कर्म स्थली और मनोस्थिति | कर्म स्थली का अर्थ
Meaning of Workplace | Definition of Workplace | Workplace Ki Paribhasha
| Workplace and Mood |
| कर्म स्थली और मनोस्थिति |
अजीब कशमकश में जो कब से हूँ फंसा ,
बाँटना लक्ष्य है मेरा प्रेम और शिक्षा ;
फैलना है प्रकृति में सन्देश स्वावलंबन और समानता का ,
फिर अब जीवन की भागदौड़ से भी हूँ जो मैं बंधा ;
ताकत इतनी बदलता हूँ जो रुख आँधियों का ,
बदलती सूरत इस फ़िजां में देखना है जो मेरा सपना ;
तो लिखनी पढ़ेगी नित्यकर्म की इबारत इस कदर पत्थरों पर ,
बस एक उलझन की रवानगी ने मुझको चौराहे पर है दिया ;
जनूँ इतना की जिंदगी को ले जाऊं एक हंसी मुकाम पर ,
मन लगाकर सुन सबको जो प्यार का संदेश इस कदर भिजवाया ;
सहयोग और विश्वास की जुगलबंदी ने मिटा दिलों की दूरियां मानस का मुकम्मल मुकाम है पाया ,
मन या फर्ज निभाने की व्याकुलता के बीच में घिरा है खुद को हर बार पाया फिर भी मानस पँथ की मशाल को अंर्तमन से है उठाया ।
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कर्म स्थली और मनोस्थिति | कर्म स्थली का अर्थ
मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना में प्रकृति के नियमों को यथार्थ में प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध प्रयास करना।
“नरता का आदर्श, तपस्या के भीतर पलता है
देता वही प्रकाश, आग में ,जो अभीत जलता है।” रामधारी सिंह दिनकर ने रश्मिरथी में मनुष्य की वांछित सफलता की कामना हेतु कठोर तपस्या या साधना प्रबल दिया है ,जितनी बड़ी तपस्या उतना ही बड़ा फल होगा। तपस्या या कठोर परिश्रम की परिभाषा क्या है ?और क्या मापदंड हैं ? ये कैसे जानें हम ? सरल शब्दों में कहा जाए तो मनुष्य रात्रि में सुखमई निद्रा में स्वप्न देखता है । तो उसके लिए उसे कोई प्रयास नहीं करना पड़ता । क्योंकि उसे समय हमारी शारीरिक क्रिया ्क्रिय निष्क्रिय होती है। मनुष्य के सामने एक फिल्म के भांति स्वप्न आते रहते हैं और मनुष्य निस्तेज, निष्क्रिय ,भावना शून्य होकर भावहीन मुद्रा में पड़ा रहता है । वे सपने मनुष्य के जीवन का उद्देश्य नहीं हो सकते ,तो किन सपनों के लिए मनुष्य को संघर्ष करना पड़ेगा। यह प्रश्न पाठक के मन में अवश्य आया होगा। मनुष्य के सपने इच्छाएं , इरादें ,लक्ष्य वही होते हैं जो रात्रि में उसको सोने ना दे और वह उन्हें पूरा करने के लिए रात- दिन एक कर दे अर्थात उसे रात्रि के अंधकार और दिन के उजाले का भान ना रहे ।
‘सपने वही होते हैं जो हमें सोने ना दे ‘
अब्दुल कलाम आजाद
जिन्होंने अपने आप को इस परिश्रम की आग में झोंक दिया। उन्हें परिश्रम का उत्तम ल फल मिला ।मनुष्य का स्वभाव और आदत भी परिश्रम करने में व्यवधान उत्पन्न कर सकते हैं। मनुष्य का स्वभाव अगर आलसी है तो वह अपना हर कार्य आने वाले समय पर छोड़ देगा। जिससे उसके पास पछताने के सिवा कुछ भी नहीं रहेगा। परिश्रमी होना मनुष्य का स्वभाव नहीं बल्कि उसका र्म कर्म होना चाहिए ।अगर मेरे भारतवर्ष का हर नागरिक परिश्रमी, कर्मठ ,आत्म संयमी ,, आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर होगा तभी मेरा भारत विश्व में नव युग का आगाज़ करेगा ।- प्रोफेसर सरला जांगिड़