मजबूर की परिभाषा | बेजुबान जिल्लत
Speechless Insult or | Definition of Forced | Majboor Ki Paribhasha
बाध्य होने का दर्द जनाब जिल्लत से जब परिचय करवाता है ,
भला चंगा शरीर होने पर भी बीमार होने का अहसास हो जाता है ;
गरीबी दिखती है सोच में चाहे कपड़ों से वो धनवान नजर आता है ,
कुलमिलाकर परिस्थितियों से घिरीं बेबसी में जकड़ा ही लाचार कहलाता है ;
वैसे “”म”” से मजलूम की मायूसी जहां मर्ज़ बनता है ,
मर्म भी मौकापरस्ती की भेंट चढ़ दर्द बन जाता है ;
“”ज”” से जरूरतमंद जहां जायद का अधिकार खो देता है ,
वहाँ जबर्दस्ती का शिकार बनना आदत भी बना देता है ;
“”ब”” से बेजुबान कोई जहां बर्बरता का शिकार होता है ,
बदनीयती भी बेईमानी का चोला पहन तांडव करवाती है ;
“”र”” से रोजमर्रा जहां रसातल की ओर अग्रसर रहता है ,
रसूख भी रस्साकशी से ही जमीनी हकीकत दिखाता है ;
विवशता जीवन में सकून ही कहां लाने देता है ,
जब मजलूम जरूरतमंद के साथ बेजुबान होकर रोजमर्रा की आदत बनता है ;
सुख का ढर्रा छोड़ इंसान दो घड़ी ही आराम को तरसता जाता है ,
फिर इसे खुदाई कहें या बाध्यता पर दूसरा नाम “” गांधी “” जरूर याद आता है |
“” असहाय महसूस होने की मनोस्थिति ही मजबूर कहलवाती है “”
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मजबूर की परिभाषा | बेजुबान जिल्लत
मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना हेतु प्रकृति के नियमों का यथार्थ प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध योगदान देना।
Very nice thoughts …..
Majboori insaan ko kamjor bana deti hai
मिलना एक इत्तफाक है,
और बिछड़ना मजबूरी है।
चार दिन की इस जिन्दगी में,
सबका साथ होना जरूरी है।।