Tuesday, September 30, 2025

Meaning of Mother | त्याग की प्रतिमूर्त ” माँ “

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त्याग की प्रतिमूर्त ” माँ ” | माँ का अर्थ
Symbol of Sacrifice | Meaning of Mother | Maa Ka Arth

| माँ |

माँ एक शब्द है या फिर एक शख्सियत,
खुदा की बंदगी के वास्ते बनी तस्वीर कहें या फिर उसे कहें ख़ुदाई;
प्यार का पैगाम कहें या फिर जीवन की रोशनाई,
करुणा व त्याग प्रतिमूर्त कहें या फिर अपने जन्म को बलिदान स्वरूप देने वाली हर घर आँगन की लक्ष्मी माई।

माँ तो बस माँ होती है,
सिर्फ जन्म देने वाली ही कहाँ होती है;
जब पीड़ सहन नहीं कर पाये कोई अपने वास्ते,
एक किलकारी की खातिर प्रस्रव के दर्द सहने की ताकत फिर वहाँ होती है;

माँ तो बस माँ होती है…….

सुबह हो गई अब तो उठ जा,
बहुत देर हो गई अब तो सो जा ;
थोड़ा और खा ले अभी ये तो तुमने चखा ही नहीं,
ये सब तो मैंने तेरे लिये बनाया थोड़ा सा टिफिन में डाल दूं यह सब कहने वाली वहाँ सिर्फ माँ होती है;

माँ तो बस माँ होती है…….

दूसरे का दर्द जब अपनी आँख से झलके,
तो समझ लेना करुणामयी मूरत वहाँ होती है;
और जब पी जाये अमृत कह कर ज़हर का प्याला,
तो मान लेना बस वहाँ सिर्फ माँ होती है;

माँ तो बस माँ होती है…….

एक खुशी के वास्ते झेल जाये जो थोड़ा कष्ट,
तो अपनों का साथ ही वहाँ होता है;
और एक मुस्कान देखने के वास्ते जो भीड़ जाये मौत से,
कलेजा मुँह को आये और आँखों में प्यार झलक जाये तो वहाँ सिर्फ माँ होती है;

माँ तो बस माँ होती है…….

झुलसती धूप नन्हे पैरों को छू न जाये,
इस आहट में गुजर जाये अंगारों के पथ से तो वहाँ सिर्फ माँ होती है;
ठोकर खाकर गिर ना जाये रेत पर,
इस घबराहट में तपती रेत दौड़ लगाने वाली वहाँ सिर्फ माँ होती है;

माँ तो बस माँ होती है…….

दुआ में जो चले कठिन पथों पर,
थकान को मुस्कुराहट में छिपा ले अपनापन फिर वहाँ होता है;
गोद में उठा ले उसकी जो थकान देखकर,
नंगे पैरों में छाले नहीं वहाँ छालों में पाँव रखने वाली सिर्फ माँ होती है ;

माँ तो बस माँ होती है…….

कभी कहे जाती है वह प्यार की जन्नत,
तो कभी कहलाती है वह बलिदान की मूरत;
तो कभी दिखती है त्याग की प्रतिमूर्त,
पहली शिक्षक ही नहीं वो मेरी अपितु संसार में पग पग पर गिरने से पहले सिखलाने वाली वहाँ “” माँ “” तो कभी वह “” गुरू माँ “” होती है।

माँ तो बस माँ होती है,
सिर्फ जन्म देने वाली ही कहाँ होती है …….

“” मैं धन्य हूँ जिस माँ की कोख से मैंने जन्म लिया,
माँ का ऋण कोई कैसे चुकता कर सकता है भला।
मुझे व्यवहारिकता में भी सामाजिकता, धर्मार्थ और निष्काम कर्म के प्रति अग्रसर होना सिखाया। वक़्त का सम्मान, कर्त्तव्यनिष्ठ और विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष के साथ जीने का सिद्धांत चरितार्थ करके बतलाया।
अनेकों खूबियों वाली माँ को मेरी बारम्बार चरण वन्दना। “”

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त्याग की प्रतिमूर्त ” माँ ” | माँ का अर्थ

मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु प्रकृति के नियमों का यथार्थ प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध योगदान देना।

15 COMMENTS

  1. An exquisite portrayal of the depths of motherhood. Your words have beautifully expressed the love, affection, and dedication of a mother. Your writing is truly remarkable, and it has resulted in a poignant tribute to the significance of our mothers. I genuinely appreciate your heartfelt composition. Thank you for this incredible piece of writing!

    Send a message…

  2. An exquisite portrayal of the depths of motherhood. Your words have beautifully expressed the love, affection, and dedication of a mother. Your writing is truly remarkable, and it has resulted in a poignant tribute to the significance of our mothers. I genuinely appreciate your heartfelt composition. Thank you for this incredible piece of writing!

  3. हर भाव को समझने की शक्ति हर किसी में नहीं होती । जिसने मां को जान लिया उसने सब कुछ जान लिया।

  4. माँ 🙏🙏🙏

    It is not right to define mother in words because she is a true and living embodiment of compassion, sacrifice and love.

  5. मैं शब्द तो वह भाषा है
    माँ की बस यही परिभाषा है ।

  6. वह पढ़ लेती है मेरे मन की हर व्यथा फिर कैसे कहु कि मेरी मां अनपढ़ है?

  7. बचपन में अच्छी लगे यौवन में नादान।
    आती याद उम्र ढ़ले क्या थी माँ कल्यान।।

    करना माँ को खुश अगर कहते लोग तमाम।
    रौशन अपने काम से करो पिता का नाम।।

    विद्या पाई आपने बने महा विद्वान।
    माता पहली गुरु है सबकी ही कल्यान।।

    कैसे बचपन कट गया बिन चिंता कल्यान।
    पर्दे पीछे माँ रही बन मेरा भगवान।।

    माता देती सपन है बच्चों को कल्यान।
    उनको करता पूर्ण जो बनता वही महान।।

    बच्चे से पूछो जरा सबसे अच्छा कौन।
    उंगली उठे उधर जिधर माँ बैठी हो मौन।।

    माँ कर देती माफ़ है कितने करो गुनाह।
    अपने बच्चों के लिए उसका प्रेम अथाह।।

  8. माँ, जो एक संपूर्ण ब्रह्मांड का अंश अपने मे समाए हुए है,उसकी आपने अत्यंत गूढ़, सारगर्भित और पठनीय व्याख्या की है,हृदय से आभार☺️

  9. Bahut khoob likha h maa ke baare me par maa ko shabdo me nahi baandh sakte . Unkahe pahloo jo uski khamoshi aur aansuo me hote ,unhe shabdo me nahi bataya ja sakta .
    Mosiji aapko saadar pranam , sachmuch aapTyaag ki murti h . Aapki muskaan bahut pyaari h .

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