Saturday, July 27, 2024

Voice Of Heart | दिल की आवाज

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दिल की आवाज
Voice Of Heart | Dil Ki Aawaj | Dil Ki Aawaz.

“” दिल की आवाज “”

दिल की आवाज को आखिर दबाना मुमकिन न था ,
ऑंसुओं से भीगी पलकों को छुपाना मुमकिन न था ;
गुजर गये जो लम्हे उन्हें लौटाना मुमकिन न था ,
बस गई थीं जो यादें दिलोदिमाग में उनको मिटाना भी मुमकिन न था ;

झुकी हुई पलकों के बीच नैना दो से चार कर पाना मुमकिन न था ,
शर्मोहया से सिले होठों से अंतर्मन को जान पाना मुमकिन न था ;
उलझीं घनी जुल्मों में दीदार ऐ हुस्न कर पाना भी मुमकिन न था ,
उस पर मैं कुछ कहूँ तो दबी उंगली लबों पर से उठवा पाना भी मुमकिन न था ;

रो रो कर बहती रहीं जो रात भर उनकी सूजन को छिपाना मुमकिन न था,
हाले दिल के बयां को आँखों से जताना मुमकिन न था ;
उसके दिल के दर्द इतनी आसानी से नयनों द्वारा चुरा पाना मुमकिन न था ,
चुराये ग़म को सँजोकर रख भी लिया था पर आखिरी सिसक को ही रोक पाना मुमकिन न था ;

बिखर न जाऊं कहीं रुक जाने से फिर भी उनसे विदा हो जाना मुमकिन न था ,
मिलने की खुशी व बिछुड़ने के दर्द में उनसे दिल की आरजू से पार पाना भी मुमकिन न था ,
इस दिल के उमड़े जज्बातों में ढहते वजूद व लुटती उम्मीदों को बचा पाना मुमकिन न था ;
बेरहम ख्यालों में ही सही पर जुदाई में बदहवास, बेसुध आशिक़ को मौत के गले लगवाना भी तो मुमकिन न था।

These valuable Poem on Voice Of Heart | Dil Ki Aawaj | Dil Ki Aawaz.
दिल की आवाज

मानस जिले सिंह
【 यथार्थवादी विचारक】
अनुयायी – मानस पँथ
उद्देश्य – सामाजिक व्यवहारिकता को सरल , स्पष्ट व पारदर्शिता के साथ रखने में अपनी भूमिका निर्वहन
करना।

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Sarla Jangir
Sarla Jangir
1 year ago

भावों के भंवर में फंसे, दिल की तह पाना मुमकिन नहीं होता ।

बुद्धि को भी जो मात दे दे ,उस मन पर काबू पाना मुमकिन नहीं होता।

इस चंचल मन में कईयों को बनाया और बिगाड़ा है, मनुज होकर योगी बनना भी मुमकिन नहीं होता ।-

प्रोफेसर सरला जांगिड़

ONKAR MAL Pareek
Member
1 year ago

शायरी हो या इश्क हो

तसव्वुर के बिना मुमकिन ही नहीं,

तेरी चाहत की खुशबू को

रोक ले दीवारें, ये मुमकिन ही नहीं,

दिल ने चाहा है जो कुछ

सभी हो हासिल, ये मुमकिन तो नहीं,

अच्छा किया उसे, जो तुम भूल गए

प्यार,अंजाम पा ले,ये तो मुमकिन ही नहीं,

इंसा ने चेहरे पे चढ़ा रखे हैं नकाब,कितने

फ़ितरत-ए-इंसा, जान पाना मुमकिन ही नहीं,

ख़ुद को बेदाग़,समझते हो,समझो लेकिन

बेगुनाह अपनी नज़र में हो,ये मुमकिन तो नहीं,

इश्क-ए-मजाज़ी सबको नसीब नहीं

पर मैं तुझे भूल जाऊँ ये तो मुमकिन ही नहीं,

आँख से आंसू जो टपक पड़ते हैं

फ़िर से आँखों मे पलट पाएँ,मुमकिन ही नहीं !

Sanjay Nimiwal
Sanjay
1 year ago

दिल की आवाज💕💕

कुछ यूं ही चलेगा,

तेरा मेरा रिश्ता उम्र भर,,,

मिल जाएंगे तो बातें लंबी,

ना मिले तो यादें लंबी।।।

SARLA JANGIR
SARLA JANGIR
1 year ago

ना जाने इतनी घुटन क्यों है?
प्रभु की सुंदर रचना में,
 मनुष्य है उसकी सबसे सुंदर कृति है।
 भावों के इस मायाजाल में एक नया भाव ढूंढा अपने में ,कभी-कभी मिल जाता है सपने में,
 किसी बात को कहने में ऐसी छिपन क्यों है?
 न जाने इतनी घुटन क्यों है ?
प्रकृति के सुंदर चीजों में,
 ढूंढती क्या रहती है मेरी दृष्टि ,
देखने में भी इन सब को चुभन क्यों है?
 न जाने इतनी घुटन क्यों है?
 शांत हो जाए मेरे मन की तृष्णा,
 हो अगर इस असीमित जलन का त्याग,
 विचार में भी विचार शून्य -सी, 
सांसारिक होते हुए भी वैरागी- सी,
चिंतन करते हुए चिंता -सी ,
हठयोग में रहते हुए भी योगी -सी,
 इस नश्वर जग के लिए भी इतना मनन क्यों है?
 न जाने इतनी घुटन क्यों है ?
मोल नहीं है इस मानवीय देह,
 फिर क्या होगा इन रिश्तों से नेह का,
 हर पल बीत रहा किसी शून्य की तरफ ,
फिर इन चिंतन में मरण क्यों है?
 ना जाने इतनी घुटन क्यों है?
कहीं पहाड़ ,कहीं नदिया,
 वनों में पक्षी चहचहाते  हैं ,
पेड़ों की हरियाली में,
 जीवन गीत सुनाते हैं,
 मधुर जीवन संगीत में आतंक का रुदन क्यों है ?
 ना जाने इतनी घुटन क्यों है ?
उच्च आकाश एक ,शीतल सुगंधित हवा एक
 समर्पित  ममतामई धरती एक,
 प्राणों में संचार वाला जल एक ,
और पल में नष्ट करने वाले अग्नि एक,
 एकरूपता के परिधान में भिन्नता की फटन क्यों है ?
ना जाने इतनी घुटन क्यों है?
 मां की ममताई आंचल में ,
पिता की विश्वासित छाया में,
 सखी सहेलियों का संग,
 रिश्तों का अटूट सहारा ,
सुखी बेटी के भविष्य में इतनी तड़प क्यों हैं ?
ना जाने इतनी घुटन क्यों है?
 आधुनिक समय में,
 साधनों के उपभोग में,
 विलासता और तरक्की के मोह में,
 भविष्य के निर्माण में,
 युवा पीढ़ी के संस्कारों में इतनी पिछड़न क्यों है ?
न जाने इतनी घटन क्यों है?
 इस संसार सिंधु में कौन अपना है?
 ईश्वर कृपा के भाव का मतलब क्या है?
 जब जाना उस असीम शक्ति के शरण में
 शरणागति से पहले यह परीक्षण क्यों है ?
न जाने इतनी घुटन क्यों है?

–प्रोफेसर सरला जांगिड़

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