Tuesday, September 30, 2025

Meaning of Bird’s Pain | पंछी की पीड़ा का अर्थ

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पंछी की पीड़ा की परिभाषा | पंछी की पीड़ा का अर्थ
Meaning of Bird’s Pain | Definition of Bird’s Pain | Panchhi ke Dard Ki Paribhasha

| should I say the pain of a bird or the meanness and folly of man |

| पंछी की पीड़ा कहूँ या इंसान की मतलबपरस्ती और मक्कारी |

आज सपनों ने फिर जो उड़ान भरी ,
खुलीवादियों में उड़ा ऐसे, मानो दिल की हर एक मुराद पूरी हो चली ;
नाप लूँ सारा ही आसमां, इस बुलन्दी में थकान भी किनारे हो चली ,
खूबसूरत बाग व नदी का जल देख, अब प्यास भी और बढ़ चली ;

उतरा जो नदी के किनारे, लगने लगा पानी की मिठास भी बढ़ चली ,
पानी मे देख अक्स को, लगे हैं पँख मुझे बड़ी ही हैरानी भी हो चली ;
रंग बिरंगे फलों का अम्बार देख, भूख भी अब तेजी से बढ़ चली ,
लगता था आज खाऊंगा बहुत सारा, पर चखने में ही भूख मिट चली ;

अब मन ललचाया बच्चों के लिए भी ले लूँ कुछ, ये भावना भी परवान हो चली ,
थैला जो साथ न लाया था, ये चिन्ता भी अब अजीब सी हो चली ;
बैरहाल जब ध्यान आया, तो फिर चोंच ही दानों से भरी ,
बच्चों को जो प्यार से खिलाया और बुझ जाये प्यास उनकी, फिर से उड़ान हमारी भर चली ;

पंजे में जकड़ आकाश में उड़ना सीख लें, उस अभ्यास की अब शुरुआत भी हो चली ,
उड़ने का हुनर ऐसा सिखाया, कि भेद न बना पाये उसको कोई भी शिकारी ;
दाने चुगने का तरीका भी ऐसा सुझाया, कि ना कभी पकड़ पाये जाल में उसको कोई भी अहेरी ,
हैरानी न थी कैसे बचने को बताया गुर, पर असल में थी वो इंसान की मक्कारी व बेइमानी भरी ख़ातिरदारी ;

बच्चों को पंखों में दबा सोने लगा जो, चक्रवाती तूफान ने बढ़ाई समस्या भारी ,
घोंसले के एक एक तिनके को जो बचाने में जूझ रहा था, फिर भी मूसलाधार बारिश ने लूट ली थी दुनिया हमारी ;
रोते रोते जो ऑंख लगी, सुबह इंसानी रूप देख खुदा से हाथ जोड़ माफ़ी मांगी ढेर सारी ,
पँछी का दर्द उस पर इंसान की फितरत याद कर, बस आंखों से बह रहे थे अश्रु व मन में थी ग्लानि अत्यंत भारी ;

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पंछी की पीड़ा की परिभाषा | पंछी की पीड़ा का अर्थ

आपका – शुभचिंतक
मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
उद्देश्य – प्रकृति के पशु, पक्षियों के प्रति करुणा , सरंक्षण व स्वतंत्रता के भाव को जागृत करना।

8 COMMENTS

  1. आसमान मे उड़ते हुए "परिन्दे" से किसी ने पूछा..
    तुम्हें जमीन पर गिरने का कोई डर नहीं है....
    परिन्दे ने "मुस्कुराकर" जवाब दिया...
    मैं इन्सान नहीं हूँ जो जरा सी बुलन्दी पर जाकर अकड़ जाऊं ।।।
    
  2. पंछी …..तेरा दर्द न जाने कोय……(पर मानस ने जानने की भरपूर कोशिश की है । ) बहुत ही खूब लिखा है ।

  3. A.
    जिसे पीड़ा है। जिससे! पीड़ा है।
    केवल वो ही समाधान निकाल सकता है।
    बाकी तो बात सुनकर या
    तो आंनद ले सकते है,
    या सांत्वना ही दे सकते है।

    B.
    और यदि समाधान निकालने वाला ही नही रहा।
    तो केवल प्रभू की भक्ति ही एक मात्र हल है।
    जो आपको उचित मार्ग दिखा सकते है।

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