Definition or Meaning of Spiritual Value / आध्यात्मिक मूल्य की परिभाषा
आध्यात्मिक मूल्य 【आध्यात्मिकता 】 :-
“” सृष्टि में ईश्वरीय शक्ति का अहसास, जानने व पाने की लालसा हेतु किये जाने वाले यत्न / विधि ही अध्यात्म है। “”
सरल शब्दों में :-
स्वयं में मानवीय मूल्यों का अध्ययन, विश्लेषण व संग्रहण के साथ अनुसरण करना ही आध्यात्मिकता है।
आध्यात्मिक मूल्य के निम्न बिंदु है।
अ :- शान्ति
ब :- प्रेम
स :- अहिंसा
द :- क्षमा
य :- करूणा
र :- दया
शान्ति :-
वैर, संघर्ष के आरम्भ से पूर्वावस्था जहां मनोचित के विराम या सौहार्दपूर्ण वातावरण/ माहौल का होना ही शांति कहलाती है।
सरल शब्दों में :-
ठहराव की वह मनोस्थिति जहां स्थिरता, शून्यता या ध्वनि विहीन / हलचल होने का आभास हो शान्ति कहलाती है।
प्रेम :-
किसी प्राणी द्वारा अन्य की खुशी या उसका अस्तित्व बनाये रखने के लिये खुद को फ़नाह तक करने का जज्बा / दम्भ को प्यार कहा जाता है।
सरल शब्दों में :-
अंतर्मन से प्रफुटिसित भाव जहां दूसरे के हितों या समर्पित भाव को सरंक्षित करना हो वह प्रेम है।
अहिंसा :-
मन, वचन व कर्म द्वारा किसी प्राणी के तन के साथ मानसिक / कोमल भावनाओं को किसी भी तरह से हानि, ठेस या आहत ना करना ही अहिंसा है।
सरल शब्दों में :-
किसी की मानसिक या शारीरिक अवस्था रुप को किसी प्रकार से नुकसान / चोटिल ना करना ही अहिंसा है।
क्षमा :-
सामर्थ्यवान होने के बावजूद गलती या अपराध के प्रति बदले के भाव का ह्रदय से त्याग करना ही क्षमा है।
सरल शब्दों में :-
द्वैषभाव के त्याग करने हेतु हृदय में पैदा हुआ मनोयोग ही क्षमा है।
करूणा :-
सर्वकल्याण हेतु भावावेग ही करूणा है।
सरल शब्दों में :-
अन्तःकरण द्वारा दूसरों के दुःख को महसूस कर निःस्वार्थ सहायता या उसके हेतु समर्पित मनोवृत्ति ही करूणा है।
दया :-
हृदय विदारित पीड़ा देख सहायता करने की प्रबल इच्छा ही दया है।
सरल शब्दों में :-
किसी को अभाव में देख कर उपकार हेतु हृदय में पैदा हुई भावना ही दया है।
मानवीय मूल्यों 【ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, पवित्रता, निष्पक्षता, न्याय, शान्ति, प्रेम, अहिंसा, क्षमा, करुणा व दया 】को अपनाने और निभाने से मानवमात्र ईश्वर की शक्ति को महसूस या आभास करने में एक सफल प्रयास साबित हो सकता है।
साथ ही साथ जीवन की सार्थकता को भी पूर्ण विराम देने में कामयाबी हासिल हो जाती है।
जैसे जैसे मूल्यों की एक एक सीढ़ी चढ़ते हैं वैसे वैसे प्रकृति व मानवता से जुड़ाव बढ़ता चला जाता है और एक दिन संतत्व की प्राप्ति हो जाती है।
सन्त = स् + अन्त
स् = स्वयं /खुद
अंत = नष्ट / मिटा देना
√ जिसने स्वयं के अभिमान / मान को जला / मिटा दिया हो वह सन्त है।
√ सत्य का सदैव संग करने वाला भी संत कहा जाता है।
√ जहां दूसरे का अक्स खुद में दिखाई दे वह सन्त है।
√ जो मन में अपने पराये का बोध अस्तित्व में ना लाये वह सन्त है।
√ जिसका प्रेम भौतिकी ना होकर सिर्फ 【प्रकृतिरत 】आत्मिक हो वह संत है।
संतत्व पहली सीढ़ी कही जाती है ईश्वर / प्रकृतित्व को जानने /आभास / अनुभूति करने हेतु।
मानस का वास्तविक उद्देश्य जीवन में सरलता, समानता व सजगता के साथ मानवीय मूल्यों का पुनःप्रतिस्थापन करना है।
मानस जिले सिंह
【 यथार्थवादी विचारक】
अनुयायी – मानस पँथ
उद्देश्य – समाज में शिक्षा, समानता व स्वावलंबन के प्रचार प्रसार में अपनी भूमिका निर्वहन करना।
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