“” वर्ण व्यवस्था की परिभाषा “” या “” वर्ण व्यवस्था का अर्थ “”
“” Definition of Varn Vyavstha “” Or “” Meaning of Varna system“”
“” वर्ण व्यवस्था “”
“” जनसंख्या के वर्गीकरण का प्रथम आधार धर्म /पँथ व द्वितीय आधार वर्ण व्यवस्था जिसे वर्तमान में विकृत जातिगत व्यवस्था भी कहते हैं। “”
इसे हम तार्किकता के साथ विश्लेषण से समझेंगे —
★★★ वर्ण व्यवस्था ★★★
°°° *प्राणी के अभिरुचि एवं कार्यशैली पर आधारित जीवन शैली ही वर्ण है।*°°°
——– वर्ण के प्रकार ——-
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र
ब्राह्मण – ब्रह्म व शिक्षा प्रदाता
क्षत्रिय – क्षेत्र की रक्षा एवं शासन व्यवस्थापक
वैश्य – व्यापार , पालन पोषण संयोजक
शूद्र- खेल, 【चिकित्सा, संगीत, नृत्य व कलात्मक 】 सेवक
———– जाति ————–
“” वर्ण का विघटित, सांस्कृतिक, सैद्धांतिक एवं जगह समूह विशेष को जाति कहते हैं। “””
——- गौत्र ———-
“” वर्ण का सूक्ष्म ,अविभाजित एवं व्यक्ति के रंग रूप व कद काठी अनुसार वर्गीकरण ही गौत्र कहलाता है। “”
★★★ प्रारम्भिक अवस्था में व्यक्ति द्वारा कर्म चुनाव व बदलाव के साथ ही उसके वर्ण का बदलाव होना भी निश्चित था, क्योंकि समाज कर्म प्रधान की अवधारणा पर टिका व फलफूल रहा था।★★★
★★★ कालांतर में कुटिल, भ्रामिक व महत्वकांक्षी लोगों द्वारा वर्ण व गौत्र के व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक ढांचे को भेदभाव, छुआछूत, ऊंचनीच का जातिगत अखाड़ा बना दिया।
अब यह वर्तमान में हमारे समाज के लिए शर्म, कलंक के साथ विघटन, अलगाव व विध्वंस का भी कारक बनी हुई है। ★★
मानस जिले सिंह
【 यथार्थवादी विचारक】
अनुयायी – मानस पँथ
उद्देश्य – सामाजिक व्यवहारिकता को सरल , स्पष्ट व पारदर्शिता के साथ रखने में अपनी भूमिका निर्वहन करना।
so nice