Friday, October 11, 2024

Meaning of Fruitful | सकारात्मक कर्मफल बनाम मुकद्दर

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सकारात्मक कर्मफल बनाम मुकद्दर | कर्मफल का अर्थ
Meaning of Fruitful | Definition of Fruitful | Fruitful Ki Paribhasha

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| सकारात्मक कर्मफल बनाम मुकद्दर |

जब -2 मैं अकेला चला ,
लगा मेरे साथ कोई और भी चला ;
खुश हुआ जो कोई तो मेरे साथ भी चला ,
अजीब ही अहसास से अब मैं वाकिफ़ हो चला ;

चीरता सन्नाटे को अब मैं और आगे जब बढ़ चला ,
अँधेरा जैसे जैसे बढ़ा तो परछाई पर दबाव भी बढ़ने लगा ;
वफ़ा की दुहाई देते हुये साया भी अब साथ छोड़ चला ,
ऐसे में भी था कोई जो फिर मेरे साथ हर वक़्त चला ;

पूछ ही लिया था मैंने जो भाई तू कौन है बता ,
जब साये ने ही साथ छोड़ा तो बता तू फिर क्यों  साथ चला ;
अंदर से एक आवाज़ आयी भई मैं हूं मुक़्क़द्दर तेरा ,
तेरे गुनाहों का हिसाब करने मैं हूँ जो निकल पड़ा ;

पूछा क्या चाहता है तू मुझसे बस ये ज़रा बता ,
होगा जो तेरे सामने आयेगा तुझे मैं अब बताऊं क्या ;
समय में ही छुपा है तेरे जबाबों का सिलसिला ,
वक़्त का इंतजार किसे अब मैं तो सारे गुनाह ही कबूल कर चला ;

उसने कहा इतनी भी जल्दबाजी में क्यों भला हो चला ,
तेरे हर कबूलनामे पर तो हमें यकीन है हो चला ;
फैसले के इंतजार में वक़्त का दबाव बहुत हो चला,
संजीदगी से एहतराम जता अब मैं फिर मंजिल की तरफ आगे बढ़ चला ;

नादान हर गुनाह तू जो धीरे धीरे कर चला ,
चाहता है जल्द मुकम्मिल हो जिंदगी का हर फैसला ;
तेरे एक एक जुर्म का हिसाब तो कब का ही हो चला ,
जी ले जो तू चाहे पर तेरा नसीब तो मैं पहले ही सब लिख चला या मानो कर्मफल ही होता है मुकद्दर यह हमको अब वो समझा चला ;

These valuable are views on Meaning of Fruitful | Definition of Fruitful | Fruitful Ki Paribhasha
सकारात्मक कर्मफल बनाम मुकद्दर | कर्मफल का अर्थ

मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक 】
अनुयायी – मानस पंथ
उद्देश्य – मानवीय मूल्यों की स्थापना में प्रकृति के नियमों को यथार्थ में प्रस्तुतीकरण में संकल्पबद्ध प्रयास करना।

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Sanjay Nimiwal
Sanjay
2 years ago

सकारात्मक ऊर्जा का ही परिणाम होता है,

जो हमें हमारे लक्ष्य को पाने मे मदद करता है।

SARLA JANGIR
SARLA JANGIR
1 year ago

एक सुंदर युवती कर में वरमाल लिए ,घर की चौखट पर खड़ी 
आते- जाते नवयुवक प्रेम भाव से, पूछ रहे ,
क्या वरमाला पहनोगी?
 अति प्रफुल्लित साथ तुम्हारा,भाव जगे जो मन में तेरे , ऐसा वर क्या मुझे चुनोगी?
हर बार की तरह उत्तर था उसका, बनूं तुम्हारी प्रेयसी ऐसा तुममें भाव नहीं ।
मार्ग भटक गए हो शायद, इस पथ के तुम पथिक नहीं,
तेरा – मेरा साथ बनें , ऐसा कोई संजोग नहीं,
मिट्टी से सनी देह , हाथ में हल लिए,
 जा रहा था एक युवक, नई चाह नई उमंग लिए,
 बढ़ते कदमों को रोका उस रूपमती के यौवन ने ,
पूछा उससे ,-अन्नदाता की अर्धांगिनी बनना,
 क्या तुम स्वीकार करोगी?
उस यौवन राशि ने हंसकर बोला,
 हे परिश्रमी ! पालनहारे !
 सर्व संपन्न गुण तुम्हारे, वरमाला को जयमाला में ,करें परिवर्तन ,ऐसे नहीं है भाव तुम्हारे,
 मैं नव यौवना चाहती हूं वर  ऐसा, जो चिंगारी को आग बना दे,
इरादों हों उसके ऐसे , पर्वत को भी नत करा दे, 
भुजाओं के बल से अपने, कम्पित भी सिंह करा दे,
आँखों की ज्वाला से अपने, भय को भी भयभीत करा दे,
कष्टों से भरे पथ को, कार्य से अपने सुपथ बना दे,
जीवन ऐसा जिए वो अपना, मातृभूमि की शान बढ़ा दे,
देश भक्ति के भाव में , जो अपना सर्वस्व जला दे ।- Professor Sarla Jangir

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