवन का आदर्श बनने लगे,
वहाँ जीवन सरल व सुखद होना तय है ;
“” र “” से रक्षण जहां जीवन में दायित्व की परंपरा निभाने लगे,
वहाँ मानवीय संवेदनाओं की सर्वोच्चता बनी रहती है ;

“” म “” से मार्मिक जहां बनना मानवीय मूल्यों की गुणवत्ता बढ़ाये,
वहाँ शालीनतापूर्वक आचरण का बने रहना तय है ;
वैसे “‘ परमार्थ के साथ रक्षण जब मार्मिक भी बनाये रखे तो वह प्रेम कहलाता है। “”

“” प “” से परहित जहां सोच में समाने लगे,
वहाँ सुचिता के साथ सादगी के वशीभूत होना स्वभाविक है ;
“” र “” से रहमत जहां करना या मांगना जीवन में दर्शाने लगे,
वहां इंसान का मानवीय मूल्यों के प्रति श्रद्धा बढ़ती है ;

“” म “” से मौलिकता जहां कार्यपद्धति में शामिल हो,
वहॉं निश्छल होना लाज़मी ही हो जाता है ;
वैसे “” परहित व रहमत की आकांक्षा मौलिकता के साथ बनी हो तो वह प्रेम कहलाता है। “”

सामान्य परिप्रेक्ष्य में –

“” किसी की खुशी या अस्तित्व को बनाये रखने के लिए खुद के दम्भ को ताक पर रख देना भी प्रेम है। “”

“” अंतर्मन से प्रस्फुटित भाव जहां दूसरों के हितों या समर्पण को सरंक्षित करना हो तो वह प्रेम है। “”  

“” प्रेम स्वतंत्रता देता है और मोह बांधता है “”
“” प्रेम समर्पण देता है और मोह सरंक्षण की चाह रखता है “”
“” प्रेम स्वावलंबन यानि पुरुषार्थ की ओर अग्रसर करता है,
वहीं मोह अनुद्यमी, परजीवी या फिर गुलामी की जकड़न पैदा करता है। “”

“” सांसारिक वस्तुओं से प्रेम रखिये न कि मोह “‘

“” प्रेम बिछुड़ने पर संतोष देता है परंतु मोह पीड़ा व असहाय महसूस करवाता है “‘”

मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु प्रकृति के नियमों का यथार्थ प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध योगदान देना

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Sanjay Nimiwal
Sanjay
4 months ago

बहुत खूब 💕💕

प्रेम सब्र है,

सौदा नहीं….

तभी तो हर किसी से,

होता नहीं । ।

Amar Pal Singh Brar
Amar Pal Singh Brar
4 months ago

प्रेम के आखर तो अढ़ाई ही हैं

मगर इनका घुमाव मारे है ।

बहुत ही गूढ़ व्याख्या

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