“निस्वार्थ” | “प्रेम पथ का चौथा पायदान”
Meaning of Selfless | Meaning of Self-sacrificing | Meaning of Unselfish
“निस्वार्थ”
• “नि” का अर्थ है – रहित या मुक्त।
• “स्वार्थ” का अर्थ है – स्वयं का हित या व्यक्तिगत लाभ।
इसका शाब्दिक अर्थ “जिसमें कोई स्वार्थ न हो” या “निःस्वार्थ भाव से किया गया कार्य” होता है।
निस्वार्थता का संबंध किसी भी प्रकार की अपेक्षा या व्यक्तिगत लाभ से मुक्त होकर प्रेम, सेवा, भक्ति और कर्तव्य के निर्वहन से है।
“निस्वार्थ” का अर्थ है स्वार्थ-रहित, बिना किसी व्यक्तिगत लाभ या अपेक्षा के किया गया कार्य। यह एक ऐसी भावना है, जिसमें प्रेम, सेवा, त्याग और करुणा का समावेश होता है।
निस्वार्थता का सार:
• जिसमें कोई स्वार्थ न हो, केवल प्रेम और सेवा हो।
• जिसमें अपेक्षा न हो, केवल समर्पण और त्याग हो।
• जिसमें अहंकार न हो, केवल प्रेम की शुद्धता हो।
स्वार्थी प्रेम = अधिकार, अपेक्षा और लाभ का भाव।
निस्वार्थ प्रेम = समर्पण, सेवा और आनंद का भाव।
अन्य विशेष –
• सच्चा प्रेम तभी अस्तित्व में आता है, जब वह निस्वार्थ होता है।
• यदि प्रेम में कोई स्वार्थ छिपा हो, तो वह प्रेम नहीं, बल्कि सौदा बन जाता है।
• सूफी संतों के अनुसार, निस्वार्थ प्रेम ही ईश्वर तक पहुँचने का सबसे सरल मार्ग है।
• प्रेम में सेवा और त्याग की भावना होनी चाहिए, न कि स्वामित्व और अधिकार की।
• निस्वार्थ प्रेम स्वयं के अस्तित्व से परे जाकर प्रिय के सुख में अपना सुख देखता है।
चंद रचनायें –
“मैं तुमसे इसीलिए प्रेम नहीं करता कि तुम मेरे हो,
मैं तुमसे प्रेम करता हूँ क्योंकि मैं प्रेम किए बिना रह नहीं सकता।”
जलालुद्दीन रूमी का प्रेम निस्वार्थ है, जिसमें किसी स्वामित्व या अधिकार की भावना नहीं है।
“अगर प्रेम कोई वजह मांगता है,
तो वह प्रेम नहीं, व्यापार है।”
जलालुद्दीन रूमी निस्वार्थ प्रेम बिना किसी कारण, बिना किसी शर्त के होता है।
“मैं नहीं, सब तू ही तू,
जब मैंने खुद को मिटा दिया,
तब ही तेरा अक्स पाया।”
बुल्ले शाह के अनुसार प्रेम में जब व्यक्ति अपना स्वार्थ मिटा देता है, तब ही वह ईश्वर या प्रियतम का अनुभव करता है।
“प्रेम वह नहीं जो बदले में कुछ माँगे,
प्रेम तो वह है जो सिर्फ देना जानता हो।”
हाफ़िज़ (शम्सुद्दीन हाफ़िज़) के अनुसार निस्वार्थ प्रेम केवल देने में विश्वास रखता है, बिना किसी प्रत्याशा के।
“ईश्वर से प्रेम करो ऐसे,
जैसे दीपक लौ से करता है,
जलता है, पर कभी कुछ माँगता नहीं।”
हाफ़िज़ (शम्सुद्दीन हाफ़िज़) के अनुसार प्रेम यदि निस्वार्थ नहीं है, तो वह प्रेम नहीं रह जाता।
“सच्चा प्रेम निस्वार्थ होता है, वह केवल देना जानता है।”
प्रेम का सबसे बड़ा रूप सेवा और त्याग में प्रकट होता है।
“स्वयं को पाने का सबसे अच्छा तरीका है,
दूसरों की निस्वार्थ सेवा करना।”
महात्मा गांधी के अनुसार प्रेम यदि निस्वार्थ हो, तो वह सेवा और करुणा का रूप धारण कर लेता है।
“सच्चा प्रेम वही है जिसमें कोई स्वार्थ न हो,
और कोई बदले की अपेक्षा न हो।”
स्वामी विवेकानंद के अनुसार प्रेम में त्याग और सेवा की भावना होनी चाहिए, न कि किसी प्रकार का लोभ।
“यदि आप सच्चे प्रेम से भरे हैं,
तो आपको बिना मांगे सब कुछ मिल जाएगा।”
मदर टेरेसा के अनुसार जब प्रेम निस्वार्थ होता है, तब वह संसार में सबसे शक्तिशाली बन जाता है।
सारांश में –
“निस्वार्थ प्रेम ही सच्चा प्रेम है।”
“सच्चा प्रेम वही है जो केवल देना जानता है और किसी बदले की आशा नहीं रखता।“
प्रेम की सबसे ऊँची अवस्था निस्वार्थता है। यदि प्रेम में कोई स्वार्थ, अपेक्षा या अधिकार की भावना आ जाए, तो वह प्रेम अपनी पवित्रता खो देता है।
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“निस्वार्थ” | “प्रेम पथ का चौथा पायदान”
विचारानुरागी एवं पथ अनुगामी –
मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक】
अनुयायी – मानस पंथ
शिष्य – डॉ औतार लाल मीणा
विद्यार्थी – शोधार्थी, दर्शनशास्त्र विभाग 【 JNVU, Jodhpur 】
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों को जगत के केंद्र में रखते हुऐ शिक्षा, समानता व स्वावलंबन का प्रचार प्रसार में अपना योगदान देने का प्रयास।
बेबसाइट- www.realisticthinker.com