Monday, February 17, 2025

Meaning of Dedication | “प्रेम पथ का दूसरा पायदान”

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“समर्पण” | “प्रेम पथ का दूसरा पायदान”
Meaning of Dedication | Meaning of Commitment | Meaning of Devotion
“समर्पण”

“समर्पण” संस्कृत का शब्द है, जिसमें “सम” का अर्थ है पूरा
“अर्पण” का अर्थ है सौंपना, अर्पित करना।
इस प्रकार, समर्पण का शाब्दिक अर्थ होता है किसी को पूरी तरह से सौंप देना, अपने आप को पूरी तरह से किसी के प्रति समर्पित करना।
“समर्पण” जिसका अन्य अर्थ — “पूर्ण रूप से अर्पित करना, आत्मसमर्पण, निःस्वार्थ भाव से सौंप देना”। यह त्याग, श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, जिसमें व्यक्ति अपने अहंकार, इच्छाओं और स्वार्थ को छोड़कर प्रेम व ईश्वर के प्रति समर्पित हो जाता है।

समर्पण की विशेषताएँ:
1. निस्वार्थ भाव – समर्पण में स्वार्थ की कोई भावना नहीं होती, बल्कि यह पूर्ण रूप से दूसरे के प्रति श्रद्धा, प्रेम, और विश्वास का भाव होता है।
2. अधीनता – जब कोई व्यक्ति समर्पण करता है, तो वह अपने अहंकार और इच्छाओं को त्याग कर किसी उच्च उद्देश्य, गुरु या ईश्वर के प्रति अपना खुद का अस्तित्व अर्पित करता है।
3. त्याग और प्रेम – समर्पण में त्याग का तत्व प्रमुख होता है, जहां व्यक्ति स्वार्थ को छोड़कर किसी दूसरे के प्रति प्रेम और आस्था व्यक्त करता है।
जब प्रेम होता है, तो समर्पण स्वाभाविक रूप से जुड़ जाता है। प्रेम में समर्पण यह दर्शाता है कि व्यक्ति अपने प्रियजन, गुरु या ईश्वर के प्रति पूरी तरह से समर्पित है और अपनी इच्छाओं और आवश्यकता को उनके लिए अर्पित करता है। इस समर्पण से व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ता है और उसकी आत्मा को शांति मिलती है।

रचनाओं द्वारा अभिव्यक्ति –
“जिसे तुम खोज रहे हो, वह तुम हो।
तुम्हारा समर्पण ही तुम्हें तुम्हारे वास्तविक स्वरूप तक पहुँचाएगा।”
जलालुद्दीन रूमी के अनुसार, समर्पण में आत्मिक सत्य और प्रेम का संगम होता है। जब हम प्रेम में समर्पण करते हैं, तो हम अपने वास्तविक आत्म स्वरूप से जुड़ जाते हैं और जीवन के वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त करते हैं।

“प्रेम में समर्पण की कोई सीमा नहीं होती,
जब तुम समर्पित हो, तो तुम अपने भीतर की दिव्यता को अनुभव करते हो।”
जलालुद्दीन रूमी के अनुसार, प्रेम और समर्पण एक दूसरे के पूरक हैं। समर्पण के द्वारा हम अपने आध्यात्मिक मार्ग पर चल सकते हैं और प्रेम के द्वारा आत्मा को शांति प्राप्त होती है।

“जो सच्चा प्रेम करता है, वह अपने अस्तित्व को छोड़ देता है,
वह समर्पण करता है और सिर्फ प्रेम को जीवित रखता है।”
हाफ़िज़ (शम्सुद्दीन हाफ़िज़) के अनुसार, समर्पण प्रेम का स्वाभाविक परिणाम है। सच्चा प्रेम व्यक्ति को इस हद तक समर्पित कर देता है कि वह अपने अस्तित्व से परे होकर केवल प्रेम को सर्वोत्तम मानता है।

“समर्पण में महानता है, क्योंकि यह हमारे भीतर के अहंकार को नष्ट कर देता है,
जब हम खुद को अर्पित करते हैं, तो हम संसार से जुड़ जाते हैं।”
हाफ़िज़ (शम्सुद्दीन हाफ़िज़) ने यह स्पष्ट किया कि समर्पण से हमारे अहंकार का नाश होता है और हम संसार और ईश्वर से एकाकार होते हैं।

“इश्क है तो समर्पण होना चाहिए,
प्रेम में समर्पण के बिना कोई अर्थ नहीं है।”
बुल्ले शाह के अनुसार, जब व्यक्ति प्रेम करता है, तो वह अपने आत्मसात और समर्पण के बिना उस प्रेम को वास्तविक रूप से महसूस नहीं कर सकता।

“मैंने अपना अस्तित्व प्रेम में समर्पित किया,
अब मैं केवल प्रेम का रूप हूं, और मेरी पहचान खो गई है।”
बुल्ले शाह के अनुसार, प्रेम और समर्पण से व्यक्ति अपने अस्तित्व को खो देता है और प्रेम के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की ओर बढ़ता है।

विश्व की महान हस्तियों द्वारा –
“सच्चा प्रेम वही है जो समर्पण में बदल जाए।
प्रेम और समर्पण के बीच कोई भेद नहीं है।”
महात्मा गांधी के अनुसार, प्रेम और समर्पण दोनों एक ही भावना के दो रूप हैं। सच्चा प्रेम वह होता है, जिसमें स्वार्थ और अहंकार का त्याग होता है और व्यक्ति समर्पण की भावना से प्रेरित होता है।

“समर्पण न केवल आध्यात्मिकता की ओर,
बल्कि यह संसारिक जीवन में भी सच्ची महानता का मार्ग है।”
स्वामी विवेकानंद ने समर्पण को केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में भी एक महत्वपूर्ण गुण माना। उनके अनुसार, समर्पण से हम अपने वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त करते हैं और सच्चे प्रेम का अनुभव करते हैं।

“जब तक आप खुद को समर्पित नहीं करते,
आप प्रेम का वास्तविक अर्थ नहीं समझ सकते।”
स्वामी विवेकानंद के अनुसार, समर्पण के बिना व्यक्ति प्रेम की गहराई को नहीं समझ सकता। यह भावना आत्मिक और शुद्ध प्रेम की ओर मार्गदर्शन करती है।

“समर्पण प्रेम का पहला कदम है,
जब हम किसी के प्रति समर्पित होते हैं, तब ही हम सच्चे प्रेम का अनुभव करते हैं।”
डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर के अनुसार, समर्पण प्रेम का आधार है। यह निःस्वार्थता, प्रेम और आत्म-त्याग की भावना को जन्म देता है।

“”प्रेम गली अति सांकरी, तामें दो न समाय।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाही।
सब अँधियारा मिट गया, जब दीपक देखा माही।।”
कबीर ने प्रेम को ईश्वर प्राप्ति का मार्ग माना और समर्पण को उसकी पूर्णता बताया।

“सच्चा प्रेम निस्वार्थ होता है, और जब प्रेम में स्वार्थ समाप्त हो जाता है, तब वह समर्पण में बदल जाता है।”
स्वामी विवेकानंद के अनुसार, प्रेम में जब अहंकार और स्वार्थ समाप्त हो जाता है, तब वह समर्पण का रूप ले लेता है।

“जब तुम प्रेम में समर्पण करना सीख जाते हो, तब तुम्हें कुछ पाने की आवश्यकता नहीं रहती, क्योंकि तुम पूर्ण हो जाते हो।”
रवींद्रनाथ टैगोर के अनुसार प्रेम में जब व्यक्ति स्वयं को अर्पित कर देता है, तब वह आत्मिक शांति और संतोष को प्राप्त कर लेता है।

“समर्पण का अर्थ है अपने अस्तित्व को प्रेम के चरणों में अर्पित कर देना। यह प्रेम का सबसे गहन रूप है।”
ओशो के अनुसार प्रेम और समर्पण में कोई सीमा नहीं होती, जब व्यक्ति पूर्ण रूप से समर्पित होता है, तब उसे आत्मिक आनंद की प्राप्ति होती है।

प्रेम और समर्पण एक-दूसरे के पूरक हैं। प्रेम यदि स्वार्थरहित हो जाए और अहंकार रहित हो जाए, तो वह समर्पण बन जाता है। संतों और महापुरुषों की वाणी में भी यही संदेश मिलता है कि प्रेम जब संपूर्ण त्याग और निष्ठा के साथ किया जाए, तब वह समर्पण का रूप धारण कर लेता है। प्रेम और समर्पण के बीच गहरा संबंध है। जब कोई व्यक्ति सच्चे प्रेम में होता है, तो वह स्वाभाविक रूप से समर्पण की भावना को महसूस करता है। समर्पण स्वार्थ, अहंकार और व्यक्तिगत इच्छाओं से मुक्ति का मार्ग है, जो प्रेम को गहरा और शुद्ध बनाता है। समर्पण केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में भी सकारात्मक परिवर्तन लाता है।

सारांश में –
“प्रेम में समर्पण है, समर्पण में बल है,
यह दुनिया को बदलने की शक्ति है।”
डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने प्रेम और समर्पण को समान माना और इसे समाज सुधार और शांति के लिए आवश्यक बताया। उनका कहना था कि समर्पण में ही वास्तविक शक्ति है जो दुनिया को बदल सकती है।

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विचारानुरागी एवं पथ अनुगामी –

मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक】
अनुयायी – मानस पंथ
शिष्य – डॉ औतार लाल मीणा
विद्यार्थी – शोधार्थी, दर्शनशास्त्र विभाग 【 JNVU, Jodhpur 】
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों को जगत के केंद्र में रखते हुऐ शिक्षा, समानता व स्वावलंबन का प्रचार प्रसार में अपना योगदान देने का प्रयास।
बेबसाइट- www.realisticthinker.com

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Mukesh SHARMA
Mukesh
9 days ago

Very nice thought such as god words

Seema
Seema
9 days ago

Precious thoughts ✨️

Sanjay Nimiwal
Sanjay Nimiwal
9 days ago

Nice thought 👌 👍 👏

कुछ लोग खोने को प्रेम कहते हैं,
कुछ लोग पाने को प्रेम कहते हैं,,
पर हकीकत में निभाना ही प्रेम है।।

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