मजदूर या फिर हालात से मजबूर | मजबूर का अर्थ
Meaning of Victim | Definition of Victim | Majdoor Ki Paribhasha
| A Labour or Victim of Circumstances |
| मजदूर या फिर हालात से मजबूर |
राम राम साहब जो सुना , मानो कानों में अमृत सा घुला ;
जैसे ही सन्नाटे को चीरती, जो आवाज कानों में पड़ी ;
नजर दौड़ाई तो मुरझाये चेहरे, फिर सम्मान देने उनके ही आगे झुके ;
लगा जैसे एक झुठी चेहरे की मुस्कान, मेंढक की तरह दुःखों के सैलाब से उछल पड़ी ;
ईमानदारी से लग्न व मेहनत भी, आँखों की चमक में मजबूरी न छुपा सकी ;
खुद के भरणपोषण के साथ परिवार की परवरिश, और क़बिलदारी की जिम्मेदारी भी उनके नाजुक कन्धों पर थी जो पड़ी ;
मोल भाव की आदत है सबको, चाहे फिर एक ही रेट मालिक यह सबको पहले से क्यों न कहा ;
दान देने वाला बड़ा होता है, इसलिए उनसे पुण्य कमाने वालों में भी होड़ सी मची ;
मौत है हर कदम पर फिर भी , जो सुरक्षित रहने का ये फरमान सबको मिला ;
खुद की खैरियत की ख़ातिर , वैसे ही दुनिया घरों के लिए निकल पड़ी ;
हराम और बेशर्मी से बैठकर, वो भी सकते थे खाना जो खा ;
ज़िल्लत से मर न जायें , फिर इज्ज़त की कमाने वास्ते दौड़ जो उनकी ही लगी ;
सब्जी बेचना, पानी , दूध पहुंचाना व साफ सफाई , ऊपर से कचरा भी घर घर का उनके ही हाथों से उठा ,
जबकि संकट काल में भी दुनिया , हर तरफ़ गन्दगी मचाने में थीं जुटी ;
इज्ज़त से नहीं तो थोड़ी सी करुणा से ही पुकार लेते , यह आस थी अंतर्मन में थोड़ी सी उनको भी ;
लाचारी की इंतहा दिखती है तो कभी , बेबस पथराई आंखों में हर बार की तरह एक फिर से टकटकी सी दिखी ;
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मजदूर या फिर हालात से मजबूर | मजबूर का अर्थ
मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना में प्रकृति के नियमों को यथार्थ में प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध प्रयास करना।
अत्यंत मार्मिक चित्रण
आपकी रचना मुझे इस रचना की बहुत याद दिलाती है
” मैं मजदूर मुझे देवों को बस्ती से क्या ?”
so nice thought